जब बेपनाह मोहब्बत के बीच मजहब बनी दीवार

buland-love-manthanगालिब ने कहा था कि मोहब्बत जाति और मजहब की बंदिशों की मोहताज नही होती. शायद यह बात आज भी सटीक है. लेकिन बुलंदशहर में एक ऐसा मामला सामने आया है जो इससे इतर है. यहां दो प्रेमी आपस में चार साल से मोहब्बत तो बेइंतहा करते थे, लेकिन जब बात शादी की आयी तो दोनों को एक-दूसरे के मजहब से नफरत की दास्तां भी सामने आई. और यही मजहब दोनों के प्यार पर भारी पड़ा

बुलंदशहर की गुलिस्तां महज सत्रह साल की थी. नादां थी, लेकिन उसे इश्क की समझ थी. तभी तो चार साल पहले अपने गांव के दीपक को अपनी जिंदगी सौंप कर उसके प्यार की रहनुमाई में आबाद हो चुकी थी. प्यार का यह बंधन इतना मजबूत था कि दीपक का शादीशुदा होना, उसका एक गांव का होना और समाज की रूसवाई भी उसे हिला न सकी.

लेकिन एक मामूली सी बात पर प्यार के इन परिंदों ने अपनी राहें अलग-अलग कर ली. गुलिस्तां दीपक से और .दीपक गुलिस्तां से शादी करना चाहता था. मगर इस रिश्ते में एक शर्त थी. गुलिस्तां चाहती थी कि दीपक मुसलमान हो जाये और दीपक चाहता था कि गुलिस्तां हिंदू बन जाये. हिंदू-मुसलमान की रार इस प्यार को ऐसे मुकाम पर खींच लायी कि दीपक के हाथों में हथकड़ियां पड़ गई.

18 मई की रात को दोनों का मिलना तय था. रात के अंधेरे में दबे पांव गुलिस्तां घर से निकल आयी. घर के बाहर बिटौरों के पास उसे दीपक मिला और फिर शादी के मुद्दे पर बात शुरू हुई. एक-दूसरे को मजहब के जाल से निकलने का रास्ता नही मिला. फिर क्या था. दीपक ने एकाएक गुलिस्तां को बिटौरे में डाला और जोर से दबोचकर उसका गला घोंट दिया. दीपक फरार हो गया और जब सुबह गुलिस्तां की तलाश हुई तो उसके मरे हुए पांव बिटौरे के बाहर निकले पड़े थे. चार दिन की मशक्कत के बाद पुलिस दीपक के हलक से सच उगलवा पायी है. दीपक अब जेल की सलाखों के पीछे है.

पुलिस के मुताबिक गुलिस्तां को शादी की जल्दी थी. उसका ब्याह घरवालों ने दूसरे लड़के से तय कर दिया था. एक लड़की की बेबसी दीपक को समझनी चाहिए थी. मुहब्बत जब मजहब की बंदिशों की परवाह नही करती तो दीपक को प्यार का हो जाना चाहिए था. लेकिन ठीक रहा जिंदगी से हाथ धोने के बाद ही सही गुलिस्तां आखिर जान तो गई कि जिसके लिए उसने दुनियां छोड़ी वह बेरहम बेबफा था.

 आभार : न्यूज़ मंथन .कॉम 
 
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