जन्माष्टमी विशेषः ‘रहस्मय भगवान श्रीकृष्ण’ की ये 10 बातें शायद नहीं जानते होंगे

कहते हैं 3112 ईसा पूर्व हुए भगवान श्रीकृष्ण एक राजनीतिक, आध्यात्मिक और योद्धा ही नहीं थे वे बल्कि उनमें तमाम विद्याओं में महारत हासिल थी। कृष्ण से ही धर्म का एक नया रूप और संघ शुरू होता है। जानें ‘रहस्मय भगवान श्रीकृष्ण’ की वो 10 बातें जिनके बारे में शायद पहले कम ही लोग जानते थे। जन्माष्टमी विशेषः ‘रहस्मय भगवान श्रीकृष्ण’ की ये 10 बातें शायद नहीं जानते होंगे

मान्यता के अनुसार कृष्ण का रंग काला अर्थात् श्याम रंग मानते हैं। प्रेम के स्वरूप भगवान कृष्ण ने जीवन के अलग-अलग पहलुओं को बड़ी ही सहजता के साथ शब्द दिए हैं। कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को दायित्वबोध करवाना हो या फिर जीवन की कठिनता से अपने प्रिय मित्र सुदामा को मुक्ति दिलवानी हो, कृष्ण हर जगह उपस्थित रहे हैं।

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कृष्ण का तो अर्थ ही होता है सबसे अधिक आकर्षक। शायद यही वजह है कि कृष्ण भले ही अपने किसी भी स्वरूप में क्यों ना हों, एक बार जो उन्हें देख ले वह अपनी नजर उनसे हटा ही नहीं पाता।

लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कृष्ण को हमेशा नीले रंग में ही क्यों दर्शाया गया है? ये भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण 117 साल की उम्र में भी नौजवान जैसे ही दिखते थे। 

कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, इतना गहन अंधकार था। लेकिन इसमें विशेषता खोजने की जरूरत नहीं है। यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है। दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है- बंधन में जन्म होता है, कारागृह में। किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है? हम सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से मुक्त हो जाएँ, जरूरी नहीं है हो सकता है कि हम मरें भी कारागृह में। जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है। शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है। जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो कारागृह में ही जन्म लेती है।

इस प्रतीक को ठीक से नहीं समझा गया। इस बहुत काव्यात्मक बात को ऐतिहासिक घटना समझकर बड़ी भूल हो गई। सभी जन्म कारागृह में होते हैं। सभी मृत्युएँ कारागृह में नहीं होती हैं। कुछ मृत्युएँ मुक्ति में होती है। कुछ अधिक कारागृह में होती हैं। जन्म तो बंधन में होगा, मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएँ, टूट जाएँ सारे कारागृह, तो जीवन की यात्रा सफल हो गई।कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि जन्म के साथ ही उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? जन्म के साथ ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद – एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है। जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है। किसी भी क्षण मौत घट सकती है। मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है। और कोई शर्त जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है, जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए।

कृष्ण के जन्म के साथ एक ये बात भी जुड़ी है कि मरने की बहुत तरह की घटनाएँ आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। जो भी उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है। मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं, जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है।

वे सब रूपों की कथाएँ हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत घेरती है और हार जाती है। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है।

जितना पुरानी दुनिया में हम लौटेंगे- और कृष्ण बहुत पुराने हैं, इन अर्थों में पुराने हैं कि आदमी जब चिंतन शुरू कर रहा है, आदमी जब सोच रहा है जगत और जीवन के बाबत, अभी जब शब्द नहीं बने हैं और जब प्रतीकों में और चित्रों में सारा का सारा कहा जाता है और समझा जाता है, तब कृष्ण के जीवन की घटनाएँ लिखी गई हैं। उन घटनाओं को डीकोड करना पड़ता है। उन घटनाओं को चित्रों से तोड़कर शब्दों में लाना पड़ता है और कृष्ण शब्द को भी थोड़ा समझना जरूरी है।

कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश का केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो केंद्रीय चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है। वह सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिँचती हैं और आकृष्ट होती हैं।

शरीर खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, समाज खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है।

जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है, तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है वह जो बिंदु है आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास निर्मित होनी शुरू होती हैं।

​उस कृष्ण बिंदु के आसपास क्रिस्टलाइजेशन शुरू होता है और व्यक्तित्व निर्मित होता है। इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति विशेष का जन्म मात्र नहीं है, बल्कि व्यक्ति मात्र का जन्म है।

कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है। महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मक हो जाती है। पीछे लौटकर निर्मित होती है।

पीछे लौटकर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और दूसरे अर्थ ले लेती है। जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे। और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी बार-बार लिखती है।

 
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