चंडीगढ़ पीजीआइ में कैंसर रोगियों का नई तकनीक से किया जाएगा इलाज, पढ़े पूरी खबर

विश्व में पहली बार पीजीआइ में कैंसर के मरीजों का इलाज रोबोटिक ब्रैकीथेरेपी से होगा। इस तकनीक का प्रयोग कर रेडिएशन और इमेज गाइडेंस को साथ-साथ करके सिर्फ कैंसर प्रभावित क्षेत्र में ही रेडिएशन दिया जाएगा। इससे रेडिएशन का साइड इफैक्ट मरीज के किसी दूसरे ऑर्गन पर नहीं पड़ेगा।

मरीजों का रोबोटिक ब्रैकीथेरेपी से होगा इलाज, इसका शरीर के अन्‍य अंगों पर नहीं होता साइड इफैक्‍ट

मौजूदा समय में सीटी स्कैन, एमआरआइ या पैट स्कैन की रिपोर्ट के आधार पर यह प्रक्रिया की जाती है। इससे अनुमान के आधार पर दिए जाने वाले रेडिएशन से शरीर में आसपास के अंग भी प्रभावित होते हैं। तीन साल से चल रहे थे प्रयास पीजीआइ रेडियोथेरेपी डिपार्टमेंट इस तकनीक को शुरू करने के लिए पिछले तीन साल से प्रयासरत था।

डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. राकेश कपूर ने बताया कि रोबोटिक ब्रैकीथेरेपी में रोबोटिक मशीनों को सीटी स्कैन के साथ कनेक्ट कर दिया जाता है। इससे रेडिएशन के दौरान सीटी स्कैन से कनेक्ट रोबोटिक मशीन उसका इमेज भी साथ-साथ क्लीयर करता जाता है जिससे सटीक स्थान पर रेडिएशन देने में आसानी होती है।

अब तक किसी देश में नहीं हुआ है इस तकनीक का इस्‍तेमाल, बार्सिलाेना में भी हो रहा है इस पर काम

डॉ. राकेश ने बताया कि सरकार ने इस शुरू करने की अनुमति देने के साथ ही दो करोड़ रुपये भी स्वीकृत कर दिए हैं। प्रक्रिया के तहत विश्वस्तरीय उपकरणों की खरीद की प्रक्रिया जल्द ही शुरू कर दी जाएगी। डॉ. राकेश का कहना है कि विश्‍व में अब तक इस तकनीक का प्रयोग किसी भी देश में नहीं किया जा रहा है। स्पेन के बार्सिलोना में यह तकनीक शुरू करने के लिए काम हो रहा है। फ‌र्स्ट फेज में लीवर कैंसर के मरीजों का होगा इलाज पीजीआइ में यह तकनीक शुरू होने पर सबसे पहले लीवर कैंसर के मरीजों का इलाज किया जाएगा।

डॉ. राकेश का कहना है कि लीवर के मरीजों को फ‌र्स्ट फेज में शामिल करने के पीछे की मुख्य वजह उसे लेकर हमारा रिसर्च है। लीवर के मरीजों पर लगातार की जा रही रिसर्च के आधार पर इस तकनीक का प्रयोग उनपर करना ज्यादा लाभदायक होगा। उसके बाद इसका प्रयोग अन्य कैंसर मरीजों पर भी होगा। ब्रैकीथेरेपी और अन्य थेरेपी में अंतर पेन मेडिसिन में रेडियो आकोलॉजिस्ट कैंसर के इलाज के लिए रेडियेशन के आंतरिक और बाहरी दोनों रूपों का उपयोग करते हैं।

उन्‍होंने बताया कि ब्रैकीथेरेपी एक आंतरिक चिकित्सा है जिसमें रेडिएशन के माध्यम को शरीर के अंदर रखा जाता है। बाहरी ट्रीटमेंट में प्रोटॉन, आइएमआरटी, गामा नाइफ और रेडियोथेरेपी से जुड़े सोर्स प्रयोग किए जाते हैं। ये ट्रीटमेंट शरीर के बाहर से मशीनों की मदद से दिया जाता है। इंटर्नल रेडिएशन ट्रीटमेंट में रेडिएशन के सोर्स को लेजर तकनीक के माध्यम से शरीर के अंदर के कैंसर प्रभावित एरिया में ले जाकर इलाज किया जाता है।

ब्रैकीथेरेपी में इनका होता है उपयोग

ब्रैकीथेरेपी में मरीज के शरीर के अंदर कैंसर प्रभावित पार्ट में छोटे माइक्रो चिप के माध्यम से रेडिएशन के लिए इलाज में प्रयोग किए जाने वाले अन्य माध्यमों, जैसे धातु छर्रो, बीज, रिबन, तार, सुई, कैप्सूल या ट्यूब को रखकर पहुंचाया जाता है। इसे डॉक्टर एमआरआइ, एक्स-रे, पैट स्कैन और सीटी स्कैन के जरिए मॉनीटर पर देखता और रेडिएशन करता है। इसके आधार पर ही मरीज के कैंसर प्रभावित क्षेत्र में रेडिएशन की डोज तक की जाती है।

इस तकनीक से कैंसर प्रभावित भाग को रेडिएशन देने में आसानी होती है जिससे बेहतर परिणाम सामने आते हैं। ब्रैकीथेरेपी के फायदे इस तकनीक के प्रयोग से जहां एक ओर बेहद कम समय में मरीज को रेडिएशन दिया जाता है, वहीं, दूसरी ओर कैंसर प्रभावित भाग में रेडिएशन देने से शरीर के अन्य अंगों पर दुष्प्रभाव का खतरा न के बराबर होता है।

लीवर कैंसर लीवर कैंसर को हेपेटिक कैंसर भी कहा जाता है। ये कैंसर लीवर में शुरू होकर लीवर कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। लीवर कैंसर दो प्रकार के हैं, जिसमें फ‌र्स्ट स्टेज और मेटास्टेसिस स्टेज शामिल है। फ‌र्स्ट स्टेज का लीवर कैंसर लीवर की कोशिकाओं में शुरू होता है। जबकि मेटास्टेसिस स्टेज में कैंसर कहीं और से शुरू होता है और धीरे-धीरे लीवर तक पहुंच जाता है।

लीवर कैंसर के ये हैं लक्षण

लीवर कैंसर के लक्षण वजन कम होना, उल्टी होना, पीलिया, भूख की कमी, बुखार, नार्मल खुजली, बढ़े हुए स्प्लीन, पेट में सूजन, स्किन और आंखों का पीला होना, पैरों में सूजन होना शामिल है। लीवर कैंसर के कारण हेपेटाइटिस बी या सी का गंभीर इंफेक्शन, सिरोसिस, डायबिटीज, लीवर फैटी होना, अधिक मोटा होना, स्मो¨कग या एल्कोहल का सेवन करना।

लगातार बढ़ रहा है कैंसर का दंश

कैंसर का दंश और दायरा लगातार बढ़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 से 2040 के बीच प्रथम कीमोथेरेपी की आवश्यकता वाले रोगियों की संख्या 98 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हो जाएगी। द लांसेट, आंकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कीमोथेरेपी वाले मरीजों की संख्या में 2018 के 63 से 2040 में 67 प्रतिशत तक की एक स्थिर वृद्धि होगी। यह स्थिति बेहद गंभीर और चिंताजनक है। अगर इससे बचाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थिति और भयानक होगी।

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