घर-घर डुगडुगी बजायेंगे अच्छे दिन?

ओम प्रकाश तिवारी
कोई माने या न माने, किसी को दिखे या न दिखे, भारत दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। देश में रामराज्य आ चुका है। देशवासियों के सभी कष्ट कट गए हैं। देश से दरिद्रता खत्म हो चुकी है। उद्योग धंधे फल-फूल रहे हैं। किसान – मजदूर सब मस्त हैं। गोवंश मग्न हो जुगाली कर रहे हैं। पक्षी चहक रहे हैं। स्कूल-कालेज बंद होने से बच्चे भी मौज में हैं। अरसे बाद किसानों और मजदूरों को आराम मिला है, वरना बैलों की तरह खेती-किसानी में जुते रहते थे। उद्योग-धंधों के बिकने और बंद होने से प्रवासी कामगारों को भी मोहलत मिली है। कोरोना काल में दुनिया कराह रही है और हमारा महान देश अखिल विश्व को दवा-दारु सब उपलब्ध करा रहा है। कमजोर देशों की रक्षा भी कर रहा है। भय – भूख – भ्रष्टाचार का अवसान हो चुका है। यत्र-तत्र-सर्वत्र मंगल ही मंगल है।
महान भारत में स्वर्णकाल ऐसे ही नहीं आया। अच्छे दिनों के लिए महाराजाधिराज ने कठोर तपस्या की है। उन्हीं की प्रेरणा से उनकी सरकार ने आपदा में अवसर तलाशा। ऐसे सुनहरे समय में एक दिन महाराजाधिराज प्रजा की खुशहाली देखने निकले। गांव – नगर सब जगह सन्नाटा पसरा था। बाजारों का सन्नाटा तो वीभत्स था। किसी अनहोनी की आशंका में कुत्ते भी कहीं दुबके हुए थे। बीच-बीच में जब झींगुर तान लगाता था, तभी सन्नाटा टूटता था।
महाराजाधिराज बड़े दुखी हुए। जल्द ही उन्हें एक तरकीब सूझी। महाराजाधिराज ने देशवासियों से ताली और थाली बजाने की अपील की। सन्नाटे में घर में दुबके लोगों को लगा कि महाराजाधिराज ठीक ही तो कह रहे हैं। सबने ख़ुशी-खशी ताली और थाली बजाई। अगले दिन से फिर सन्नाटा। महाराजाधिराज ने देशवासियों से दिए जलाने का आह्वान किया। देश रौशन हुआ। अगले कुछ दिन फिर सन्नाटे में बीते। लेकिन जल्द ही सन्नाटा लोगों को अखरने लगा और लोग बिलबिलाने – चिल्लाने लगे।
महाराजाधिराज ने सोचा देशवासियों को कहीं और व्यस्त किया जाय, वरना ये देश की छवि खराब का देंगे। जल्द ही उन्होंने पीट-परिधान धारण कर अयोध्या में बिना मुहूर्त के ही पुरे विधि-विधान से राममंदिर का शिलान्यास किया। अब देशवासी रामधुन में मग्न हो गए। पावस में दिवाली मनाई गई। लेकिन भूंखे भजन न होइ गोपाला, लोग महाराजाधिराज से सवाल करने लगे। महाराजाधिराज ने फिर नई तरकीब निकाली और उन्होंने रिया और कंगना नाम की दो वीरांगनाओं को मैदान में उतार दिया। देशवासियों में एकबार फिर जोश आ गया। वे फड़कने लगे – खूब लड़ी मर्दानी ।
इस तरह विश्वव्यापी महाआपदा में भी हमारा महान देश ख़ुशी और चैन से झूम रहा है। कामयाबियों को चूम रहा है। इसके बावजूद तमाम लोगों को देश की ख़ुशी और चैन अखर रहा है। वे उल्टे-सीधे सवाल उठा रहे हैं। अब इन अमहकों से कोई पूछे कि – अब और कैसे आएंगे अच्छे दिन ? क्या घर-घर डुगडुगी बजायेंगे अच्छे दिन ?
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