गांधी परिवार के एक-के बाद एक की मौत के राज से उठा पर्दा…उसके पीछे छिपा है ये इस शाही खजाना

इस किले की वजह से हुई थी पूरे कांग्रेस परिवार की बर्बादी बताया जाता है इमरजेंसी के दौरान जयगढ़ किले में पांच महीने तक चली खुदाई के बाद इंदिरा सरकार ने भले ये कहा हो कि कोई खजाना नहीं मिला, मगर जो सामान बरामद बताया गया उसे जिस तरीके से दिल्ली भेजा गया वह कई सवाल छोड़ गया। 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगाई गई थी। इस मौके पर आइए जानते हैं कि कैसे खजाने की खोज के लिए खुद संजय गांधी पहुंचे थे जयपुर और ऑर्मी ने खोद डाला पूरा किला..

 गांधी परिवार के एक-के बाद एक की मौत के राज से उठा पर्दा...उसके पीछे छिपा है ये इस शाही

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ट्रकों का काफिला जब दिल्ली लौटने लगा तो नए सिरे से अफवाह फैल गई कि जयपुर-दिल्ली का राजमार्ग पूरे दिन बंद कर दिया गया और सेना के ट्रकों में जयगढ़ का माल छुपाकर ले जाया गया है। बताया जाता है कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी के आदेशानुसार दिल्ली छावनी में रख दिया गया।

अगस्त 11, 1976 को भुट्टो ने इंदिरा गाँधी को एक पत्र लिखा कि आपकी सरकार जयगढ़ में खजाने की खोज कर रही है। इस बाबत पाकिस्तान अपने हिस्से की दौलत का हकदार इस कारण है कि विभाजन के समय ऐसी किसी दौलत की अविभाजित भारत को जानकारी नहीं थी। विभाजन के पूर्व के समझौते के अनुसार जयगढ़ की दौलत पर पाकिस्तान का हिस्सा बनता है। भुट्टो ने लिखा था कि ‘पाकिस्तान को यह पूरी आशा है कि खोज और खुदाई के बाद मिली दौलत पर पाकिस्तान का जो हिस्सा बनता है वह उसे बगैर किसी शर्तों के दिया जाएगा।’
 
इंदिरा गाँधी ने अगस्त में आई भुट्टो की चिट्ठी का जवाब ही नहीं दिया। इसके बाद आयकर, भू-सर्वेक्षण विभाग, केन्द्रीय सार्वजनिक निर्माण विभाग और अन्य विभिन्न विभागों को जब खोज में कोई सफलता नहीं मिली तो इंदिरा गाँधी ने खोज का काम सेना को सौंप दिया। लेकिन जब जयगढ़ से सेना भी खाली हाथ लौट आईं, तब इंदिरा गांधी ने 31 दिसम्बर 1976 को भुट्टो को लिखे अपने जवाब में कहा कि उन्होंने विधि-विशेषज्ञों को पाकिस्तान के दावे के औचित्य की जांच के लिए कहा था।
 
आपातकाल के दौरान स्वर्गीय संजय गांधी के नाम की तूती बोलती थी और जयपुर में यह बात आम हो चली थी कि संजय गांधी की निगरानी में सब कुछ हो रहा है और गड़ा हुआ धन इंदिरा गांधी ले जाएंगी। एक बार संजय गांधी अचानक अपना छोटा विमान उड़ाकर सांगानेर हवाई अड्डे पहुंचे, तब अफवाह फैल गई कि जयगढ़ में दौलत मिल गई है और संजय गांधी विमान लेकर जयपुर दौलत बटोरने पहुंच गए हैं।
 
सेना के आला अफसर एक-दो बार निरीक्षण के लिए जयगढ़ आए और आसपास हैलिकाॅप्टर से लैंडिंग की तो, यह अफवाह भी फैली की जयगढ़ में दौलत मिल गई है और सेना के हैलिकाॅप्टर इंदिरा गांधी और संजय गांधी के आदेश पर माल दिल्ली ले जाने के लिए आए हैं। खुदाई पूरी होने के बाद ये बताया गया कि महज 230 किलो चांदी और चांदी का सामान ही मिला है। सेना ने इन सामानों की सूची बनाकर और राजपरिवार के प्रतिनिधि को दिखाई और उसके हस्ताक्षर लेकर सारा सामान सील कर दिल्ली ले गई।
विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्तान का कोई दावा ही नहीं बनता। इंदिरा गाँधी ने यह भी लिखा कि जयगढ़ में खजाने नाम की कोई चीज ही नहीं मिली। लेकिन अरबी पुस्तक ‘तिलिस्मात-ए-अम्बेरी’ में लिखा है कि जयगढ़ में सात टांकों के बीच हिफाजत से दौलत छुपाई गई थी। शायद इसी किताब के हवाले से भी पाकिस्तान ने दावा किया होगा।

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जयगढ़ में खोज और खुदाई की खबरें देने वाले वरिष्ठ पत्रकर राजेन्द्र बोड़ा बताते हैं कि आपातकाल में जबकि राजनीतिक या सरकार विरोधी कोई खबर कोई अखबार नहीं छाप सकते थे उस समय जयगढ़ संबंधी खजाने की खोज की अफवाहों से भरी खबरों को पाठकों ने पूरा जायका लेकर पढ़ा। यह खबरें उस वक्त भी आम थीं कि भले ही पूर्व राजपरिवार के खजाने का एक बड़ा हिस्सा जयपुर को बसाने में खर्च हो गया था, मगर जवाहरात तब भी सुरक्षित थे।

मानसिंह द्वितीय ने अपने काल में जयगढ़ के खजाने के एक बड़े हिस्से को मोतीडूंगरी में रख दिया था। कानौता के जनरल अमरसिंह की डायरी में भी लिखा हुआ है कि मानसिंह ने जयगढ़ के किलेदारों को बदल दिया। इतिहासविद् डाॅ. चन्द्रमणी सिंह सवाई मानसिंह की प्रशंसा में कहती हैं कि भारत सरकार से हुए कोवेनेन्ट के दौरान मानसिंह ने चतुराई से इस पूरी दौलत को राजपरिवार की निजी संपत्ति बता दिया।
खुद महारानी गायत्री देवी ने सच बताया
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी से जयपुर की पूर्व-महारानी गायत्री देवी ने 1962 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और कॉन्ग्रेस के कैंडिडेट को हरा दिया. इसे तब दुनिया में सबसे अधिक मतों के अंतर से जीता गया मुकाबला माना गया. इसके बाद 1967 और 1971 में भी गायत्री देवी चुनाव जीतती गईं.
 
वे हमेशा से इंदिरा गांधी की मुखर आलोचक थीं. इसी वजह से वे उनकी नजरों में भी चढ़ी हुई थीं. इंदिरा ने फिर उनके साथ जो किया वो आपातकाल से जरा पहले और लागू होने के बाद देखने को मिला. गायत्री देवी की प्रॉपर्टीज पर जो छापेमारी हुई और बाद में उन्हें जेल में डाला गया. इसकी शुरुआत उनके मुताबिक बांग्लादेश युद्ध (1971-72) के बाद से हो गई थी.
 
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