गंगाजल की तरह पवित्र है इस कुएं का जल, रामचरितमानस में मिलता है इसका उल्लेख
चित्रकूट में एक ऐसा कुआं है जिसमें जिसका जल सभी तीर्थों से पवित्र है और लोक मान्यता के अनुसार इस कुएं का जल कभी खराब नहीं होता। जैसे गंगा जल को लोग अपने घर ले जाते हैं उसी प्रकार इस कुएं के जल को भी लोग भर-भर कर ले जाते हैं और वह कभी खराब नहीं होता। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भरत जी भगवान राम को वनवास काल के समय वापस लेने के लिए चित्रकूट आए थे तो वह अपने साथ समस्त तीर्थों का जल एक कलश में ले कर के आए थे ।
उनका सोचना था कि प्रभु श्रीराम का वहीं पर राज्याभिषेक करके उनको राजा की तरह वापस अयोध्या ले जाएंगे, लेकिन जब श्रीराम ने बिना वनवास काल के पूर्ण हुए वापस लौटने से मना कर दिया तब अत्रि मुनि ने उस पवित्र जल को चित्रकूट के पास एक कुएं में मंत्रोच्चारण के साथ डलवा दिया था। रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने भी इसका उल्लेख किया है।
अत्रि कहेउ तब भरत सन, सैल समीप सुकूप।
राखिए तीरथ तोय तह, पावन अमल अनूप ।।
भरतकूप अब कहिहहि लोगा।
अति पावन तीर्थ तीरथ जल जोगा।।
मान्यता है कि वह पवित्र जल आज भी इस कुएं में सुरक्षित है और तब से इस कुएं का नाम भरतकूप पड़ गया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस कुएं के समस्त कोनों का जल भी अलग-अलग पाया जाता है या यूं कहिए कि जितनी बार बाल्टी कुएं में जाती है उसमें जल का स्वाद विभिन्न तरह से पाया जाता है।