धनतेरस: खरीदने जानें से पहले एक बार जरुर जान ले आज क्या है सोने चांदी के भाव…

धनतेरस के मौके पर आम तौर पर लोग सोने में निवेश करते हैं, लेकिन यदि पिछली दिवाली से अब रिटर्न के आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि चांदी ने भी सोने के बराबर रिटर्न दिया है। पिछली दिवाली से अब तक चांदी ने सोने के बराबर लगभग 21 प्रतिशत रिटर्न दिया। कमोडिटी विशेषज्ञों के मुताबिक अगले साल दिवाली तक चांदी में निवेश से सोने के मुकाबले ज्यादा रिटर्न मिल सकता है। पिछली दिवाली से अब तक चांदी का भाव 8,303 रुपए प्रति किलो बढ़ा है।

पिछले साल 7 नवंबर को दिल्ली में चांदी 38,257 रुपए प्रति किलो थी, जो इस साल 23 अक्टूबर को 46,560 रुपए प्रति किलो हो गई। इस हिसाब से निवेशकों को करीब 21 प्रतिशत रिटर्न मिला। पिछली दिवाली से अब तक सोना की कीमत भी 21 प्रतिशत बढ़ चुकी है। 7 नवंबर, 2018 को सोने की कीमत 31,589 रुपए प्रति 10 ग्राम थी, जो 23 अक्टूबर 2019 को 38,932 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गई। जाहिर है, निवेशकों को लगभग 21 प्रतिशत रिटर्न मिला।

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रिटर्नः दिवाली से दिवाली

एसेट क्लास (रिटर्न प्रतिशत में)

सोना 21

चांदी 21

सेंसेक्स 11

निफ्टी 10

कच्चा तेल 15

रुपया -2.23(स्रोतः केडिया एडवाइजरी)

सोने के मुकाबले चांदी अब भी सस्ती

केडिया एडवाइजरी के डायरेक्टर अजय केडिया के मुताबिक गोल्ड-सिल्वर रेश्यो अब भी 80 के पार बना हुआ है। पिछले दिनों यह 88 पर पहुंच गया था, जो पिछले 20 साल का सर्वोच्च स्तर है। इससे जाहिर होता है कि अब भी सोने के मुकाबले चांदी बहुत सस्ती है। चांदी इस साल के अंत तक 60 हजार रुपए प्रति किलो का भाव छू सकती है। अगले 2 महीनों के दौरान चांदी 13,440 रुपए या 29 फीसदी रिटर्न चांदी दे सकता है।

इसलिए बढ़ रही चांदी की चमक

– अमेरिका और ईरान के बीच तनाव- चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वॉर

– ब्रेग्जिट को लेकर चीजें स्पष्ट न होना

– ग्लोबल करेंसी बाजार में उतार-चढ़ाव

निवेश की मांग बढ़ी

निवेश के लिए चांदी की मांग साल 2013-14 में 24 प्रतिशत थी, जो इन दिनों बढ़कर 28-30 प्रतिशत हो गई है। उद्योगों में इस्तेमालफार्मा, बैटरी, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स समेत कम से कम 20 ऐसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र हैं, जहां चांदी की तगड़ी मांग बनी हुई है। आने वाले दिनों में चांदी की औद्योगिक मांग बढ़ने की उम्मीद है, जो काफी दिनों से सुस्त पड़ी है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती इसकी सबसे बड़ी वजह है। लेकिन, अब हालात सुधरने लगे हैं। चीन और अमेरिका के बीच तनाव कम करने को लेकर बातचीत जारी है। इसके अलावा तेल बाजार में करीब-करीब स्थिरता आ रही है और केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें घटाई है। इसका असर वैश्विक आर्थिक रफ्तार पर होना तय माना जा रहा है।

 
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