क्या आप भी पॉर्न देखते हैं… तो ये खबर आपके लिए है…

कड़वी ही सही लेकिन पॉर्न फिल्म आज के जमाने की हकीकत बन चुकी है। हालात ये हैं कि इन्डियन फिल्म इंडस्ट्री से बड़ा कारोबार आज पॉर्न यानी एडल्ट फिल्म इडस्ट्री का है। हमारे देश में भले ही इसे सामाजिक मान्यता का इंतेजार हो लेकिन दुनिया के तमाम देशों में पॉर्न फिल्मों में काम करना एक बड़ा प्रोफेशन माना जाता है।

अगर पॉर्न देखते हैं… तो ये खबर आपके लिए है…

हिन्दुस्तान में इन फिल्मों को लेकर तमाम भ्रम हैं। तमाम युवा अपनी सेक्सुअल लाइफ में पॉर्न स्टर देखते हैं। परदे के पीछे की हकीकत क्या है इससे कम लोग ही वाकिफ हैं। आज आपको इसी हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश करते हैं।

भारत में एडम ग्लेजर का नाम कोई जानता होगा। ये एक बड़े पॉर्न स्टार और डायरेक्टर हैं। उनके खाते में सौ से अधिक फिल्में हैं। इन्होंने पुरुषों के लिए सेक्स गाइड भी लिखी है। अपना जमाजमाया खानदानी धंधा है लेकिन फिर भी इन्होंने पॉर्न इंडस्ट्री ज्वाइन की।

भारत में पॉर्न फिल्मों की भारी डिमांड 

एक बातचीत में इन्होंने इस इंडस्ट्री की जो तसवीर बयां की वो वेहद चौंकाने वाली है। खासकर भारत जैसे देश में जहां पॉर्न फिल्मों की भारी डिमांड रहती है। ग्लेजर का कहना है कि परदे पर नज़र आने वाला और रोमांचित कर देने वाला सीन वास्तविक नहीं होता।

वह कहते हैं कि एक आम आदमी जब पॉर्न देखता है तो फिल्म के कलाकार उसे कामकला के सुपर हीरो नजर आते हैं। उसका लिंग कितना बड़ा था, उसका शरीर कितना संतुलित था। वह महिला कैसे उत्तेजित थी। उन्होंने कहा कि एक निदेशक के तौर पर मैं फैंटैसी की रचना करता हूं। फिल्म की योजना, कॉस्ट, शूट और डायरेक्ट करने में इस तरह के बाते तय की जाती हैं।

एडम के अनुसार समस्या तब शुरू होती है जब दर्शक अपनी कल्पनाओं, सेक्स क्षमताओं और खुद की असुरक्षा को इनसे जोड़ लेता है। वह इसी तरह सोचना शुरू कर देता है कि काश, उसका शरीर भी उस पॉर्न स्टार जैसा होता, उसकी साथी भी ऐसा ही करती। कल्पना कीजिए कि सच क्या है। जो पॉर्न आप मोबाइल, कम्प्यूटर या टीवी स्क्रीन पर देखते हैं वह वास्तविक जीवन का सही आईना नहीं होता। एडम कहते हैं कि दर्शकों तक वास्तविकता का एक छोटा हिस्सा ही पहुंचता है। सच को जानने के लिए आपको कुछ कड़वी हकीकतों से रूबरू होना पड़ेगा। फिल्म की एडिटिंग के वक्त उन तमाम सीन्स को काट कर निकाल दिया जाता है जो महिलाओं पीड़ा देते हैं।

साथ ही लोग वो भी नहीं देख पाते कि किस तरह कैमरा स्टार्ट होने के पहले ताकत की गोलियां खायी जा रहीं हैं या फिर पुरूषों के यौनांग में कैसे इंजेक्शन दिये जा रहे हैं। आप केवल तैयार प्रोडक्ट देखते हैं। आप ये नहीं देखते कि कैसे शूटिंग के दौरान कैमरा बीच में कितनी बार रुकता है। आप जो कुछ भी देखत हैं वो कोई स्टार नान स्टाप नहीं कर रहा होता है।

एडल्ट फिल्मों की एक कड़वी हकीकत ये भी है कि इन फिल्मों में काम करने वाले कई कलाकार लम्बे समय के लिए अपनी यौन क्षमता खो देते हैं या फिर स्थायी रूप से यौन रोगी हो जाते हैं। इसी तरह अप्राकृतिक सेक्स में शामिल होने वाली महिला कलाकार चार से 12 घंटे पहले खाना बंद कर देती है। तीन से चार बार एनीमा लेती है। इन महिला या पुरूष कलाकारों के लिए पैसा ही सब कुछ होता है न कि सेक्स। महिलाओं के स्खलन को लेकर भी भ्रांति है ये कलाकार सीन के समय पेशाब करती हैं न कि स्खलित होती हैं इसके लिए ये जमकर पानी पीती हैं।

 
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