क्या आप जानते हैं श्राद्ध में कुश और तुलसी से ही होता हैं पितरों का कल्याण

दर्भ मूले स्थितो ब्रह्मा मध्ये देवो जनार्दनः। दर्भाग्रे शंकरं विद्यात त्रयो देवाः कुशे स्मृताः।।क्या आप जानते हैं श्राद्ध में कुश और तुलसी से ही होता हैं पितरों का कल्याण

विप्रा मन्त्राः कुशा वह्निस्तुलसी च खगेश्वर। नैते निर्माल्यताम क्रियमाणाः पुनः पुनः।।
तुलसी ब्राह्मणा गावो विष्णुरेकाद्शी खग। पञ्च प्रवहणान्येव भवाब्धौ मज्ज्ताम न्रिणाम।।
विष्णु एकादशी गीता तुलसी विप्रधनेवः। आसारे दुर्ग संसारे षट्पदी मुक्तिदायनी।।

पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध में तिल और कुश की महत्ता इस मंत्र के द्वारा बताई गई है। जिसमें भगवान विष्णु कहते हैं कि तिल मेरे पसीने से और कुश मेरे शरीर के रोम से उत्पन्न हुए हैं। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए। ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं। ब्राह्मण, मंत्र, कुश, अग्नि और तुलसी ये कभी बासी नहीं होते, इनका पूजा में बार-बार प्रयोग किया जा सकता है।

क्या होती है षट्पदी
तुलसी, ब्राह्मण, गौ, विष्णु तथा एकादशी व्रत ये पांच डूबते लोंगों के लिए नौका के सामान होते हैं। विष्णु, एकदशी, गीता, तुलसी, ब्राह्मण और गौ ये मुक्ति प्रदान करने के साधन हैं।  यही षट्पदी कहलाती है। श्राद्ध और तर्पण ये प्रधान हैं और पुरुषार्थ चतुष्टय को देने वाले हैं। तुलसी की गंध से पितृगण प्रसन्न हो कर अपने परिजन को आशीर्वाद देकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिन्दर्चन करने से पितृ अनंतकाल तक तृप्त रहते हैं।

ब्राह्मण का करें ऐसे सम्मान
श्राद्ध में ब्राह्मण को बैठाकर पैर धोना चाहिए, खड़े होकर पैर धोने से पितृ निराश होकर चले जाते हैं, क्योंकि ब्राह्मण के शरीर में समाकर ही पितृ तर्पण और भोजन का आनंद लेते हैं।

पितृपक्ष का महादान
गाय, भूमि, तिल, सोना, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक इन दस वस्तुओं का दान महादान कहलाता है। जबकि तिल, लोहा, सोना, कपास, नमक, सप्त धान्य, भूमि और गौ ये अष्ट महादान कहे जाते हैं।

Back to top button