कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती , स्मृति ईरानी

स्मृति ईरानी की सालों की मेहनत आखिर अमेठी में रंग लाई। इस बार उन्होंने वो कर दिखाया जिसके बारे में सिर्फ सोचा ही जा सकता था। इसे जमीन पर उतारना आसान कतई नहीं था। स्मृति ने गांधी परिवार की परंपरागत सीट पर जीत के कदम बढ़ा दिए हैं। ये इस चुनाव का सबसे बड़ा उलटफेर कहा जा सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष को हराना उन्हें भारत के सियासी इतिहास में दर्ज करवा देगा। 

आसमां में सुराख…

स्मृति को मतगणना में लगातार बढ़त मिल रही थ।शाम 6 बजे उन्होंने ट्वीट भी किया- कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता … । 
असल में कहें तो शायद उन्हें जीत का संभावनाएं 2014 के बाद ही नजर आ गई थी। इस दौरान केंद्र सरकार में वह विवादों में भी आई। उनका कद भी कम किया गया। लेकिन ये उनका जज्बा ही था कि हार नहीं मानी और अमेठी फतह करके पीएम मोदी और अमित शाह को इस चुनाव का सबसे बड़ा तोहफा दे दिया। 

अमेठी से लगातार पिछड़ रहे राहुल ने प्रेस कांफ्रेंस में भी अपनी हार मानते हुए कहा कि अब अमेठी की देखभाल स्मृति ईरानी करें। अमेठी ने अगर स्मृति को अपनाया है तो उसकी वजह भी है। 2014 में भी स्मृति ने पूरो जोर लगाया था लेकिन राहुल भारी पड़े। लेकिन इस हार में स्मृति के लिए जीत का सूत्र छिपा था। उन्होंने राहुल की जीत का मार्जिन बहुत कम कर दिया था। 

2009 लोकसभा चुनाव में करीब साढ़े तीन लाख वोटों से जीतने वाले राहुल गांधी पर 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर करीब-करीब भारी ही पड़ गई थी। पिछली बार स्मृति ईरानी उनके खिलाफ मैदान में थीं और राहुल की जीत का अंतर घटकर करीब एक लाख वोटों का रह गया था। यहीं से भाजपा और स्मृति को महसूस होने लगा कि अमेठी की बाजी जीती जा सकती है। उनके इसी भरोसे ने आज उन्हें अमेठी की नायिका बना दिया है। 

जुदा-जुदा अंदाज …

लोकसभा चुनाव 2019 में जीत के लिए प्रचार में जोरशोर से जुटीं भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का अंदाज इस बार कुछ अलग ही था। इसे यूं समझ सकते हैं। वाकया 28 अप्रैल का है। इलाके में प्रचार के लिए आईं स्मृति को मुंशीगंज के पश्चिम दुआरा गांव के खेतों में आग लगने की सूचना मिली। मामले की जानकारी मिलते ही वह आग बुझाने के लिए दौड़ पड़ीं और ग्रामीणों की मदद की। फायर ब्रिगेड की
                                                         
गाड़ी पहुंचने तक उन्होंने हैंडपंप से पानी भरा और बाल्टी लेकर ग्रामीणों के साथ आग बुझाने में डटी रहीं। स्मृति के इस अंदाज ने बता दिया था कि वह अमेठी के लोगों का दिल जीतने आई हैं। 
बहरहाल, अमेठी की हार राहुल के लिए कभी न भुलाने वाला सपना साबित हो सकता है। इस सीट से उनके पिता राजीव गांधी, संजय गांधी चुने जाते रहे हैं। अंत में पिता की विरासत को राहुल गांधी संभाल नहीं सके। बकौल राहुल, अब अमेठी स्मृति ईरानी के हवाले हो गया है। वह राहुल गांधी की जगह लेंगी। उम्मीद है कि अमेठी की जनता को अब वह सब मिलेगा जिसका उन्होंने वादा किया है। 

इस जीत के साथ ही नए कैबिनेट में उनका कद बढ़ना तय हो गया है। उन्होंने उस नेता को हराया है जो हालिया समय में भाजपा और मोदी-शाह पर सबसे बड़ा हमलावर रहा है। ऐसे में अगर स्मृति को एक बड़ा मंत्रालय दे दिया जाए तो हैरत किसी को नहीं होनी चाहिए। 

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