कोरोना वायरस की तरह भारत में एक और वायरस की एंट्री, पूरी तरह से बर्बाद कर सकता हैं…

भारत में कोरोना वायरस की तरह ही एक और बीमारी फैल रही है. लेकिन इस बीमारी से इंसानों को दिक्कत नहीं होगी, बल्कि केलों की फसल पर बुरा असर पड़ेगा. इसका नाम है बनाना कोविड Banana Covid. वैसे इसे वैज्ञानिक भाषा में फ्यूजेरियम विल्ट टीआर4 कहते हैं. यह एक प्रकार का फंगस होता है जिससे केले की फसल बुरी तरह से खराब हो जाती है. 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश है. जिस बीमारी की बात की जा रही है वह सबसे पहले ताइवान में मिली थी. उसके स्ट्रेन का नाम था ट्रॉपिकल रेस 4 (TR4). इसके बाद यह मिडिल ईस्ट के देशों से होते हुए अफ्रीका पहुंचा. फिर उसके बाद लैटिन अमेरिकी देशों में पहुंच गया.

नेशनल रिसर्च सेंटर ऑफर बनानास की निदेशक एस. उमा ने बताया कि फ्यूजेरियम विल्ट टीआर 4 को हम केले की फसल का कोरोना वायरस कोविड-19 कह सकते हैं. क्योंकि इसकी वजह से पूरी दुनिया में केले की फसलें खराब हुई हैं. 

एस. उमा ने बताया कि अब इस बीमारी का हॉटस्पॉट उत्तर प्रदेश और बिहार की फसलों पर ज्यादा पड़ने की संभावना है. हम इस बीमारी को रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. लेकिन पता नहीं कितना संभव हो पाएगा इसे रोकना. 

संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन ने टीआर4 को दुनिया की सबसे भयावह फसलों की बीमारी बताया है. इस बीमारी को रोकने का कोई तरीका नहीं है. न ही इसकी कोई दवा बनाई गई है. इसे रोकने का एक ही तरीका है वह है प्लांट क्वारनटीन

इस बीमारी की वजह से पूरी दुनिया में 1.96 लाख करोड़ रुपये के केले की फसल बर्बाद हुई है. क्योंकि केला इकलौता ऐसा फल है जिसे पूरी दुनिया में खाया जाता है. केलों को बचाना है तो पौधों को प्लांट क्वारनटीन में भेजने की तैयारी करनी होगी. 

भारत से हर साल करीब 2700 करोड़ किलोग्राम केले का उत्पादन होता है. करीब 100 वैराइटी के केले देश में पैदा किए जाते हैं. टीआर4 सबसे ज्यादा केलों की उन वैराइटी को बर्बाद करता है जो कॉमन हैं. जिसे लोग सबसे ज्यादा खाते हैं. यानी पीले रंग का मुड़ा हुआ केला. जिसे ग्रैंड नैन कहा जाता है. 

भारत में केले का उपयोग सबसे ज्यादा घरेलू है. यहां से ज्यादा एक्सपोर्ट नहीं होता. इक्वाडोर दुनिया का सबसे बड़ा केला निर्यातक देश है. अभी तक वैज्ञानिक ये पता नहीं कर पाए हैं कि भारत में यह बीमारी आई कहां से और किसी तरह से आई.

फ्यूजेरियम विल्ट टीआर4 बीमारी नई नहीं है. इस बीमारी ने 1950 में केले की वैराइटी ग्रोस मिशेल को पूरी तरह से खत्म कर दिया था. इसके बाद नई वैराइटी आई जिसका नाम है ग्रैंड नैन. लेकिन अब ये वैराइटी भी टीआर4 की चपेट में आने लगी है. 

एस. उमा ने बताया कि मुद्दा ये है कि हमें इस फंगस के हमले से बचने वाली वैराइटी बनानी पड़ेगी. या फिर इससे बचने के लिए कोई दवा बनानी बड़ेगी. केले के लिए ये बीमारी फिलहाल कोरोना वायरस जैसी ही है. कोई इलाज नहीं, कोई रोकथाम नहीं.

इंडियन एकेडमी ऑफ हॉर्टीकल्चर साइंसेज के प्रेसीडेंट केएल चड्ढा ने बताया कि केले की इस बीमारी का स्ट्रेन भारत में 8-9 महीने पहले आया था. अगर इससे ग्रैंड नैन की फसल खराब होती है तो वाकई ये सबसे बुरी खबर है.

ग्रैंड नैन का देश में 55 फीसदी उत्पादन होता है और जितने केले एक्सपोर्ट किए जाते हैं उनमें 62 फीसदी इसका एक्सपोर्ट होता है. इस बीमारी की वजह से बिहार के कटिहार, पूर्णिया और उत्तर प्रदेश का महराजगंज जिला बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है. 

इस बीमारी को रोकने का एक ही तरीका है कि खराब पौधे के आसपास के पौधे हटा दें. यानी बीमार पौधे को क्वारनटीन करना होगा. अगले एक-दो साल के लिए चावल की खेती कर ले.  इसके बाद फिर केले की फसल लगा सकते हैं.

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