कोरोना पर चंद मुसलमानों की गैर जिम्मेदारी

हिसाम सिद्दीक़ी 
कोरोना का इंसानों को तबाह करने वाला वायरस चीन के वोहान से गुजिश्ता नवम्बर से निकला। खबर आई कि वोहान में चीनी सरकार कोई इंतेहाई खतरनाक कैमिकल हथियार बनवा  रही थी जिसमें लीकेज की वजह से यह वायरस पैदा हुआ। पन्द्रह नवम्बर को ही वोहान में कोरोना वायरस के शिकार एक मरीज की शिनाख्त हो गई थी, जिस नौजवान डाक्टर ने चीन सरकार को यह इत्तेला दी थी उसे ही इस वायरस का शिकार लोगों का इलाज करने में लगा दिया गया बाद में उसकी मौत हो गई। उसकी बूढी वालिदा का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्होने कहा कि वायरस की हकीकत दुनिया के सामने न आने पाए इस लिए सरकार ने ही उनके बेटे को मरवा दिया है। उस बूढी खातून ने अपने बेटे के भेजे हुए आखिरी ह्वाट्स एप मैसेज का स्क्रीन शाट लिंक कर अपनी अपील का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया कि उसके बेटे को बचाया जाए। बेटे ने अपने आखिरी मैसेज में लिखा था कि मां आज रात से कल सुबह तक आपके बेटे को मार दिया जाएगा। चीन सरकार इस पूरे मामले पर खामोश रही। जब चीन में वायरस को थोड़ा काबू करने में कामयाबी हासिल हो गई तो चीन की जानिब से एक खबर लीक की गई कि नवम्बर के शुरू में चीन और अमरीका की मुश्तरका (ज्वाइण्ट) एक्सरसाइज हुई थी उसमें शामिल होने के लिए जो अमरीकी फौजी चीन आए थे अमरीका ने उनके जरिए यह खतरनाक कैमिकल वायरस चीन में भेजा था ताकि चीन की मईशत (अर्थव्यवस्था) को कमजोर किया जाए। हकीकत क्या है यह तो चीन और अमरीका ही बता सकते हैं लेकिन दोनों का जो रिकार्ड रहा है उसपर एक नजर डाली जाए तो यकीन के साथ कहा जा सकता है कि यह दोनों दुनिया पर अपनी बालादस्ती (अधिपत्य) कायम करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं और किसी भी हद तक जा सकते है। इस मामले की सच्चाई कुछ भी हो फिलहाल तो हकीकत यह है कि कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपने असर में ले रखा है।
कोरोना वायरस फैले महीनों गुजर चुके हैं लेकिन अब तक इसका कोई मुअस्सर (प्रभावशाली) इलाज या वैक्सीनेशन अमरीका और चीन समेत कोई मुल्क तैयार नहीं कर सका है। डाक्टरों और दुनिया भर के माहिरीन यही कहते हैं कि फिलहाल तो इससे महफूज रहने के चार-पांच तरीके ही है। सबसे पहला तरीका है कि लोग अल्लाह, ईश्वर और गॉड से दुआएं करें, दूसरा यह कि भीड़ में शामिल न हों हद तक इमकान अलग-अलग रहें जिसे अंग्रेजी में सेल्फ आइसोलेशन कहते हैं तीसरा यह कि दहशतजदा न होना। डाक्टरों ने कहा कि दहशतजदा या खौफजदा होने से कोराना ही नहीं कोई भी वायरस तेजी से असर करता है। लेकिन अगर बाहौसला है तो आपका एम्यून सिस्टम ज्यादा मजबूत हो जाता है। चौथा अच्छी सेहतमंद गिजा (खुराक) और पांचवां यह कि उबला हुआ पानी ठंडा करके पिया जाए। इन पांचों में सबसे ज्यादा जरूरी इलाज भीड़ में शामिल न होना और अकेले में रहना या दूसरों से फासला बना कर रहना यह कह सकते हैं कि भीड़ में शामिल न होना भी इसका एक बड़ा इलाज है। इसका अंदाजा भी चीन के बुहान में भी लगा चीन सरकार ने बुहान की मल्टी स्टोरीज बिल्डिंगों में रहने वाले लोगों को उनके फ्लैट्स में ही बंद कर दिया। बंद होने वालों की तादाद लाखों में थी। वह लोग अपने फ्लैट्स से निकल न पाएं इसके लिए उनकी इमारतों से बाहर निकलने के तमाम रास्ते जीने और लिफ्टों को पूरी तरह से सीज कर दिया गया। फ्लैटों में कैद लाखों लोग दिन-रात चीखते थे रात में उनकी चीखें इतनी खौफनाक और डरावनी हो जाती थीं कि वीडियो देखने से भी घबराहट होती थी। कुछ दिनों तक इन लोगों के बंद रहने का नतीजा यह हुआ कि वुहान में सबसे पहले कोरोना का असर खत्म हो गया।
हिन्दुस्तान समेत पूरी दुनिया में लोगों को भीड़ में जाने या इकटठा होने से रोका गया। बाजार बंद हो गए पब और डांस बार पूरी तरह बंद किए गए माल्स और दफ्तर बंद करके मुलाजमीन से कहा गया कि वह अपने घरों में रह कर काम करें चर्च बंद हो गए और सऊदी अरब, बहरीन, यूएई, कतर, ईरान और कुवैत समेत बेश्तर (अधिकांश) मुमालिक में मस्जिदें तक बंद कर दीं गई लोगों से कहा गया कि वह घरों में नमाज अदा करें। सऊदी अरब में खाना-ए-काबा, मक्का मुअज्जिमा के सबसे बड़े इमाम सुदैस की सदारत में उलेमा की मीटिंग हुई कुरआन की आयत की रौशनी में तय हुआ कि हरमैन यानी मक्का में खाना-ए-काबा और मदीना मुनव्वरा में मस्जिद-ए-नबवी के अलावा मुल्क की तमाम मसाजिद फिलहाल कोरोना की वबा रूकने तक बंद कर दी जाएं कहीं भी नमाज नहीं होगी हां एक मुअज्जिन हर वक्त की अजान जरूर देगे लेकिन नमाजी मस्जिदों में नहीं जाएंगे अपने-अपने घरों में ही नमाज अदा करेगे। खाना-ए-काबा और मस्जिदे नबवी में भी चंद नमाजी ही नमाज अदा करने आंएगे ज्यादा भीड़ इकटठा करने की जरूरत नहीं है। मसाजिद बंद करने का फैसला आसान नहीं बल्कि इंतेहाई तकलीफदेह अमल था लेकिन अपनी जान हलाकत में मत डालो जैसे अल्लाह के हुक्म के मुताबिक मजबूरन यह फैसला लिया। इस फैसले के बाद खाना-ए-काबा में जो पहली नमाज हुई उसमें बमुश्किल सौ लोग शामिल हुए नमाज पढाते वक्त इमाम साहब और पीछे खडे मुक्तदी सबके सब नमाज के दौरान जारो कतार रोते ही रहे।
हिन्दुस्तान में भी यह मसला दरपेश था नई दिल्ली समेत कई प्रदेशों की सरकारों ने फैसला किया कि कोरोना वायरस की वबा ठंडी पड़ने तक शादी-व्याह, बाजारों और इबादतगाहों कहीं भी भीड़ इकटठा नहीं होने दी जाएगी। अब मुसलमानों के सामने यह मसला पैदा हुआ कि मसाजिद में नमाज खुसूसन जुमे की नमाज का क्या होगा। आजकल मसाजिद में नमाजियों की तादाद काफी ज्यादा होती है। जुमे के दिन तो मसाजिद भर जाती हैं बडी तादाद में लोग बाहर सहन में और सड़कों तक पर नमाज अदा करते है। कई शहरों, गांवों और मोहल्लों में तय किया जाने लगा कि मसाजिद में कम से कम लोग नमाज अदा करने जाएं। कई लोगों ने उलेमा से इस सिलसिले में उनकी राय हासिल की कि क्या जुमे के दिन घरों में जुहर की नमाज ही अदा करना मुनासिब है। कई उलेमा का जवाब था कि अगर हरमैन में नमाजियों की तादाद महदूद (सीमित) की जा सकती है तो यहां भी वैसा ही कर सकते हैं। देवबंद से ताल्लुक रखने वाले मुफ्ती बुरहान उद्दीन कासमी और मुफ्ती अरशद फारूकी ने इससे इत्तेफाक नहीं किया। मिल्लत टीवी से बात करते हुए मुफ्ती अरशद फारूकी ने इतेहाई सख्त राय देते हुए कहा कि भले ही सऊदी उलेमा ने कुरआन की आयत की रौशनी में फैसला किया है लेकिन हम उनके फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते, हम तो मसाजिद में ही जाकर नमाज अदा करेंगे। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान के उलेमा कोई भी मजहबी फैसला करने की सलाहियत रखते हैं इस लिए दूसरे किसी भी मुल्क के उलेमा के फैसले को तस्लीम नहीं करेगे। उनके इस बयान को दीन के मुताबिक फैसला कहे जाने के बजाए उनकी बेजा ‘जिद’ का फैसला कहना ही मुनासिब होगा। इसी किस्म के उलेमा के मश्विरों का ही असर था कि बीस मार्च को जुमे की नमाज में मसाजिद में भीड़ कम नहीं हुई।
मुफ्ती अरशद फारूकी ने तो इंतेहा ही कर दी और कहा कि इस किस्म के वबाई अमराज से बचने के लिए सबसे पहला अमल तो अल्लाह से रूजूअ करने का है और अल्लाह से रूजूअ करने की जगह सिर्फ मस्जिद ही है। तो क्या वह यह कह रहे थे कि हिन्दुस्तान जैसे मुल्क की ख्वातीन अल्लाह रूजूअ ही नहीं कर सकती क्योकि इन उलेमा ने ही ख्वातीन को मसाजिद से दूर रखा है। उनका यह बयान कि भले ही सऊदी उलेमा ने कुरआन की आयत की रौशनी में फैसला किया है लेकिन हम हिन्दुस्तान में उनका फैसला नहीं मानेंगे। इंतेहाई गैर जिम्मेदाराना बयान है। मुसलमान सऊदी अरब के हों या दुनिया के किसी भी मकाम के हों वह कुरआन की आयत की रौशनी में किए गए फैसले अगर नहीं मानेंगे तो उन्हें मुसलमान कौन मानेगा। मुफ्ती अरशद फारूकी काफी पढे लिखे शख्स हैं लेकिन इस किस्म की बातें करके उन्होने मुसलमानों को कनफ्यूजन में डालने का काम कर दिया अब तो उनकी तमाम बातों पर नजरसानी करनी चाहिए।
उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि अगर कोरोना की वबा इटली और दीगर मगरिबी दुनिया के मुल्कों की तरह हिन्दुस्तान में भी भयानक शक्ल अख्तियार कर गई तो यहां पच्चीस-तीस लाख लोग तक उसका शिकार होकर मौत के मुंह में चले जाएंगे। वजह यह है कि एक सौ तीस करोड़ के मुल्क में न तो मुनासिब किस्म के आइसोलेशन वार्ड हैं न अस्पतालों में ऐसे मरीजों को रखने की सलाहियत है। इसी लिए तो वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने मुल्क को खिताब करते हुए पब्लिक कर्फ्यू पर ज्यादा जोर दिया। यह नहीं बता पाए कि इस वबा से बचाने के लिए क्या बंदोबस्त सरकार ने किए है। मुफ्ती अरशद फारूकी जैसे गैर जिम्मेदार बल्कि मुजरिम जेहन लोग वह भी हैं जिन्होनें इस बात पर जिद की कि कोरोना की वबा की परवा किए बगैर वह लोग शाहीन बाग और लखनऊ के घंटाघर की तर्ज पर मुल्क भर में मुजाहिरा कर रही ख्वातीन को मुजाहिरा खत्म नहीं करने देंगे। यह बहुत ही खतरनाक तरीका है नरेन्द्र मोदी और योगी आदित्यनाथ जैसी सरकारों का रवैया चाहे कितना ही मुस्लिम मुखालिफ क्यों न हो मुसलमानों को मुल्क के आम लोगों और अपनी खुद की सेहत खराब करने की कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।
साभार :*जदीद मरकज़ (29 मार्च -04 अप्रैल 2020 **एडिटोरियल* www.jadeedmarkaz.com

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