कोरोना के लिए रामबाण माने जाने वाले इलाज को ICMR ने किया खारिज, अब…

कोरोना वायरस के इलाज में फिलहाल प्लाज्मा थेरेपी को बहुत कारगर बताया जा रहा था. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अमेरिका ने भी कोरोना वायरस पर नियंत्रण के लिए दिल्ली मॉडल को लागू किया है. केजरीवाल ने कहा था कि अमेरिका ने कोविड-19 के रोगियों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को अपनाया है. सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा था कि वो कहते थे कि अमेरिका जो आज करता है, भारत कल करेगा लेकिन अब दिल्ली का अनुसरण अमेरिका कर रहा है. हालांकि, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में भारत में मरीजों को दी जा रही प्लाज्मा थरेपी पर स्टडी की गई है जिसके नतीजे निराश करने वाले हैं. स्टडी के अनुसार, प्लाज्मा थेरेपी हल्के से गंभीर लक्षण वाले कोरोना वायरस के मरीजों में मरने के खतरे को किसी तरह कम नहीं करती है.

स्टडी में ये भी कहा गया है कि गंभीर मामलों में प्लाज्मा थेरेपी देने के बाद भी मौत का खतरा बना रहता है. इसके अलावा, ये थेरेपी इंफेक्शन को भी बढ़ने से नहीं रोकती है. स्टडी के लिए प्लाज्मा थेरेपी के इस ट्रायल को प्लासिड ट्रायल (PLACID) का नाम दिया गया है. इस स्टडी के नतीजे प्रीप्रिंट सर्वर मेडरिक्स पर प्रकाशित किए गए हैं.

22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 39 जगहों पर प्लासिड ट्रायल किया गया था जिसमें कुल 1210 मरीजों की जांच  की गई. ट्रायल में जिन मरीजों का इलाज सिर्फ कोरोना वायरस के लिए दी जाने वाली दवाओं से किया जा रहा था उनकी तुलना दवाओं के साथ प्लाज्मा थेरेपी भी दिए जाने वाले मरीजों से की गई.

ट्रायल के लिए प्लाज्मा डोनर देने वाले ज्यादा पुरूष (94.3%) थे जिनकी औसत उम्र 34 साल के आसपास थी. ये प्लाज्मा उन डोनर से लिया गया था जिन्हें कोरोना वायरस से ठीक हुए 41 दिन हो चुके थे. जिन मरीजों ने प्लाज्मा थेरेपी ली थी, उनमें ठंड लगना, मितली, चक्कर और दर्द जैसे मामूली लक्षण दिखने को मिले. ज्यादातर मरीजों में बुखार और दिल की धड़कनें बढ़ जाने जैसी शिकायत पाई गई.

स्टडी में कहा गया है कि इस ट्रायल में 79 फीसदी लोगों में एंटीबॉडीज पाई गई. प्लाज्मा थेरेपी का कारगर होना मरीज की उम्र, बीमारी की गंभीरता और प्लाज्मा डोनर की उम्र पर भी बहुत हद तक निर्भर करता है. कोरोना से ठीक हुए मरीजों को प्लाज्मा डोनेट करने के लिए प्रेरित जा रहा है. ज्यादातर डोनर कम उम्र के और मामूली लक्षण वाले ही आ रहे हैं.

स्टडी में कहा गया है कि कोरोना से ठीक हुए युवाओं के प्लाज्मा हल्के या गंभीर लक्षण वाले मरीजों को फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं. आपको बता दें कि भारत सहित कई देशों में प्लाज्मा थेरेपी को एक कारगर इलाज के रूप में देखा जा रहा है. भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल के तहत प्लाज्मा थेरेपी दी जा रही है. 

ये स्टडी इसलिए भी अहम है क्योंकि अब तक इस बात का दावा किया जा रहा था कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना के मरीजों की जान बचाई जा सकती है. भारत में सबसे पहले दिल्ली में प्लाज्मा बैंकी की शुरूआत हुई थी. महाराष्ट्र में भी प्लाजमा बैंक की सुविधा शुरू की गई है.

जब तक कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक हेल्थ एक्सपर्ट और वैज्ञानिक प्लाज्मा थेरेपी को एक प्रायोगिक उपचार के तौर पर देख रहे हैं. इसे कोरोना का कारगर इलाज नहीं कहा जा सकता है.

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