जानें कुंती की मृत्यु का ये राज

कुंती, युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम की माता थीं। कुंती पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। वह वसुदेव जी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं।

सचमुच होती हैं जलपरी! रामायण में है उल्लेखजानें कुंती की मृत्यु का ये राजमहाराज कुंतीभोज ने कुंती को गोद लिया था। ये हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थीं। कुंती को विवाह से पहले महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था कि कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी।

पांडु और कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया। और धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता का आवाहन किया। अर्जुन तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इंद्र से हुए। कुंती का एक नाम पृथा भी है।

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कुंती की मृत्यु कैसे हुई इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल हुआ यूं था कि महाभारत युद्ध के लगभग 15 साल बाद परिवार के तीन वरिष्ठ गांधारी, कुंती और धृतराष्ट्र, शाही रहन-सहन छोड़कर अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए वन की ओर प्रस्थान करते हैं।

संजय जो हमेशा से ही धृतराष्ट्र के साथ थे। वह भी इन तीनों के साथ वन में चले जाते हैं। करीब 3 साल तक गंगा किनारे एक घने वन में बनी छोटी सी कुटिया में रहते हुए मां गंगा से यह प्रार्थना करते हैं कि वो उनके पापों को माफ कर इस जन्म से मुक्ति दिलवाएं।

एक दिन की बात है धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है, जिसकी वजह गांधारी, कुंती और संजय को कुटिया छोड़नी पड़ती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं, ये देखने कि कहीं उन्हें तो कोई खतरा नहीं है।

संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहता हैं, क्योंकि पूरा जंगल आग से जल रहा था। लेकिन धृतराष्ट्र उन्हें कहता है कि यही वो घड़ी है जब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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तीनों लोग वहीं रुक जाते हैं और उनका शरीर उस आग में झुलस जाता है। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं।

इस तरह साल बाद नारद मुनि आकर युधिष्ठिर को उनके परिवारजनों की मृत्यु का दुखद समाचार देते हैं।

 

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