कैसे और कब होगी आपकी मृत्यु, जानिए क्या कहता है ज्योतिषशास्त्र
इस संसार में केवल मृत्यु ही सत्य है, बाकी आपके आसपास जो भी है वो एक दिन नष्ट हो जाना है। मृत्यु से जुड़े कई रहस्य ज्योतिषशास्त्र में उजागर हैं। ज्योतिषशास्त्र में प्रत्येक जन्मकुंडली में छठवां भाव रोग, आठवां भाव मृत्यु तथा बारहवां भाव शारीरिक व्यय व पीड़ा का माना जाता है। आप भी ज्योतिषशास्त्र से मृत्यु के बारे में आसानी से जान सकते हैं। आइए जानते हैं क्या कहता है ज्योतिषशास्त्र, कैसे और कब हो सकती है मृत्यु…
इस तरह तो नहीं है शनि
अगर कुंडली में मंगल पांचवे, सूर्य सातवें और शनि नीच राशि में है तो ऐसे में 70 वर्ष की आयु में जातक की मृत्यु होने की आशंका होती है।
यह ग्रह तो नहीं है बलवान
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, कुंडली के आठवें भाग में जो ग्रह सबसे बलवान दिखता है, उसके धातु के प्रकोप से उसकी मृत्यु होती है। आसान भाषा में समझें तो जैसे सूर्य अष्टम भाग में है तो अग्नि से, चंद्रमा है तो जल से, मंगल है तो आयुध से, बुध है तो बुखार से, बृहस्पति है तो कफ से, शुक्र है तो क्षुधा और शनि है तो तृषा रोग से जातक की मृत्यु हो सकती है।
रोग से होती इनकी मृत्यु
अगर आपकी कुंडली का आठवां भाग पापग्रह युक्त है तो ऐसे मृत्यु कष्टकारक हो सकती है। वहीं अगर शुभाग्रह से युक्त है तो बिना किसी रोग के यानी उसकी मृत्यु आयु पूरी होती है।
आखों से शुरू होती है समस्या
ज्योतिषशास्त्रों का कहना है कि कुंडली में क्षीण चंद्रमा अष्टमस्थ है और शनि बलवान दिखता है तो आखों की समस्या से मृत्यु हो सकती है।
आठवें भाग में तो नहीं है सूर्य
अगर कुंडली में चंद्रमा लग्न में है, वहीं सूर्य निर्बल आठवें भाव में स्थित है, लग्न से बारहवें भाग में गुरु और सुखभाव में पापग्रह है तो जातक की मृत्यु दुर्घटना से होती है।
सूर्य और शनि तो नहीं है इसका कारण
अगर जातक की कुंडली में में लग्न से आठवें या त्रिकोणस्थ सूर्य, शनि, चंद्र और मंगल है तो शूल, व्रज या फिर दीवाल से टकाराकर या फिर सड़क पर एक्सीडेंट से मृत्यु होने की आशंका होती है