केदारनाथ त्रासदी को आज छह साल पूरे हो चुके फिर भी कई काम पड़े हैं अधूरे
केदारनाथ त्रासदी को आज छह साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन यात्रियों की भीड़ को नियमित करने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है. साथ ही फोटो मीट्रिक पंजीकरण की व्यवस्था भी अधर में लटकी हुई है.
ऋषिकेश से रोटेशन में जा रहे यात्रियों का तो पंजीकरण हो रहा है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा यात्री बगैर पंजीकरण के सीधे केदारनाथ पहुंच रहे हैं. आपदा के बाद इससे उबरने को बेहतर व्यवस्था, सुरक्षा, वाहनों की नियंत्रित संख्या जैसे तमाम मुद्दों को लेकर कदम उठाने की बात हुई थी, लेकिन जमीन पर कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है.
15 जून 2013 को हुई तबाही से केदार घाटी अब करीब-करीब उबर चुकी है. केदारपुरी निखरी है. केंद्र और राज्य सरकारों ने भी केदारनाथ की ब्रांडिंग की. देश-दुनिया को संदेश दिया कि चारधाम यात्रा के लिए उत्तराखंड पूरी तरह सुरक्षित है. यही कारण है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ समेत चारधाम में उमड़ रहे हैं. इस सीजन में औसतन 25 हजार यात्री रोजाना बाबा केदार के दर्शनों को आ रहे हैं.
केदारनाथ में यात्रियों की बढ़ी संख्या तीर्थाटन और स्थानीय आर्थिक व्यवस्था के लिहाज से निश्चित रूप से अच्छा संकेत है. इसके बावजूद सवाल है कि 2013 की आपदा से क्या वास्तव में हम सबक ले पाए.
केदारनाथ त्रासदी के बाद सरकार ने दावा किया गया कि केदारनाथ में यात्रियों की संख्या नियंत्रित की जाएगी. यात्रियों के ठहरने के इंतजाम के हिसाब से ही यात्री वहां भेजे जाएंगे. इससे यात्रियों को भी दिक्कत नहीं होगी और वे आसानी से दर्शन भी कर सकेंगे. किसी आपात स्थिति से निपटने के मद्देनजर तुरंत प्रभावी कदम भी उठाए जा सकेंगे.
धीरे-धीरे केदारनाथ में व्यवस्थाएं जरूर जुटी हैं, मगर यात्रियों की संख्या नियंत्रित करने की दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही. वर्तमान में वहां सात हजार यात्रियों के ठहरने के इंतजाम हैं, मगर रोजाना पहुंच रहे हैं औसतन 25 हजार यात्री. ऐसे में व्यवस्था को लेकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. तब यह बात भी हुई थी कि केदारनाथ जाने वाले प्रत्येक यात्री का फोटोमीट्रिक पंजीकरण होगा.
इससे प्रशासन के पास यात्रियों का पूरा ब्योरा उपलब्ध रहेगा, लेकिन यह व्यवस्था भी दम तोड़ चुकी है.केवल ऋषिकेश से रोटेशन पर जाने वाले यात्रियों का ही पंजीकरण हो रहा है, जबकि, इससे कहीं अधिक यात्री तो सीधे निजी वाहनों अथवा हेली सेवाओं से केदारनाथ पहुंच रहे हैं. इसके अलावा अन्य कई दावे भी किए गए थे, मगर आपदा से उबरने के बाद इस दिशा में चुप्पी साध ली गई.