किसान बही की पहचान सिर्फ जमीनी सरकारी किताब बनकर रह गई

कुछ साल पहले किसानों को जारी की गई किसान बही की पहचान सिर्फ जमीनी सरकारी किताब बनकर रह गई है। इस किसान बही को जारी करते समय शासन में यह निर्णय लिया गया था कि किसान समस्याओं व दिक्कतों से दूर रहें। भूमि स्वमित्व यह विधि सम्मत अभिलेख समस्त सरकारी विभागों एवं बैंकों आदि में कानूनन मान्य तथा स्वीकार्य होंगे। किसान बही की प्रविष्टियों की प्रमाणित छाया प्रतिया जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र एवं निवास प्रमाण पत्र के लिए मान्य होगी। इसके लिए इन किसानों को अलग से उक्त प्रमाण पत्र हासिल करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन उक्त अभिलेख सिर्फ किसानों के परिचय पत्र के अलावा किसी भी मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं।इसके लिए इन किसानों को अलग से उक्त प्रमाण पत्र हासिल करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन उक्त अभिलेख सिर्फ किसानों के परिचय पत्र के अलावा किसी भी मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं।फालतू की भागदौड़ तथा प्रशासनिक कठिनाइयों से बचने के लिए कुछ वर्ष पहले शासन की ओर से महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया था। जिसमें प्रत्येक किसान को किसान बही उपलब्ध कराने का फैसला लिया गया। जिससे सभी खेतिहर किसानों को यह किसान बही राजस्व विभाग ने उपलब्ध भी करा दी थी। बताया जाता है कि पहले भूमि-स्वमित्व का यह प्रमाण पत्र भूमि के क्रय एवं विक्रय के समय भी कोई जरूरी नहीं रह गया है। जबकि किसान बही में भी इस बात के निर्देश हैं कि क्रेता और विक्रेता अगर खातेदार है तो किसान बही प्रस्तुत करना उनके लिए अनिवार्य होगा, ताकि उसमें क्रय-विक्रय भूमि के अंतरण संबंधित सही प्रविष्टि हो सके। किसान बही होने के बाद लेखपाल के बयान भी किसानों के इस कार्य में जरूरी नहीं होंगे। सरकार का यह निर्णय शुरुआती दौर में किसानों के लिए काफी आशाजनक था, लेकिन किसान बही अब उनके किसी काम की नहीं है।

क्या बोले अधिकारी

एसडीएम मोहनलालगंज संतोष कुमार सिंह ने बताया कि 1992 में इसकी पहल हुई थी, लेकिन यह पहल कारगर नहीं साबित हुई। ज्यादातर लोग किसान बही को अपडेट नहीं कराते हैं और कहीं पर किसी को कोई खास आवश्यकता भी नही पड़ती है।

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