कविता – ‘मेरी मोहब्बत’

मैं रहूँ या ना रहूँ
तुम नजर आओ या न आओ
फासले कम हो या ज्यादा
बात हो या ना हो
तेरे लिये प्यार कम हो न होगा

दिल मे है जो
तेरे अच्छे अहसास
कुछ मीठी खट्टी यादें
सुकून में गुजारे जो लम्हें
सब मेरे दिल मे रहेंगे
सचमुच तुम व्यस्त हो गये
मुझे सोचना भी छोड चुके हो

नाराज हो मुझसे
मुझसे से दूर जा चुके हो
पर दिल में मेरे तुम
धड़कन बन कर रहोगे
कभी हँस देना
मेरी गलतियों पर
नादानी समझ माफ कर देना
में जिंदगी हूँ या नही तुम्हारी
पर तुम मेरी साँसे बन चुके हो
दूर नही थे तुम मुझसे

जो तुमको पास बुलाऊँ
मेरी तन्हाई में भी तुम मेरे पास हो
चाँद राकेश बन चमकते
हो तुम आसमां में
में यामिनी बन बाहों का घेरा बनाती हूँ
इजहार करना नही आता है मुझको
पर तुम मेरी मोहब्बत बन चुके हो

कवयित्र:-गरिमा राकेश गौतम
पता:-कोटा राजस्थान
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