ओली.कबतक खैर मनाएगी बकरे की मां

यशोदा श्रीवास्तव, नेपाल मामलों के विशेषज्ञ—यशोदा श्रीवास्तव , नेपाल मामलों के विशेषज्ञ 
काठमांडू.नेपाल को लेकर भारत को अपने इस मत को थोड़ा परिर्वतित करना चाहिए कि वह किसी दूसरे देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करता. नेपाल राजनीति के जानकारों का साफ कहना है कि अब वक्त आ गया है जब भारत को नेपाल के मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए।इसी कड़ी में मधेसी क्षेत्र के एक सांसद ने कहा कि विकास के मुद्दे पर चीन का साथ तो ठीक है लेकिन इसके अतिरिक्त तमाम ऐसी वजहें हैं जिस नाते हम भारत अलग होने को सोच भी नहीं सकते.
इस बीच मधेस क्षेत्र के करीब 5 प्रतिशत मुस्लिम लोगों की इत्तेहाद कमेटी ने ओली के वैवाहिक नागरिकता संबंधी विल के विरोध में सड़क पर उतर आए हैं.ये वो तबका है जो तराई की राजनीति में नेपाली कांग्रेस या मधेशी दल के उम्मीदवार के साथ खुलकर रहता था। पिछले आम चुनाव में यह तबका दोनों का साथ छोड़कर कम्युनिस्ट पार्टी के साथ हो लिया था.नेपाली कांग्रेस से इनकी नाराजगी की वजह उसका हिंदू कार्ड था तो मधेसी उम्मीदवारों का कमजोर प्रदर्शन.
बहरहाल नेपाल की राजनीति में चीनी दखल चरम पर है. ओली सरकार बचाने के लिए उसके प्रयास इस हद तक है कि उसकी राजदूत ओली विरोधी प्रचंड तक से मिलकर उन्हें मैनेज करने की कोशिश में हैं. हालांकि प्रचंड अपने ओली विरोध पर अड़े रहे.इधर ओली अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए कोई हथकंडा छोड़ नहीं रहें.अब ओली ने नेपाल में भारत के सभी निजी टीवी चैनलों पर रोक लगा दी.साथ ही अपनी सरकार बचाने के लिए स्टैंडिंग कमेटी से भाग रहे ओली ने इस बैठक को पूरे एक सप्ताह के लिए ही स्थगित कर दी.बहाना अच्छा है, भू स्खलन,भारी बरसात आदि.न नुकुर के बाद अंततः प्रचंड को भी इस पर अपनी सहमति जतानी पड़ी.लगातार स्थगित हो रही यह बैठक शुक्रवार को होनी थी.ओली को लेकर विपक्षी दलों में आम प्रतिक्रिया है कि आखिर बकरे की मां कबतक खैर मनाएगी?
अब नेपाल के राजनीतिक गलियारों में ओली के भविष्य की अनिश्चितता के बीच एक नई खबर तेजी से फैल रही है,देश में इमरजेंसी लगाने को लेकर.खबर है कि कुर्सी छोड़ने के दबाव से हतोत्साहित प्रधानमंत्री ओली अपने खास लोगों से इस विषय पर चर्चा के साथ राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से भी मिले हैं. पीएम ओली अभी इसपर राजनीतिक नफा नुकसान को लेकर गुणागणित लगा रहे हैं. जानकारों का कहना है कि ओली पर चूंकि राष्ट्रपति की कृपा है इसलिए ऐसा संभव है. राष्ट्रपति शासन लगाने के पीछे कोरोना का बहाना ढूंढा जा रहा है.
इधर ओली के स्तीफे को लेकर सरकार और सरकार से असंतुष्टों के बीच जैसी लुकाछिपी चल रही है उससे साफ है कि वे स्तीफा देने वाले नहीं है.पार्टी स्टैंडिंग कमेटी की बैठकों से लगातार भाग रहे ओली के खिलाफ उनकी अनुपस्थिति में कोई कार्रवाई भी संभव नही है. इधर नेपाल की राजनीति को अस्थिर करने का षड्यंत्र चीनी राजदूत पर लगने लगा है. काठमांडू में चीनीदूतावास के समक्ष सरकार विरोधी संगठनों द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन भी हो रहा है.ओली से स्तीफा मांगने वालों का अपना अपना निहितार्थ है.किसीको पीएम की कुर्सी चाहिए तो किसीको अध्यक्ष पद.इस मामले चीनी दूतावास का प्लान दिलचस्प है. उसे ओली ही प्रिय हों ऐसा भी नहीं है. बस प्रचंड न हों.वह भी इसलिए कि उन्होंने ओली के भारत विरोधी बयान को गैर जरूरी बताते हुए आरोपों को सिद्ध करने की चुनौती दी है. ओली ने साफ कहा था कि भारत उनकी सरकार अस्थिर करना चाहता है.इसके बाद से ही चीन ने सारी ताकत ओली सरकार को बचाने में झोंक दी है.ओली से स्तीफा मांगने वालों में अकेले प्रचंड भर नहीं हैं. पूर्व पीएम माधव नेपाल सहित पूर्व अध्यक्ष झलनाथ खनाल तथा बामदेव गौतम भी हैं. सत्ता रूढ़ दल में अंदरखाने चर्चा है कि ओली के जाने की नौबत आने पर चीन की दूसरी पसंद माधव नेपाल भी हो सकते हैं. माधव नेपाल से चीन के रिश्ते ओली जैसे ही हैं.
इधर काठमांडू में भारतीय दूतावास इस उठापटक पर किसी गतिविधि में शामिल होने के बजाय खामोशी अख्तियार किए हुए है.भारतीय दूतावास की खामोशी भी ओली और उनके सर्मर्थकों को परेशान कर रही है.इधर सरकार न बचा पाने की स्थिति में इमरजेंसी लगाने के अलावा ओली द्वारा पार्टी तोड़ देने की भी संभावना व्यक्त की जा रही है.अभी संसद में ओली और प्रचंड समर्थकों के सांसदों की संख्या क्रमशः 80 और 36 है. जबकि 40 सदस्यीय पार्टी वर्किंग कमेटी में दोनों के समर्थक 25 और 15 की संख्या में है. 25 की संख्या में ओली से नाराज चल रहे पार्टी के वरिष्ठ सदस्य झलनाथ खनाल,बामदेव गौतम और माधव नेपाल के भी समर्थक हैं.यही हाल प्रतिनिधि सभा के 80 सांसदों का है.इसमें भी झलनाथ खनाल, बामदेव गौतम और माधव नेपाल के समर्थक हैं.पार्टी टूटने की स्थिति में ओली के साथ सरकार और संगठन के कितने सदस्य आते हैं, यह देखना जरूरी होगा.यदि ओली को अपनी सरकार बचाने या नई सरकार बनने की नौबत आई तो दोनों स्थिति में मधेशी और नेपाली कांग्रेस सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. नेपाली कांग्रेस और मधेशी दल दोनों ही ओली सरकार से नाराज चल रहे हैं लेकिन ये प्रचंड के समर्थन में आयें,यह दावा नहीं किया जा सकता.माधव नेपाल का नाम खुलकर सामने नहीं आया है लेकिन गुपचुप तरीके से वे भी गुणाभाग में लगे हैं.संसद में 26 सदस्यीय नेपाली कांग्रेस ओली सरकार बचाने या नई सरकार बनाने में देवदूत की भूमिका में हो सकती है. नेपाली कांग्रेस के कई बड़े नेता ओली और माधव नेपाल के संपर्क में बने हुए हैं.जहां तक मधेशी दलों की बात है, ये भरोसे लायक नहीं हैं.किसी की भी सरकार बनेगी,मलाईदार कुर्सी की लालच इन्हें उनके साथ जाने में गुरेज नहीं होगा.

Back to top button