एक वायरल तस्वीर ने पुलिस कमिश्नरेट को किया मजबूर

प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. बेरोजगारी के खिलाफ नौजवान सड़कों पर उतरे तो पुलिस उनके दमन के लिए उतर आई. पुलिस ने इस दौरान महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के मामले में सभी सीमाएं पार कर दीं.

महिला प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग में महिला पुलिस का रवैया भी बेहद शर्मनाक रहा. महिला पुलिसकर्मियों ने महिलाओं के साथ मारपीट की, उन्हें बाल पकड़कर घसीटा तो पुरुष पुलिसकर्मियों ने भी खूब मनमानी की. एक दरोगा ने तो सभी हदें पार करते हुए एक महिला प्रदर्शनकारी को जिस तरह से पकड़ा उसके लिए उसके खिलाफ यौन उत्पीड़न की धाराओं में मुकदमा लिखा जाना चाहिए था.
महिला उत्पीड़न की यह फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो हर तरफ इस दरोगा के खिलाफ आक्रोश उभर आया. हर तरफ उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग होने लगी. फोटो वायरल होने के बाद दबाव में आयी पुलिस कमिश्नरेट की तरफ से खेद व्यक्त किया गया लेकिन पुरुष दरोगा के खिलाफ कार्रवाई के बजाय एक तरह से उसे क्लीनचिट दे दी गई.

पुलिस कमिश्नरेट ने अपनी सफाई में कहा है कि क़ानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय से प्रदर्शनकारियों को हटाना ज़रूरी था. भीड़ अधिक होने की वजह से और इस प्रदर्शनकारी की वेशभूषा की वजह से अचानक से यह तय नहीं किया जा सका कि प्रदर्शनकारी महिला है या पुरुष. पुलिसकर्मी ने भूल की वजह से उसे पुरुष प्रदर्शनकारी समझकर हटाया. पुलिस कमिश्नरेट महिलाओं का सम्मान करता है. इसके लिए खेद है.
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पुलिस कमिश्नरेट ने आरोपित दरोगा को बचाने के लिए जो सफाई पेश की उस सफाई में ही तमाम छेद हैं. दरोगा समझ नहीं पाया कि प्रदर्शनकारी महिला है या पुरुष जबकि प्रदर्शनकारी ने स्टोल (एक तरह का दुपट्टा) ओढ़ा हुआ था. दूसरी बात भूलवश भी अगर दरोगा ने उसे पुरुष समझकर पकड़ा तो भी क्या उसे अहसास नहीं हुआ क्योंकि तस्वीर में प्रदर्शनकारी महिला पुलिस की पकड़ से छूटने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है.

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