उमर ने भेद डाली राम माधव की व्यूह रचना तो गड़बड़ाया भाजपा का गणित

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भाजपा के रणनीतिकार राम माधव की व्यूह रचना भेद डाली तो भाजपा का गणित गड़बड़ा गया। पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन के नेतृत्व में सरकार गठन के लिए पीडीपी में बड़े विभाजन की रणनीति बन चुकी थी।पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला

तय योजना के तहत लोन शुक्रवार को सरकार बनाने का दावा पेश करने वाले थे। इसी योजना के तहत एक दिन पहले पीडीपी के कद्दावर नेता मुजफ्फर हुसैन बेग का बागी तेवर सामने आया, लेकिन बदल रहे समीकरणों को भांपते हुए उमर ने महबूबा से फोन पर संपर्क साधा और पासा पलट गया। 

उमर-महबूबा संवाद से महागठबंधन सरकार की संभावना बढ़ी और पीडीपी के विभाजन की कोशिशें फेल होती दिखने लगीं। फिर दोनों पक्षों द्वारा सरकार बनाने के परस्पर दावों के बाद गवर्नर के लिए विधानसभा भंग करने का रास्ता साफ हो गया।

सूत्रों का कहना है कि गवर्नर नई सरकार के गठन के संदर्भ में ही विचार विमर्श के लिए दिल्ली गए थे। तब सज्जाद लोन के नेतृत्व में भाजपा और पीडीपी के बंटे धड़े को मिलाकर नई सरकार के गठन का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था, लेकिन उमर और महबूबा के बीच साझा सरकार पर सहमति को कांग्रेस आलाकमान की हरी झंडी के बाद समीकरण उलट पुलट हो गए। 

भाजपा को आभास हो गया कि इस हालात में उसके लिए सरकार बनाना संभव नहीं रह गया है। यही कारण है कि महबूबा द्वारा सरकार बनाने के दावे के ठीक बाद सज्जाद लोन से दावा पेश कराया गया। 

इससे राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का पुख्ता आधार मिल गया। राजभवन के पास अब यह तर्क है कि मौजूदा हालात में विधायकों की खरीद फरोख्त की संभावना बढ़ सकती थी, लिहाजा विधानसभा भंग करने का कदम उठाया गया।

नेशनल कांफ्रेंस के सूत्रों के मुताबिक उमर ने मंगलवार रात को ही पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती से बातचीत की। उमर ने महबूबा को बताया कि अगर अब चुप रहीं तो उनकी पार्टी तो टूटेगी ही, साथ ही प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज हो जाएगी। 

उन्होंने अनुच्छेद 370 और 35 ए को बचाने के लिए महागठबंधन की सरकार के पक्ष में तर्क दिए। पार्टी में बगावत झेल रहीं महबूबा ने इससे सहमत होकर अल्ताफ बुखारी को बातचीत के लिए उमर के पास भेजा। इससे महागठबंधन सरकार की संभावना बढ़ी थी।

यह महज संयोग नहीं था कि पीडीपी के कद्दावर नेता मुजफ्फर हुसैन बेग के बागी तेवर के तुरंत बाद जम्मू कश्मीर में महागठबंधन का महल तैयार हुआ। दरअसल, बेग का बागी तेवर भाजपा के रणनीतिकार राम माधव की व्यूह रचना का ही हिस्सा था। 

पीडीपी में बड़े विभाजन के बगैर भाजपा के सपनों की सरकार संभव नहीं थी लिहाजा समर्थन के लिए बेग की शख्सियत के इस्तेमाल की तैयारी थी। नए मुख्यमंत्री के रूप में सज्जाद लोन के नाम बेग की सहमति से पीडीपी में विभाजन की रूपरेखा बन ही रही थी, इसी बीच उमर ने सक्रिय होकर भाजपाई समीकरणों के विकेट छितरा दिए। 

कांग्रेस ने नई सियासी खिचड़ी पर हामी भर दी और आलाकमान ने आगे की बातचीत के लिए गुलाम नबी आजाद को नियुक्त भी कर दिया, लेकिन विधानसभा भंग होते ही सारी कवायद धरी की धरी रह गई।

पीडीपी थी मुख्य धुरी

नई सरकार के गठन की कवायद में पीडीपी ही मुख्य धुरी थी। पीडीपी के बिना महागठबंधन की सरकार संभव नहीं थी। दूसरी ओर भाजपा भी पीडीपी के विभाजन के बाद बंटे धड़े के साथ मिलकर सरकार बनाने का सपना पाल रही थी। यही कारण है कि सरकार के गठन के मुद्दे पर महबूबा ने चुप्पी तोड़ी और दावा पेश किया, लेकिन यह प्रयास विफल हो गया।

आंकड़ों का गणित था महागठबंधन के पक्ष में
आंकड़ों का गणित महागठबंधन के पक्ष में दिख रहा था। जम्मू कश्मीर की 87 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 44 का आकंड़ा चाहिए जबकि भाजपा के पास सिर्फ 25 विधायक थे। सज्जाद लोन के दो और एक निर्दलीय को मिलाकर भाजपा 28 के आंकड़े तक पहुंच रही थी।

भाजपा की आस पीडीपी के विभाजन पर टिकी थी। दूसरी ओर पीडीपी के 28, कांग्रेस के 12 और नेकां के 15 विधायक थे। तीन निर्दलीय भी इसी महागठबंधन के करीब थे। इस तरह आकंड़ा आसानी से 58 तक पहुंच रहा था।
 

Back to top button