अभी-अभी: उत्तराखंड के तालाब और झील उगल रहे, ये करोड़ों का नायाब खजाना
दून में फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर की संभावनाएं तलाशने आए सोनकर प्रदेश के तालाब और झीलों में तकनीक के जरिए मोतियों के उत्पादन की योजना बना रहे हैं।
ये भी पढ़ें: शैम्पू में मिलाएं ये नैचुरल चीजें, दूर हो जाएँगी बालों की कई परेशानियाँ
डॉ. सोनकर ने कहा कि फ्रेश वाटर पर्ल कल्चर (सीप से मोती बनाना) से पानी को साफ करने के साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। विदेशों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। जल के तल में पाए जाने वाली विभिन्न प्रजाति की सीप सारा जीवन पानी के प्रदूषण को समाप्त करने के लिए सतत क्रिया करते रहती हैं।
एक सीपों की कॉलोनी 30 से 100 मिलियन गैलन पानी को प्रतिदिन प्रदूषण मुक्त करती है। फ्रे श वाटर कल्चर, पर्यटन को बढ़ावा देने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। डॉ. सोनकर ने बताया कि भारत का मोती बाजार चीनी बाजार से प्रभावित है।
चीनी लोग जानवरों को लेकर बेहद क्रूर, मोती मिलने के बार मार देते है सीप को
यह होती है सीप से मोती बनाने की प्रक्रिया
सबसे पहले सीप में जीन सिक्रेशन तैयार किया जाता है। इसके बाद सीप में मोती निर्माण शुरू होता है। सीप का ऑपरेशन कर फ ॉरेन बॉडी डालने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट की परत बनाई जाती है। जिस आकार की बॉडी डाली जाती है, उसी आकार का मोती बनता है।
सीप की उम्र तीन साल होने पर उसमें मोती तैयार होता है। सीप की अधिकतम आयु छह साल होती है। सीप की खेती शुरू करने से पहले किसान को हर सीप में शल्य क्रिया करके उसके अंदर छोटा सा नाभिक या ऊतक रखना होता है। फि र सीप को बंद कर दिया जाता है।
ये भी पढ़ें: भारतीय मुद्रा लेने पर इंडिगो के खिलाफ हुआ ‘राष्ट्रद्रोह’ का केस
ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है और अंत में मोती का रूप ले लेता है। इसके बाद सीप को खोलकर मोती निकाल लिया जाता है और उसका उपचार कर दिया जाता है।