…इस वजह से ई-कामर्स कंपनियों ने बिगाड़ी छोटे दुकानदारों की दिवाली
बड़े रिटेलरों जैसी नहीं मिलती छूट
कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि छोटे दुकानदार महंगे किराये पर दुकान सजाते हैं। रखरखाव के साथ कर्मचारियों पर खर्च करते हैं। कम मात्रा में सामान खरीदने के कारण छोटे कारोबारियों को ई-जोन, रिलायंस डिजिटल, क्रोमा और विजय सेल्स जैसे बड़े रिटेलरों की तरह छूट नहीं मिलती है। उन्हें मिलने वाला मार्जिन भी पहले से घटकर 10 फीसदी पर आ गया है। साथ ही उन्हें दुकाना का किराया से लेकर कर्मचारियों का वेतन भी देना होता है। इसलिए वे पांच फीसदी की भी छूट देने में सक्षम नहीं है। वे इतना ही करेंगे कि कंपनी से मिली स्कीम के सहारे ग्राहकों का दिल जीतने का प्रयास करेंगे। आफ्टर सेल बेहतर सर्विस देंगे।
मार्जिन के खेल ने बिगाड़ा अर्थशास्त्र
कंज्यूमर ड्यूरेबल्स बनाने वाली उत्तर भारत की अग्रणी कंपनी महाराजा व्हाइटलाइन के सीईओ रहे सुनील वाधवा का कहना है कि कंज्यूमर ड्यूरेबल्स बनाने वाली कंपनियां आमतौर पर रिटेलरों को 33-40 फीसदी और डिस्ट्रीब्यूटरों को 7-8 फीसदी का मार्जिन देती हैं। वहीं, ई-कॉमर्स कंपनियां सीधे मैन्यूफैक्चरर्स से बात करती हैं और बड़ी मात्रा में माल खरीदती हैं। ऐसे में उन्हें 50 फीसदी तक मार्जिन मिल जाता है। ऐसे में वह 45 फीसदी तक भी छूट दें तो ग्राहक हाथों-हाथ सामान खरीद लेते हैं। अपना वैल्यूएशन के चक्कर में तो वे कुछ मामले में लागत से भी कम कीमत पर बिक्री करते हैं।
कंज्यूमर ड्यूरेबल्स की बिक्री 60 फीसदी बढ़ी
वाधवा के मुताबिक, दिवाली से पहले ही अमेजन, फ्लिपकार्ट और स्नैपडील आदि ई-कॉमर्स कंपनियों ने 15000 करोड़ रुपये के कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और मोबाइल की बिक्री की है। इस बार उनकी बिक्री में 60 फीसदी का इजाफा हुआ है। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि प्रेस्टीज के कूकवेयर पर दिल्ली के थोक बाजार में भी 20 फीसदी से ज्यादा छूट नहीं मिलती है, जबकि ई-कामर्स कंपनियां इस पर 35-40 फीसदी की छूट दे रही हैं।