इस बैंक ने किया बड़ा ऐलान: कर्मचारियों के समलैंगिक पार्टनर को भी मिलेगा स्वास्थ्य बीमा का लाभ

भारत में र्कायरत रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (RBS India) ने अपने कर्मचारियों के सेम सेक्स पार्टनर के लिए भी स्वास्थ्य बीमा का कवर मुहैया कराने का निर्णय लिया है. इसे एक साहसिक निर्णय कहा जा सकता है, क्योंकि भारत में अब भी गे कपल या समलैंगिकता को कानूनी दर्जा हासिल नहीं है. वैसे इस कदम के कानूनी पचड़े में भी फंसने की आशंका है.

इस बैंक में कर्मचारियों के समलैंगिक पार्टनर को भी मिलेगा स्वास्थ्य बीमा का लाभसेम सेक्स पार्टनर का मतलब है कि यदि कोई गे या लेस्ब‍ियन है तो वह अपने हेल्थ इंश्योरेंस के बेनिफिट में अपने पार्टनर को भी जोड़ सकता है. अभी तक भारतीय कॉरपोरेट जगत में कर्मचारियों को जो स्वास्थ्य बीमा योजना मुहैया की जाती है, उसमें उनके पति-पत्नी, बच्चे, मां-बाप या सास-ससुर को शामिल किया जाता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक भारत में अभी धारा 377 के तहत होमो सेक्सुअलिटी, लेस्ब‍ियन, गे, बाईसेक्सुअल या ट्रांस जेंडर सेक्स को अपराध माना जाता है. इसलिए ऐसे किसी भी पार्टनर को किसी भी तरह की बीमा योजना में शामिल नहीं किया जाता. इसलिए RBS ने यह निर्णय लिया कि वह सेम सेक्स पार्टनर को बीमा सुविधा देने का खर्च खुद ही उठाएगा.

हालांकि, यह सोचने वाली बात है कि अगर ऐसे सेक्सअुल रिलेशन या पार्टनर रखना गैर कानूनी है तो फिर यह बैंक इस तरह के पार्टनर को बीमा कवर कैसे दे सकता है. इसलिए ऐसा लगता है कि यह सुविधा कानूनी पचड़े में भी फंस सकती है.

बैंक में यह नीति नए वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल से लागू हो जाएगी. अभी तक कंपनियां तमाम तरह की सुविधाएं अपने कर्मचारियों को देती रही हैं, लेकिन यह सुविधा पहली बार सामने आई है. कई कंपनियों में इस पर चर्चा जरूर थी कि सेम सेक्स पार्टनर को भी बीमा सुविधा मिलनी चाहिए, लेकिन इसकी शुरुआत कोई कर नहीं पाया था.

हालांकि कई कंपनियों ने सेम सेक्स पार्टनर के लिए एडॉप्शन लीव, पैटर्निटी लीव, रीलोकेशन जैसी सुविधाएं जरूर शुरू की थीं. हालांकि कंपनियों के सामने यह चुनौती रही है कि किस तरह से भारतीय कानून के दायरे में रह कर यह सब किया जाए, क्योंकि भारत में सेम सेक्स शादी को अभी वैध नहीं माना गया है.सुप्रीम कोर्ट ने सेक्सुअल ओरिएंटेशन को जाहिर करने की आजादी तो दी है, लेकिन सेम सेक्स रिलेशन को अपराध मानने वाले कानून को नहीं पलटा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह धारा 377 का पुनर्परीक्षण करेगा.

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