इस उम्र में छत छिनी तो कहां जायेंगे ये लोग?

प्रीति सिंह
कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सरकार ने देशव्यापी तालाबंदी की। दो माह की तालाबंदी से कोरोना के संक्रमण पर तो लगाम नहीं लग सका लेकिन इसका लोगों की जिंदगियों पर खासा प्रभाव पड़ा है। तालाबंदी की वजह से जहां लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई तो न जाने कितने बेघर हो गए और कितने बेघर होने के कगार पर पहुंच गए हैं। इस तालाबंदी का ही असर है कि जिंदगी के अपने अंतिम वर्ष वृद्धाश्रमों में गुजार रहे हजारों वृद्धों के सामने उम्र के इस पड़ाव में दर-बदर होने का खतरा पैदा हो गया है।
कोरोना काल में सब कुछ बदल गया है। रहन-सहन, रिश्ते-नाते, खान-पान और पढ़ाई-लिखाई तक का तरीका बदल गया है। यह भी सच है कि कोरोना वायरस ने रिश्तों को बुरी तरह संक्रमित किया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बुजुर्ग हुए हैं। पहले से ही हाशिए डाल दिए गए बुजुर्गों की समस्या कोरोना काल में बढ़ गई है।

कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी का असर अब वृद्धाआश्रमों पर दिख रहा है। दान आधारित इन आश्रयस्थलों को पिछले कुछ महीनों से चंदा नहीं मिला है। इस कारण यहां रहने वाले हजारों वृद्धों के सिर से छत छिन जाने का खतरा पैदा हो गया है। इतना ही नहीं कई वृद्धाश्रम राशन और दवाइयों जैसी अपनी जरूरी चीजों के लिए अपना बजट कांटने-छांटने के लिए बाध्य हो गए हैं। आय का कोई जरिया न होने की वजह से कुछ वृद्धाश्रमों को डर सता रहा है कि यदि ऐसे ही वित्तीय संकट बना रहा तो कहीं उन्हें अपनी यह सुविधा बंद भी करनी पड़ सकती है। जाहिर है यह कोई छोटी समस्या नहीं है।
यह चिंता का विषय है। यदि ये वृद्धाश्रम बंद हो गए तो ये असहाय बुजुर्ग कहां जायेंगे? यदि इनके कोई अपने होते तो ये यहां नहीं होते। बुजुर्गों को लेकर देश में जो हालात है वह चिंता बढ़ाने वाले हैंं। ये अपनों से ही उपेक्षित हैं। देश में बुजुर्गों का एक तबका ऐसा भी है जो या तो अपने घरों में तिरस्कृत व उपेक्षित जीवन जी रहा है, या फिर वृद्धाश्रमों में अपनी जिंदगी बेबसी के साये में बिताने को मजबूर है।
समाज में बुजुर्गों पर होने वाले मानसिक और शारीरिक अत्याचार के तेजी से बढ़ते मामलों ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं। परिजनों से लगातार मिलती उपेक्षा, निरादर भाव और सौतेले व्यवहार ने वृद्धों को काफी कमजोर किया है। बुजुर्ग जिस सम्मान के हकदार हैं, वह उन्हें नसीब नहीं हो पा रहा है। यही उनकी पीड़ा की मूल वजह है। दरअसल, देश में जन्म दर में कमी आने और जीवन-प्रत्याशा में वृद्धि की वजह से वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ी है। लेकिन दूसरी तरफ गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा, समुचित देखभाल के अभाव और परिजनों से मिलने वाली उपेक्षा की वजह से देश में बुजुर्गों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है।
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पिछले दिनों ऐसी कई खबरें आई जिससे पता चला कि देश में बुजुर्गों की किस कदर अवहेलना की जा रही है। देश के कई अस्पतालों में कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके बुजुर्ग अपनों का इंतजार कर रहे हैं। डॉक्टरों द्वारा सूचना देने के बावजूद उनके परिजन उन्हें घर नहीं ले जा रहे हैं। वह तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं। इतना ही नहीं वह अपने मां या पिता से फोन पर भी बात नहीं करते।
इन सब हालात से आसानी से समझा जा सकता है कि परिवार में बुजुर्गों की अहमियत न के बराबर रह गई है। शायद अहमियत न होने की वजह से ही देश वृद्धों का ठिकाना वृद्धाश्रम बनता जा रहा है।
असहाय बुजुर्गों के लिए काम कर रहे गैर लाभकारी संगठन हेल्पएज इंडिया के मुताबिक देश में करीब 1500 वृद्धाश्रम हैं, जिसमें करीब 70,000 वृद्ध रहते हैं। पैसे वालों के कुछ ऐसे आश्रमों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर वृद्धाश्रम अपने कामकाज के लिए अलग-अलग सीमा तक चंदों पर निर्भर करते हैं। इस कोरोना काल में इन आश्रमों में रहने वालों के लिए बहुत कुछ दांव पर लग गया है। कुछ जगहों पर तो साफ-सफाई, कपड़े धोने, खाना पकाने जैसे कई काम वृद्धों को खुद करना पड़ रहा है।
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परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। एक अनुमान मुताबिक धन की कमी वृद्धाश्रमों की परेशानियों को 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा देगा। जो जीवन उनके लिए पहले से कठिन था वह अब और ज्यादा कठिन हो गया है। आश्रमों में ऐसा दिख भी रहा है। चंदे न मिलने की वजह से वृद्धों की देखभाल करने वाले कर्मचारियों को भी हटा दिया गया है। पैसे के अभाव में धीरे-धीरे कटौती की जा रही है। जिन बुजुर्गों को उठने-बैठने तक में काफी मुश्किल आती है, वह खुद अपनी देखभाल कर रहे हैं। वह खाना पका रहे हैं, कपड़े धो रहे हैं। साफ-सफार्ई कर रहे हैं।
देश में कुछ बुजुर्गों की आबादी लगभग 12 करोड़ के करीब है, जिसमें से 5.55 करोड़ बुजुर्ग वंचित हैं। इन वंचित बुजुर्गों में से कुछ अकेले रहते हैं तो कुछ वृद्धाश्रम में तो कुछ मन मारकर अपनों के साथ रहते हैं। कुछ बुजुर्ग ऐसे वृद्धाश्रम में रहते हैं जो भुगतान के आधार पर सुविधाएं देती हैं। जो पैसे देकर रह रहे हैं उनका तो छत नहीं छिनेगा, लेकिन जो मुफ्त में रहते हैं उनकी मुश्किलें बढ़ गई है।

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