आ गया साल 2019, अब होगी सभी राजनीतिक दलों की अग्निपरीक्षा

2019 का इंतजार खत्म होने के साथ ही राजनीतिक पार्टियों की चुनौती बढ़ गई है। अगले लोकसभा चुनाव का बिगुल कुछ ही दिनों में बज सकता है। अब सभी राजनीतिक पार्टियों की अग्निपरीक्षा देनी होगी। पंजाब में पंचायत चुनाव संपन्न हो गए हैं। इस चुनाव में भले ही सत्ताधारी पार्टी का ही बोलबाला रहा हो लेकिन असली परीक्षा तो लोकसभा चुनाव में है।आ गया साल 2019, अब होगी सभी राजनीतिक दलों की अग्निपरीक्षा

दो साल से प्रदेश में कांग्रेस लगातार जीत हासिल कर रही, लेकिन लोकसभा चुनाव में चुनौती बरकरार

दो साल पहले हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में जीते के बाद कांग्रेस हरेक चुनाव में अपना परचम लहरा रही है। गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव से लेकर नगर निगम, नगर काउंसिल, पंचायत चुनावों में कांग्रेस का परचम लहराता रहा, लेकिन असली चुनौती अब है।

कांग्रेस को कम से कम छह लोकसभा सीटों पर तलाशना है नए चेहरे

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने दम पर सभी 13 सीटें जीतने का दावा कर चुके हैं। लेकिन हकीकत यह है कि कांग्रेस को कम से कम छह सीटों पर नए चेहरों को मैदान में उतारना होगा। पिछला लोकसभा चुनाव लड़ने वाले करीब आधा दर्जन चेहरे वर्तमान में या तो विधायक हैं या फिर कैबिनेट मंत्री। कांग्रेस अभी भी नए चेहरों की तलाश कर रही है। पंचायत चुनाव में जिस प्रकार से कांग्रेसी विधायकों ने प्रशासनिक व्यवस्था पर उंगली उठाई उससे कांग्रेस की परेशानी बढ़ सकती है।

शिअद नेतृत्व को दिखाना होगा दम

लोकसभा चुनाव में असली परीक्षा अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल के नेतृत्व की होनी है। उनके प्रधान बनने के बाद यह पहला मौका होगा जब लोकसभा चुनाव लड़ा जाएगा और राज्य में उनकी सरकार नहीं होगी। उनके नेतृत्व में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार चुनौती और बढ़ गई है। 2018 में अकाली दल का एक धड़ा टूट कर नई पार्टी बना चुका है।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी व बहिबलकलां गोलीकांड के बाद अकाली दल पंथक मतदाताओं का समर्थन हासिल नहीं कर पाया है। हालांकि 1984 दंगों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसलों ने जरूर अकाली दल को संजीवनी दी है, लेकिन अब देखना होगा कि सुखबीर बादल बेअदबी और 1984 के दंगों पर आए फैसलों के बीच में अपना वोटबैंक कैसे बचा पाते हैं।

भाजपा को मोदी के चमत्कार का सहारा

विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी पंजाब में हाशिये पर चल रही है। नगर निगम के चुनावों में भी उसे कुछ खास सफलता नहीं मिली। गुरदासपुर लोकसभा सीट भी उपचुनाव में उसके हाथ से निकल गई। भाजपा ने प्रदेश की कमान दलित नेता विजय सांपला से लेकर राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक को सौंपी। मलिक अभी तक ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं।

गुरदासपुर में 3 जनवरी को होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धन्यवाद रैली पार्टी में जान फूंक सकती है। यह वह मंच होगा जहां से 1984 दंगों को लेकर आए फैसलों के तीर चलेंगे तो करतारपुर कॉडिोर का भी श्रेय लिया जाएगा। लेकिन भाजपा की असली परीक्षा अपने कैडर में जान फूंकने की होगी। ऐसे में भाजपा को मोदी मैजिक का ही इंतजार है।

आप की गाड़ी पटरी से उतरी

2014 में पंजाब में लोकसभा की चार सीटें जीतकर इतिहास रचने वाली आम आदमी पार्टी की पांच वर्षों में ही तस्वीर बदल चुकी है। पंजाब में पार्टी दो हिस्सों में बंट चुकी है। पार्टी के समक्ष नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो गया है। पांच वर्षों में जहां प्रदेश की कमान तीन नेताओं के हाथों से गुजर चुकी है वहीं, नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर तीन बार बदलाव हो चुके हैं।

आप की परेशानी यह है कि कोई भी नेता पूरी पार्टी को साथ लेकर चल नहीं पा रहा है। पार्टी के फायर ब्रांड नेता सुखपाल खैहरा पहले ही अपनी अलग पार्टी बनाने का दावा कर चुके हैं। ऐसे में 2019 से पहले आप को अपनी पूरी शक्ति को समेटना पड़ेगा। अन्यथा 2014 में इतिहास बनाने वाली आप 2019 में खुद इतिहास बन सकती है।

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