‘आम’ पर पहले मौसम की मार अब कोरोना का साया

धीरेन्द्र अस्थाना

लखनऊ। गर्मियों का मौसम आ चुका है इसके साथ सबको इंतजार है फलों के राजा कहे जाने वाले आम का। इस इंतजार के बीच एक आशंका भी है कि क्या लॉकडाउन की वजह से कहीं आम की फसल पर असर तो नहीं पड़ने वाला है।

हर तरफ मजदूरों की कमी की बात आ रही है, कीटनाशक की कमी की आशंका भी चर्चा में है, ऐसे में क्या वाकई आम उगाने वाला किसान परेशान है और आशंका है कि लॉकडाउन का असर आम की फसल पर भी देखने को मिलेगा। इन्हीं सब सवालों का जवाब आज आपको देंगे। दुनियाभर में आम की फसल के लिए मशहूर मलिहाबाद में कैसा है आम का मिजाज?

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अप्रैल का महीना अपने अंत की ओर बढ़ रहा है, लेकिन बाजार में आम अभी भी बहुत कम दिखाई पड़ रहे हैं। आम के व्यापारियों और किसानों का कहना है कि कोरोना के कारण आम के किसानों को भारी नुकसान होने की आशंका है।

उत्तर भारत के आमों का सीजन अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन जिस तरह बाजार में बंदी बनी हुई है और लॉकडाउन की वजह से लोग घरों , यहां के किसानों को भी काफी नुकसान होने की आशंका है।

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मंडी में किसान इन्हें औने-पौने दामों पर बिचौलियों को बेचने को मजबूर हुए। स्थानीय बाजारों में भी इनकी खपत न के बराबर हो पाई जिसका खामियाजा किसानों और व्यापारियों को भुगतना पड़ा।

मलीहाबाद, लखनऊ के आम के व्यवसायी और किसान कदीम की माने तो उत्तर प्रदेश के दशहरी आम, लंगड़ा, चौसा, हुसनारा, गुलाब खास और लखनऊ सफेदा पूरे देश में पसंद किए जाते हैं।

विदेशों में निर्यात भी होता है, लेकिन इस साल ठंड के लंबे खिंचने, बारिश-ओले और आंधी से फसलों को काफी नुकसान हुआ है। अनुमान है कि आम की फसल को 40 फीसदी तक नुकसान हो चुका है। लेकिन अभी भी मौसम खराब बना हुआ है जिसका असर पड़ सकता है।

‘मोदी आम’ तैयार कर सुर्खियां बटोर चुके कदीम के मुताबिक अगर आने वाले दिनों में मौसम का साथ मिलता है, तो कुछ फसल तैयार हो जाएगी, लेकिन इसके बाद भी इन्हें बाजारों तक पहुंचाना बड़ी चुनौती होगी। इस समय बागों में कामकाज के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं, इसलिए लॉकडाउन खुलने पर भी आम को बाजारों तक पहुंचाने में परेशानी आ सकती है।

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दशहरी आम के जायके से महरूम रहेगी दुनिया

भारत आम के उत्पादन के मामले में पूरी दुनिया में नंबर एक है। लेकिन भारत के कुल आम के उत्पादन का लगभग 98% घरेलू बाजार में ही खप जाता है। लगभग दो फीसदी उत्पाद अमेरिकी, यूरोपीय और मध्य पूर्व के बाजारों में सप्लाई किया जाता है।

आम व्यवसाय के प्रमोशन से जुड़े सचिन अवस्थी का कहना है इसके बाद भी इससे भारत को अच्छी विदेशी मुद्रा की आय होती है। लेकिन कोरोना के कारण इस समय पूरा अमेरिकी, यूरोपीय बाजार ध्वस्त हुआ पड़ा है। मध्य-पूर्व के बाजारों के भी खुलने की नजदीक में कोई उम्मीद नहीं दिखाई पड़ रही है। इसका भारी खामियाजा भारत के आम व्यापारियों को भुगतना पड़ा है।

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प्रोसेसिंग ही एकमात्र विकल्प

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संजय की माने तो अनाजों की खरीद के लिए बने फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की तरह फलों की खरीद के लिए किसी मैकेनिज्म का न होना इस सेक्टर के किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है।

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फसलों के उत्पादन के बाद उनकी बिक्री और आपूर्ति पूरी तरह बाजार के भरोसे काम करता है। इनके स्टोरिंग की उचित व्यवस्था हमारे देश में उपलब्ध नहीं है। ऐसे में जब बाजार में मांग होती है तो किसानों को अच्छा दाम मिल जाता है, लेकिन किसी संकट के समय उनकी सुरक्षा नहीं हो पाती। अगर सरकार आमों की खरीद और बिक्री की सही व्यवस्था बना सके तो किसानों को नुकसान से बचाया जा सकेगा।

उन्होंने बताया कि अगर बाजार में किसी फल की मांग नहीं भी है, तो भी उसकी प्रोसेसिंग कर दूसरे उपयोगी उत्पादों में बदलने से उनको लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकेगा। इससे उनके उपयोग की समयसीमा भी बढ़ाई जा सकेगी और किसानों को भी नुकसान से बचाया जा सकेगा। इसके लिए सरकार और प्राइवेट सेक्टर से निवेश किया जाना चाहिए।

बागवानों को भी मिले राहत

आम बागवानों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर राहत दिलवाए जाने की मांग की है। मैंगो ग्रोवर असोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन इंसराम अली ने बताया कि कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते यूपी में किसानों के साथ आम बागवानों को भी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।

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पहले से मौसम की मार झेल रहे आम बागवान अब लॉकडाउन से प्रभावित यातायात समेत अन्य सुविधाओं को लेकर आशंकित हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आम बागवानों के आगे भुखमरी का संकट आ जाएगा।

क्या कहते हैं कलीम उल्ला

मशहूर आम बागवान कलीम उल्ला ने कहा कि हालात यूं ही रहे तो आम की फसल मंडियों तक नहीं पहुंच पायेगी। तब आम बागों में ही सड़ जाएगा। अगर सरकार ने आम को मंडी में लाने की व्यवस्था की, तो भी उसे तौलने और बेचने के लिये मजदूर नहीं मिलेंगे। उन्होंने कहा कि निर्यात नहीं होने की वजह से आम स्थानीय बाजारों में कौड़ियों के दाम बिकेगा।

दोनों ही सूरत में आम उत्पादक का बरबाद होना तय है। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ स्थित मलीहाबाद, बाराबंकी, प्रतापगढ़, उन्नाव के हसनगंज, हरदोई के शाहाबाद, सहारनपुर, मेरठ तथा बुलंदशहर समेत करीब 15 मैंगो बेल्ट हैं। पूरे देश का करीब 23 प्रतिशत आम उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है।

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