आम आदमी के लिए बनी मुसीबत… महंगाई के बढ़ते बसों का किराया हुआ महंगा

प्रदेश में शराब का कारोबार राजस्व का सबसे बड़ा साधन है। इस कारोबार से सरकार को करोड़ों का राजस्व भी होता है। मौजूदा समय में रोजगार और महंगाई को लेकर सरकार को किरकिरी झेलनी पड़ रही है। इस विरोध के बीच सरकार ने नए वित्त वर्ष से शराब सस्ती करने की घोषणा कर दी है। जनता के नजरिये से देखें तो पेट्रोल, डीजल और खाद्य सामग्री सस्ती होती तो इसका हर परिवार को फायदा पहुंचता। हालांकि, शराब सस्ती होने से यह भी फायदा होगा कि बाहर से तस्करी पर रोक लगेगी और जहरीली शराब की तस्करी रुकेगी। हरिद्वार के मंगलौर और देहरादून जिले में जहरीली शराब से कई लोगों की मौत हो चुकी है। इसके बावजूद शराब तस्करी जारी है। बीती जनवरी में ही पुलिस ने 66 मुकदमे दर्ज कर 1800 बोतल शराब बरामद की। उत्तराखंड में शराब सस्ती मिलती है तो जाहिर है कि तस्करी पर रोक लग सकेगी।

बढ़ती महंगाई से पहले ही आम आदमी की कमर टूटी जा रही है। उसपर सरकार ने महंगे सफर का एक बोझ और लाद दिया है। गलत नीतियों के कारण घाटे में चल रहे उत्तराखंड परिवहन निगम को उबारने के लिए जनता की जेब पर बोझ डालना आखिर कहां तक सही है? पिछले डेढ़ महीने में रोडवेज बसों का किराया दो बार बढ़ाया जा चुका है। जिस तेजी से रोडवेज के किराये में बढ़ोत्तरी हो रही है, उससे तो यही लग रहा है कि आने वाले समय में आम लोगों के लिए बस से सफर करना मुश्किल हो जाएगा। इससे परिवहन निगम को दोहरा झटका लग सकता है। पहला तो सवारियां कम होने का। अगर ऐसा हुआ तो उसकी घाटे से उबरने की मंशा को भी निश्चित तौर पर धक्का लगेगा। साथ ही डग्गामारी और ओवरलोडिंग को बढ़ावा मिलेगा। जिससे प्रदेश में सड़क हादसों का ग्राफ भी बढऩे की आशंका है।

विभागों में सिफारिश लगवाकर ट्रांसफर करवाना आम बात है। सिफारिश पर अधिकारी पद तो ले लेता है, लेकिन अच्छा परिणाम नहीं दिखा पाता। लेकिन, कप्तान साहब सिफारिश नहीं काम देखते हैं। पिछले दिनों एक इंस्पेक्टर ने कहीं से ट्रांसफर की सिफारिश कर दी। इस बात पर कप्तान ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि काम में सिफारिश करने की बजाय अपने काम में तेजी लेकर आएं। उन्होंने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि किसी पद तक पहुंचने के लिए अच्छा काम दिखाना पड़ेगा, तभी पद भी मिलेगा। आउटपुट न दिखा पाने वाले के लिए कोई रहम नहीं होगी। यही बात है कि सभी अधिकारी और कर्मचारी तबादला या अन्य सिफारिश लगाने से पहले कई बार सोचते हैैं कि कहीं इसका परिणाम गलत न हो जाए। हां, यह भी है कि अगर कोई कर्मचारी या अधिकारी खुद सही सिफारिश करता है तो उसे नकारा भी नहीं जाता।

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