आखिर कैसे टेलीकॉम क्षेत्र में एकाधिकार रखने वाली ये कंपनी बन गई घाटे का सौदा : BSNL

जिस कंपनी के इंफ्रास्ट्रक्चर पर सवार होकर फलती-फूलतीं निजी टेलीकॉम कंपनियां 5जी के उड़ान की तैयारी में हैं, उसे आज वित्तीय संकट से गुजरना पड़ रहा  है। कभी टेलीकॉम सेवा के क्षेत्र में देश में  एकाधिकार रखने वाली कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) आज अपने कर्मचारियों को वेतन देने की स्थिति में नहीं है। सरकारी क्षेत्र के इस सार्वजनिक उपक्रम के संसाधनों के आगे दूसरी कोई कंपनी खड़ी नहीं हो सकती।  इंफ्रास्ट्रक्चर हो या नेटवर्क, इसके आसपास कोई नहीं ठहरता लेकिन आज BSNL का दम फूल गया है। आइए, जानते हैं कि व्यापक संसाधनों  और नेटवर्क संजाल के बावजूद इस कंपनी की यह दशा कैसे हुई।

2009 से बिगड़ी स्थिति

बीएसएनएल का गठन 15 सितंबर, 2000 में  हुआ। ऑपरेशन 1 अक्टूबर, 2000 से शुरू  किया। 2004-05 तक तो कंपनी का मुनाफा  49 हजार करोड़ रुपये तक जा पहुंचा लेकिन इसके बाद से वित्तीय हालत खस्ता होने लगी और 2009 आते-आते यह कंपनी घाटे में चली गई। 2009 में पहली बार कंपनी 1823 करोड़ रुपये के घाटे में पहुंची। आज यह घाटा बढ़कर 90 हजार करोड़ तक जा पहुंचा है। इसकी वजह कंपनी का लचर प्रदर्शन, नीतियों में बदलाव  और निर्णय लेने की छूट न होना, समय के  साथ खुद को न बदलना आदि रहे।

आमदनी घटती गई, खर्च बढ़ता गया

BSNL की इस हालात की सबसे बड़ी वजहों में  उसकी सिमटती आय और बढ़ता खर्च है। दरअसल, बीएसएनएल की कुल आमदनी का 55 फीसद  कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो जाता है। हर साल इसमें लगभग  आठ फीसद की बढ़ोतरी हो रही है। जबकि आय का स्रोत  सीमित होता चला जा रहा है। 2016 में रिलायंस जियो के आने के बाद सेवाएं सस्ती करने की होड़ लग गई।  बाजार की इसी प्रतिस्पर्धा में बीएसएनएल पिछड़ती चली गई। 4जी सेवा में इसका पिछड़ना भी बड़ी वजहों में एक है। देश 5जी की तैयारी में जुटा है तो वहीं बीएसएनएल अब भी 4 जी के लिए संघर्ष कर रही है। सरकार द्वारा संचालित टेलीकॉम कंपनी स्पेक्ट्रम हासिल करने के लिए नीलामी की बोली में हिस्सा नहीं ले सकती।

15 हजार भवन, 11 हजार एकड़ भूमि

बीएसएनएल की संपत्ति पर अगर नजर दौड़ाएं तो देशभर में इसके लगभग 15 हजार भवन और 11 हजार एकड़ भूमि है। इस  संपत्ति के एक-तिहाई हिस्से की कीमत एक  बार 65 हजार करोड़ के आसपास आंकी गई थी। हालांकि, कंपनी ने अपने बही-खाते में इसकी कीमत 975 करोड़ तय कर रखी है। अकेले अगर दिल्ली के जनपथ स्थित मुख्यालय के भूखंड की कीमत का आकलन करें तो यही 2500 करोड़ के आसपास बैठेगी।

8.19 लाख किमी ऑप्टिकल केबल नेटवर्क

देशभर में 8.19 लाख किमी लंबा ऑप्टिकल फाइबर केबल का सबसे लंबा जाल बिछाने वाली बीएसएनएल ही है। दूसरे नंबर पर जियो है जिसने अभी तक केवल 3.2 लाख किमी में ही ऑप्टिकल फाइबर केबल का नेटवर्क फैलाया है।  बीएसएनएल अपने इस इंफ्रास्ट्रक्चर को लीज पर देकर 30 हजार करोड़ रुपये कमा सकती है। इस राशि से वह अपने 50 वर्ष से अधिक उम्र के कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति और दूसरे सभी बकाया का भुगतान कर सकता है।  वीआरएस पर 6500 करोड़ जबकि अनुमानित कर्ज की राशि 14 हजार करोड़ है।

सबसे अधिक टावर का लाभ नहीं

मोबाइल सेवा के लिए सिग्नल देने वाले टावरों की बात करें तो बीएसएनएल ने लगभग 67300 टावर लगाए हैं, जो कि  देशभर में लगे टावरों का 15 फीसद है। बड़ी संख्या में टावर दूर-दराज के उन क्षेत्रों में हैं जहां दूसरी किसी कंपनी के  टावर नहीं हैं। लेकिन सरकार ने टावरों के लिए  एक अलग कंपनी बना दी और इन्हीं टावरों पर दूसरों को भी जगह देकर 2017-18 के वित्त वर्ष में उसने 580.43 करोड़ रुपये की कमाई  की। अंतिम वित्त वर्ष में 600 करोड़ की कमाई का लक्ष्य है।

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