आईए जानें विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के साथ एलएसी को लेकर क्या बोला…

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर काम अधूरा है और दोनों पक्षों की सेनाएं व राजनयिक इस मुद्दे का समाधान खोजने के लिए काम कर रहे हैं।

एक कार्यक्रम में जयशंकर ने राहुल गांधी द्वारा एलएसी पर स्थिति और यूक्रेन संघर्ष की तुलना करने के प्रयास की निंदा करते हुए कहा, ‘यूक्रेन में आज जो कुछ हो रहा है, उस पर एक पक्ष कहेगा कि नाटो के विस्तार और यूक्रेन की सत्ता के चरित्र से खतरा है। पश्चिम कहेगा कि रूस विस्तारवादी है। इसके और भारत-चीन के बीच क्या समानता है? यहां नाटो की कोई भूमिका नहीं है, यहां सत्ता के चरित्र की कोई भूमिका नहीं है। मुझे कोई समानता नहीं दिखती।

भारत को लेकर फैलाई गई अफवाह

जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत के गश्ती क्षेत्रों में बफर जोन बनाए जाने के बारे में ”अफवाह” फैलाई गई। उन्होंने कहा कि 2020 में गलवन संघर्ष के बाद सेना और कूटनीति के मिश्रण ने प्रगति की है, लेकिन दोनों पक्ष अभी तक सभी मुद्दे नहीं सुलझा पाए हैं। एलएसी पर वर्तमान स्थिति के बारे में उन्होंने कहा, ”जो कुछ भी किया गया है वह आपसी सहमति और वार्ता के जरिये किया गया है, लेकिन यह काम अभी भी अधूरा है।”

दोनों देशों के बीच प्रकृति को समझना महत्वपूर्ण

विदेश मंत्री ने कहा कि चीन के साथ रिश्तों को समझने के लिए दोनों देशों के बीच समस्या की प्रकृति को समझना होगा। उन्होंने कहा, ”भारत और चीन के बीच समस्या की प्रकृति यह है कि दोनों सेनाएं जो एलएसी पर या उसके पास या उसके बहुत पास तैनात नहीं थीं। मई-2020 से पहले दोनों सेनाएं मुख्य रूप से दूरस्थ स्थानों में तैनात थीं जहां उनके स्थायी ठिकाने थे। 2020 में चीनियों ने 1993-96 के समझौते का उल्लंघन किया और उन्हें एलएसी पर सेना ले आए।”

उन्होंने कहा कि जाहिर तौर पर हमने इसका प्रतिकार किया। नतीजतन, अब बहुत अधिक करीबी तैनाती की एक बहुत ही जटिल स्थिति है जो सैन्य आकलन के अनुसार एक बहुत ही खतरनाक स्थिति है।विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने चीन को स्थिति के बारे में आगाह किया था लेकिन फिर गलवन हुआ जो इस बात का सुबूत था कि स्थिति कितनी अस्थिर हो सकती है।

एलएसी को लेकर बोले विदेश मंत्री

उन्होंने कहा कहा, ”मैं सितंबर-2020 में अपने चीनी समकक्ष से मिला था और उन्होंने स्वीकार किया कि यह एक खतरनाक स्थिति थी। तब से हम अग्रिम तैनाती को पीछे करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह तभी किया जा सकता है जब आपसी सहमति हो।” जयशंकर ने कहा कि हो सकता है कि भारत ने अतीत में इस तरह के कुछ एकतरफा कदम उठाए हों, लेकिन पाया कि यह दूसरे पक्ष ने ऐसा नहीं किया था। उन्होंने कहा, ”हमने जो कुछ भी किया है वह आपसी और समान सुरक्षा के सिद्धांत के आधार पर किया है, जिसका मतलब है कि अगर हम यहां से वापस जाते हैं, तो वे वहां वापस चले जाते हैं।”-

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