अब सीमा पर तैनात जवानों को मिलेंगे, ये आधुनिक हेलमेट

जवानों की सुरक्षा के लिए कई दशक बाद सेना को आधुनिक  हेलमेट मिलने जा रहे हैं. ये बैलेस्टिक-हेलमेट कानपुर की एक कंपनी, मेक इन इंडिया के तहत बना रही है. रक्षा मंत्रालय ने एमकेयू नाम की इस कंपनी से 170 करोड़ रुपये में करीब डेढ़ लाख हेलमेट का करार किया है.हेलमेट एमकेयू के कानपुर स्थित प्लांट में  बनने शुरू हो गए हैं. माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक हेलमेट की पहली खेप सेना को मिल जायेगी.

ये मार्डन कॉम्बेट हेलमेट युद्ध और काउंटर इनसर्जेंसी और एंटी टेरेरिस्टऑपरेशन के लिए खासतौर से तैयार किए गए हैं. ये हेलमेट नाईन (9)एमएम कारतूस को झेलने में सक्षम है.  ये हेलमेट किसी भी आधुनिक योद्धा के लिए बेहद जरूरी है.  क्योंकि ये सिर, माथा, कान और गर्दन की सुरक्षा करता है. साथ ही ये हेलमेट बम और ग्रेनेड के शार्पन्लस भी झेल जाता है.

खास बात ये है कि इन हेलमेट्स में मार्डन कम्यूनिकेशन डिवाइस  और नाइट विजन डिवाइस लगाए जा सकते हैं. एमकेयू कंपनी के डायरेक्टर वैभव गुप्ता ने एबीपी न्यूज को बताया कि जो डेढ़ लाख हेलमेट कंपनी सेना के लिए तैयार कर रही है उनमें से 50 हजार हेलमेट्स में कम्यूनिकेशन डिवाइस लगे होंगे.  इन हेलमेट्स को ‘कमांडर हेलमेट’ कहा जाता है. ये सभी हेलमेट खास तरह के आर्मर्ड-मैटीरियल से तैयार किए गए हैं. सुरक्षा कारणों से एमकेयू कंपनी ने इस हेलमेट की तकनीकी बारिकियां हमसे साझा करने में असमर्थता जताई.

दरअसल, सेना के इंफेंट्री जवान और राष्ट्रीय राइफ़ल्स के जवान अभी ‘पटका’ इस्तेमाल करते हैं. ये देश में ही बने हुए हैं और एक लोहे की ग्रिप पर मात्र कपड़ा लिपटा हुआ होता है. ये पटका मात्र माथे को सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन इस पटके से ना तो सिर, और ना ही कान के करीब का हिस्सा या फिर गर्दन की सुरक्षा होती है. यही वजह है कि सैनिकों की सुरक्षा ठीक प्रकार से नहीं हो पा रही थी. साथ ही ये पटका लोहे का होने की वजह से काफी भारी होता था. इस पटके का वजन करीब ढाई से तीन किलो का होता है. जबकि एमकेयू कंपनी द्वारा बनाए जा रहे हेलमेट का वजन मात्र एक किलो तीस ग्राम (1.30 किलो) है. जवानों को लंबे समय तक पटका लगाए रखने में काफी दिकक्त आती थी.

गौरतलब है कि एलओसी पर पाकिस्तान की स्नाईपर फायरिंग से भी हमारे सैनिक शहीद हो रहे थे. स्नाईपर फायरिंग में दुश्मन की कोशिश होती है कि गोली शरीर के ऊपरी हिस्से में मारी जाए. क्योंकि शरीर का ऊपरी हिस्सा काफी संवदेनशील होता है और इस कारण से सैनिक शहीद हो रहे थे. इसलिए एलओसी पर तैनात सैनिकों के लिए नए हेलमेट काफी सेफ्टी प्रदान करेंगे. साथ ही आतंकग्रस्त जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्व के उग्रवाद प्रभावित राज्यों में बम विस्फोट और हेंड ग्रैनेड की मार से भी ये आधुनिक हेलमेट काफी सेफ्टी प्रदान करेगा. क्योंकि बम विस्फोट से कभी कभी सिर में भी काफी चोट आती थी. लेकिन नए हेलमेट से सिर की सेफ्टी भी रहेगी.

हाल ही में नए सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी जवानों के प्रोटेक्टिव-गियर को लेकर चिंता जताई थी. जनरल रावत के मुताबिक, सैनिकों को तकनीक और हथियार देने के साथ-साथ सुरक्षा भी मिलनी चाहिए. इसके लिए बेहद जरुरी है कि सैनिकों को ब्लैस्टिक-हेलमेट्स दिए जाएं.

हाल ही में सेना की एक इंटरनल रिपोर्ट भी आई थी जिसमें कहा गया था कि दुनिया की दूसरी आधुनिक सेनाओं की तरह, भारतीय सेना के जवान युद्ध के मैदान में सिट्युनेशनल एवयरनेस सब-सिस्टम से लैस नहीं होते हैं. इसलिए बेहद जरुरी है कि युद्ध के मैदान में वे लड़ाई के साथ-साथ आधुनिक कम्युनिकेशन डिवाइस से भी लैस हो. ताकि लड़ते वक्त भी वे वस्तु-स्थिति को लेकर अपने अधिकारियों से संपर्क बनाए रखें और अधिकारियों से जरूर दिशा-निर्देश लेते रहें.

सेना ने कुछ साल पहले इजरायल से खास तरह के हेलमेट्स का करार भी किया था. लेकिन ये खास तरह के हेलमेट्स सिर्फ स्पेशल फोर्स के पैरा-कमांडोज़ के लिए थे. लेकिन इंफेंट्री और राष्ट्रीय राईफल्स के जवान जो रात-दिन एलओसी सहित जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में दुश्मनों से लड़ रहे थे, उन्हें पटके से ही काम करना पड़ रहा था. यही वजह है कि दो दशक बाद सेना के इंफेंट्री जवानों को आधुनिक हेलमेट मिलने जा रहे हैं. इसके अलावा सेना ने जवानों के लिए 50 हजार बुलेटप्रूफ जैकेट्स मुहैया कराने का करार किया है. ये करार टाटा कंपनी से किया गया है.

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