अपने-अपने राज्यों के नेताओं से पूछे यूपी, बिहार में क्यों नही हुआ विकास: राज ठाकरे

 महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे एक बार फिर उत्तर भारतीयों पर निशाना साधते हुए नजर आये। ठाकरे में मुंबई में हो रहे उत्तर भारतीयों के एक संगठन ‘उत्तर भारतीय मंचÓ की रैली को संबोधित करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार से यहां आए लोगों को अपने-अपने राज्यों  के नेताओं से वहां विकास के अभाव पर सवाल पूछना चाहिए। अपने-अपने राज्यों के नेताओं से पूछे यूपी, बिहार में क्यों नही हुआ विकास: राज ठाकरे

ठाकरे ने कहा कि वे अपनी विरोध प्रदर्शनों के लिए कोई स्पष्टïी करण नहीं देने आए हैं, बल्कि हिंदी में विचार रख बड़ी संख्या में लोगों तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं। ठाकरे ने कहा,उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने देश को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (जो वाराणसी से सांसद हैं) सहित कई प्रधानमंत्री दिए हैं। आप में से कोई उन नेताओं से क्यों नहीं पूछते कि उनका राज्य औद्योगीकरण में पीछे क्यों छूट रहा है और क्यों वहां कोई रोजगार नहीं मिल रहा है।

राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में अगर नौकरी केअवसर हैं तो क्या ये गलत है कि महाराष्ट्र के युवाओं को पहली प्राथमिकता दी जाए? अगर यूपी में एक इंडस्ट्री खुलती है तो वहीं के युवाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ऐसा ही बिहार में भी होना चाहिए। इसमें क्या गलत है? 

उन्होंने कहा, मुंबई आने वाले लोगों में अधिकांश लोग यूपी, बिहार, झारखंड और बांग्लादेश से हैं। मैं सिर्फ ये चाहता हूं कि अगर लोग आजीविका की तलाश में महाराष्ट्र आ रहे हैं, तो उन्हें यहां किस्थानीय भाषा और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा, जब भी मैं अपना पक्ष रखता हूं जिससे यूपी और बिहार के लोगों के साथ विवाद हो जाता है, तो हर कोई मेरी आलोचना करता है। लेकिन, हाल में गुजरात में बिहार के लोगों पर हुए हमलों के बाद, किसी ने भी सत्तारूढ़ दल या प्रधानमंत्री से इस बारे में सवाल नहीं किया। 

उन्होंने कहा, इसी तरह के विरोध असम और गोवा में भी हुए। लेकिन, मीडिया ने उसे कभी भी तवज्जों नहीं दी। लेकिन, मेरे विरोध को हमेशा ही मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर कर पेश किया जाता है। इसके अलावा उन्होंने हिंदी के राष्ट्रीय भाषा होने को भी गलत ठहराया। उन्होंने कहा कि बेशकहिंदी सुंदर भाषा है। लेकिन, ये गलत है कि ये राष्ट्रीय भाषा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय भाषा को लेकर कभी भी निर्णय नहीं लिया गया। हिंदी भाषा की तरह ही बाकी दूसरी भाषाएं हैं।

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