अगर आपके साथ रोज होती हैं ये चीजें, तो मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं आप

मन क्यों नहीं लगता है? बेचैन क्यों रहते हैं?  लगातार ऐसा हो रहा है, तो आप इसे गंभीरता से लें। अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है। इसे कार्यशैली या जीवनशैली से जोड़कर नजरअंदाज न करें। भागदौड़ भरी जिंदगी में खुद पर ध्यान न देने की आदत, हमें अंदर ही अंदर बीमार बना रही होती है। दैनिक जीवन की छोटी-छोटी परेशानी जैसे जल्दी नींद न आना, हर समय बेचैन रहना आदि को हम अक्सर काम का दबाव समझकर नजरअंदाज करते हैं। लेकिन इन्हें नजरअंदाज करने के बजाय इन पर गौर करना ज्यादा जरूरी है। 

अगर यह समस्या लंबे समय से है, तो यह अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर के लक्षण हैं। कामकाजी लोग अक्सर इन लक्षणों को काम का हिस्सा मानकर नजरअंदाज करते रहते हैं, जो आगे चलकर गंभीर मानसिक बीमारी बन जाती है। दैनिक जीवन में कुछ सामान्य से लक्षण हैं, जो बीमारियों का इशारा हैं। अक्सर इन्हें हम जीवनशैली और खानपान से जोड़कर देखते हैं। जैसे मन नहीं लगना, काम पर फोकस नहीं कर पाना, भूख असंतुलित होना आदि। ये लक्षण मानसिक बीमारियों का इशारा होते हैं। इन्हीं बीमारियों में से एक बीमारी है, अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर। इस बीमारी में हम ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। तनाव हावी रहता है, मन नहीं लगता है, काम को ठीक से पूरा नहीं करते, बेचैन रहते हैं। अगर आपके साथ रोज होती हैं ये चीजें, तो मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं आप

वैसे तो यह बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है, लेकिन बड़े भी इससे अछूते नहीं हैं। इस बीमारी को ‘साइलेंट डिसऑर्डर’ भी कहा जाता है, क्योंकि लोग इनके लक्षणों को कामकाज या जीवनशैली का हिस्सा मानकर नजरअंदाज करते रहते हैं। बीमारी तब पकड़ में आती है, जब समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। जुड़वा और पारिवारिक अध्ययनों से पता चला है कि अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर का जोखिम वैसे लोगों को ज्यादा होता है, जिनके रिश्तेदार (जैसे माता-पिता, भाई या बच्चे) इस रोग से पीड़ित हैं। 

साथ ही बचपन या अन्य आघात में दुर्व्यवहार (शारीरिक या यौन) का सामना करने वाले लोगों में इसका जोखिम अधिक होता है। ज्यादातर लोगों को समस्या रहती है कि वह छोटी-छोटी चीजों को जल्दी भूल जाते हैं। तुरंत निर्णय नहीं ले पाते हैं। गुस्सा बहुत जल्द आता है। चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट हावी रहती है। छोटी-छोटी बातें बेचैनी बढ़ाती हैं। कुछ दिन तक यह समस्या बनी रहे, तो कोई डरने की बात नहीं है। अगर यह दिक्कत लंबे समय से है, तो यह अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर के लक्षण हैं। इसके अलावा अगर अक्सर बिना किसी कारण के रोने का मन करता है, अपने शौक के प्रति रुझान कम हो जाता है, रातों को नींद नहीं आती। खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं, निराशा हावी रहती है, तो यह लक्षण है कि आप डिप्रेशन में हैं।

विशेषज्ञ कहते हैं… 
अगर लंबे समय से ऐसी कोई परेशानी है, जिससे आपकी कार्यक्षमता पर असर पड़ रहा है या आप चाहकर भी खुद को उससे बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं, तो यह बीमारी के लक्षण हैं। तनाव, बेचैनी, कार्य में मन न लगना, ध्यान न लगा पाना, स्मरण कमजोर होना, खुश न रह पाना, मरने का विचार आना आदि ऐसे लक्षण हैं, जो मानसिक बीमारियों का इशारा हैं। यह अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर, एंग्जाएटी डिसऑर्डर,  डिप्रेशन आदि बीमारियों के लक्षण होते हैं। यह बीमारी पारिवारिक इतिहास, लाइफस्टाइल, स्ट्रेस, नशीले पदार्थों के सेवन आदि से हो सकती है। इन्हें नजरअंदाज न करें और न ही इन्हें कार्यशैली से जोड़कर देखें। चिकित्सक से संपर्क करें, इसका निदान संभव है। चर्चित हस्तियां भी रही हैं पीड़ित : 
आंकड़ों पर गौर करें तो लगभग 50 में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) हो सकता है। पुरुषों और महिलाओं में इसका अनुपात लगभग समान है। इंग्लैंड में लगभग 10 लाख लोग ओसीडी से पीड़ित हैं। जीव वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन, फ्लोरेंस नाइटिंगल, पिल्ग्रिम प्रोग्रेस के लेखक जॉन बनियन आदि ओसीडी से ग्रसित हस्तियों में से हैं। यदि आपका बार-बार दोहराने वाला व्यवहार आनंद देने वाला है तो यह ओसीडी नहीं होता जैसे, जुआ खेलने की आदत, शराब पीना आदि ओसीडी नहीं होते हैं।
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