हिंदू धर्म में क्यों की जाती है लिंग की पूजा, जानें शिवलिंग का रहस्य

हर किसी को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता। इसलिए अन्य धर्म के लोग कहते हैं कि हिन्दू धर्म में लिंग की पूजा की जाती है जबकि संस्कृत में लिंग का अर्थ होता है चिन्ह का प्रतीक। इसी तरह शिवलिंग का अर्थ है ‘शिव का प्रतीक’। पुरुष लिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक, इसी प्रकार स्त्री लिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसक लिंग का अर्थ नपुंसक का प्रतीक। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और  निराकार परम पुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कंद पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनंत ब्रह्मांड (क्योंकि ब्रह्मांड गतिमान है) का अक्ष/धुरी ही लिंग है। शिवलिंग का अर्थ अनंत भी होता है अर्थात जिसकी कोई शुरूआत नहीं और न ही कोई अंत है। इसलिए शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनि नहीं होता। दरअसल यह गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और भ्रमित लोगों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुई है।हिंदू धर्म में क्यों की जाती है लिंग की पूजा, जानें शिवलिंग का रहस्य

शिवलिंग के संदर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिन्ह, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण उसे लिंग कहा है तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे प्रकाश स्तंभ/ लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, ऊर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ/लिंग।

ब्रह्मांड में दो ही चीजें हैं-ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि दोनों का समान है।

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