

उम्मीद इसलिए कि राजधानी के स्कूलों में इस कानून के तहत 25000 सीटें हैं, पर दाखिले सिर्फ 580 को मिले।
आरटीई अधिनियम तो कहता है कि निजी स्कूल 25 फीसदी सीटों पर गरीब परिवार के बच्चों का प्रवेश दें। पर, आरटीई पर काम कर रहीं भारत अभ्युदय फाउंडेशन की समीना बानो एक अलग ही तस्वीर पेश करती हैं।
वे कहती हैं, 25 हजार सीटों में से 580 पर जो दाखिले दिए गए, उसके लिए भी बेसिक शिक्षा विभाग से लेकर जिला प्रशासन तक काफी मशक्कत करनी पड़ी। हालांकि बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी दूसरी तस्वीर पेश करते हैं।
उनका कहना है कि इस साल आरटीई के तहत कुल 2018 आवेदन ही आए। इसमें से 611 को डीएम राजशेखर ने दाखिले के लिए पात्र पाया। इसमें से 580 को दाखिले दे दिए गए हैं।
उनकी मानें तो 31 एडमिशन ही निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का होना बाकी है। इन 31 बच्चों के सवाल पर त्रिपाठी कहते हैं कि एक हफ्ते में इनके एडमिशन हो जाएंगे। इसके लिए स्कूलों को चिह्नित किया जा रहा है। पर, बड़ा सवाल है कि आखिर दाखिला पाने वाले बच्चे कैसे अपना कोर्स कम्प्लीट करेंगे, जबकि सत्र आधे से ज्यादा खत्म हो चुका है।
25000 सीटें होने के बावजूद 2018 आवेदन आना पेचीदगी की बात को साबित करता है। जो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं, इस प्रक्रिया को पूरा करना ही बड़ी चुनौती है। दूसरी दिक्कत ये है कि इस संबंध में जारी शासनादेश में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों की सीटें फुल होने के बाद ही निजी स्कूलों की 25 फीसदी सीटों पर छह से 14 साल तक के बच्चों का दाखिला दिया जाएगा।
इसके अलावा जिन क्षेत्रों में सरकारी विद्यालय नहीं है, वहां प्राइवेट में दाखिला कराया जाएगा। चुनौती यह भी बहुत से स्कूल सिर्फ इसलिए गरीब बच्चों को दाखिला देने से कतराते हैं कि उनके स्कूल का स्तर कम हो जाएगा। प्रशासन की सख्ती पर स्कूलों ने दाखिले लिए।
इससे यह साफ है कि स्कूलों ने प्रवेश तो दे दिए लेकिन शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती इन बच्चों को बराबरी का दर्जा दिलाना भी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि गरीब बच्चों को स्कूल के अन्य बच्चों के साथ एक ही कक्षा में पढ़ाएंगे।
जिला प्रशासन को सबसे अधिक मशक्कत सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में प्रवेश सुनिश्चित कराने में हुई। लेकिन कुछ अन्य स्कूलों जैसे डीपीएस, एसकेडी, एलपीसी, नवयुग रेडियंस, बेबी मार्टिन, एग्जॉन मांटेसरी, कॅरिअर कॉवेंट ने भी प्रवेश के समय काफी आनाकानी की थी। हालांकि जिला प्रशासन की सख्ती के बाद इन स्कूलों ने अपने यहां प्रवेश किए।