सोनिया गांधी को अंतरिम अध्‍यक्ष बनाने के बाद उनके सामने आई कई नई चुनौतियां

सोनिया गांधी को कांग्रेस पार्टी का अंतरिम अध्‍यक्ष चुने जाने के बाद एक सवाल लोगों के जहन में उठ रहा है कि आखिर जब उन्‍हें ही यह पद सौंपना था तो पार्टी ने इतना समय बर्बाद कर यह सियासी ड्रामा क्‍यों रचा। हालांकि, सोनिया को यह पद सौंपने के बाबत कुछ लोगों का ये भी कहना है कि इस बार पार्टी की बागडोर फिर से गांधी परिवार के बाहर जाएगी, तो कुछ ये भी मान रहे हैं कि पार्टी अध्‍यक्ष कोई भी बने लेकिन हकीकत ये है कि गांधी परिवार का वर्चस्‍व पार्टी में कम नहीं होगा। वहीं कुछ का ये भी कहना है कि जो भी अध्‍यक्ष पद पर बैठेगा वह केवल मुखौटा होगा पार्टी फिर भी सोनिया-राहुल एंड कंपनी ही संभालेगी। यह सवाल और इस तरह के विचार किसी कुछ लोगों के नहीं बल्कि अनेक लोगों के मन में उठ रहे हैं। चूंकि पार्टी में आंतरिक चुनावों के लिए कोई टाइमलाइन तय नहीं की गई है, इसलिए जाहिर है सोनिया गांधी ही आगे भी पार्टी का नेतृत्व करती रहेंगी।

खुद छोड़ा था पार्टी का अध्‍यक्ष पद 
आपको बता दें कि करीब 20 माह पहले सोनिया गांधी ने स्‍वेच्‍छा से पार्टी का अध्‍यक्ष पद त्‍यागा था। उस वक्‍त राहुल को सर्वसम्‍मति से पार्टी का अध्‍यक्ष चुना गया था। उनके नेतृत्‍व में पार्टी ने राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़ और मध्‍य प्रदेश में सरकार बनाई। उस वक्‍त ऐसा लग रहा था कि राहुल राजनीति की बारीकियों को समझ चुके हैं और तीन राज्‍यों में मिली उन्‍हें लोकसभा चुनाव में फायदेमंद साबित होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि वो खुद अमेठी से भाजपा प्रत्‍याशी और केंद्रीय मंत्री स्‍मृति ईरानी से चुनाव हार गए। इसके बाद से वो लगातार पद छोड़ने की बात कर रहे थे। अब जबकि सीडब्‍ल्‍यूसी में राहुल का इस्‍तीफा स्‍वीकार किया जा चुका है और सोनिया गांधी को अंतरिम अध्‍यक्ष बना दिया गया है, तो यह सवाल लाजमी है कि इस मौके पर वह पार्टी के लिए कितनी फायदेमंद साबित होंगी।

नाजुक दौर में पार्टी को दी मजबूती 
सोनिया गांधी सबसे अधिक समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं। उन्‍होंने बेहद नाजुक दौर में पार्टी की कमान संभाली थी। इतना ही नहीं अनेक बार वह पार्टी के लिए संकटमोचक की भूमिका में रही हैं और पार्टी को एकजुट रखने में भी सफल साबित हुई हैं। लेकिन इस बार उनकी राह पहले से कहीं ज्‍यादा मुश्किल है। राजनीतिक जानकारों की बात करें तो वो मानते हैं कि कांग्रेस की जो दुर्गति उसकी जिम्‍मेदार वो खुद है। राजनीतिक विश्‍लेषक शिवाजी सरकार का कहना है कि बीते एक दशक में कांग्रेस ने जो अपनी जमीन खोई है उसकी वजह कांग्रेस के जमीन से जुड़े संगठन थे उनका खत्‍म होना है।

कांग्रेस की कमजोरी बनी भाजपा की मजबूती 
उनके मुताबिक कांग्रेस की इसी कमजोरी को भाजपा ने अपनी मजबूती बनाया है। वर्तमान में भाजपा ने सबसे निचले स्‍तर पर अपने संगठन को तैयार किया है। यही वजह है कि आज देश के अधिकतर राज्‍यों में भगवा परचम लहरा रहा है। यह संगठन रातों रात तैयार नहीं हुआ इसके लिए भाजपा ने पहले से ही हर स्‍तर पर तैयारी की है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की बात करें तो उसके नेताओं ने अपने संगठन और अपनी पहचान बनाने के लिए जमीन पर कोई काम नहीं किया। लिहाजा, सोनिया गांधी हो या कोई दूसरा नेता, जब तक कांग्रेस वापस अपने उन्‍हीं संगठनों पर अपना फोकस नहीं करती और उनकी मजबूती पर ध्‍यान नहीं देती है तब तक उसका उद्धार नहीं हो सकता है।

इन राज्‍यों में होगी सोनिया की परीक्षा 
आने वाला समय सोनिया के लिए चुनौतीपूर्ण इसलिए भी है क्‍योंकि झारखंड, महाराष्‍ट्र, हरियाणा और दिल्‍ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। उनके पास इन तीनों राज्‍यों में चुनावी तैयारियों को लेकर समय भी कम बचा है। वहीं जम्‍मू कश्‍मीर के मुद्दे पर दोफाड़ हो चुकी कांग्रेस को दोबारा एक मंच पर लाना और कार्यकर्ताओं समेत अपने मतदाताओं को एकजुट करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है। सोनिया गांधी की वापसी एक ऐसे समय हुई है जब कांग्रेस को एक के बाद एक बड़े नेता छोड़ रहे हैं और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की ताकत बढ़ती जा रही है। जिन राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं उनमें कांग्रेस सत्ता में रह चुकी है, लेकिन इस समय उसकी हालत बेहद खराब है। इन राज्यों में नेताओं की कलह खुलकर सामने आ चुकी है। इन सबको पटरी पर लाना सोनिया की सबसे बड़ी तात्कालिक चुनौती है।

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