मालदीव: बढ़ा भारत का दबदबा, राष्ट्रपति सोलिह की स्पीच में सिर्फ हिंदुस्तान का नाम
माले: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए. राष्ट्रपति सोलिह ने शपथ ग्रहण के बाद अपने भाषण में विश्व के कई शक्तिशाली देशों के नामों का जिक्र न करते हुए केवल भारत का नाम लिया. बताया जा रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी इकलौते राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिन्हें इस शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए बुलाया गया था. इससे पहले एयरपोर्ट पर उनका स्वागत करने के लिए नई मालदीवी संसद के अध्यक्ष कासिम इब्राहिम के साथ कई वरिष्ठ अधिकारियों ने उनका स्वागत किया.
पीएम मोदी मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति से की मुलाकात
पीएम मोदी नेशनल स्टेडियम में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए. इसके बाद उन्होंने भारत के साथ संबंधों को लेकर राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह से बातचीत की. वहीं, अब पीएम मोदी वापस भारत के लिए रवाना हो गए हैं. नेशनल स्टेडियम में हुए शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी ने मालदीव के कई नेताओं के मुलाकात की. शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मोदी मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और मौमून अब्दुल गयूम के बगल में बैठे थे. समारोह में श्रीलंका की पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग भी शामिल हुईं. राष्ट्रीय स्टेडियम में हुए शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मोदी ने मालदीव और दुनिया के अन्य देशों के नेताओं से बातचीत की. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की यह पहली मालदीव यात्रा है. नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से मालदीव की यात्रा नहीं की थी.
सितंबर में हुए आम चुनाव में सोलिह ने हासिल की थी जीत
पीएम नरेंद्र मोदी इससे पहले 2015 में मालदीव की यात्रा पर जाने वाले थे, लेकिन वहां पर पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशिद की गिरफ्तारी के बाद बढ़े सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी थी. मालदीव में सितंबर 2018 में हुए आम चुनाव में मालदिवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने जीत हासिल की थी. उन्होंने उस समय के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को हरा दिया था. बता दें कि सोलिह के गठबंधन को आम चुनाव में 58 फीसदी वोट हासिल मिले थे.
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन माने जाते थे चीन के करीबी
भारत और मालदीव के संबंधों में पूर्ववर्ती यामीन के शासन के दौरान तनाव देखने को मिला था क्योंकि, उन्हें चीन का करीबी माना जाता है. भारतीयों के लिये कार्यवीजा पर पाबंदी लगाने और चीन के साथ नये मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर को लेकर भी भारत खुश नहीं था. यामीन द्वारा इस साल पांच फरवरी को देश में आपातकाल की घोषणा किये जाने के बाद भारत और मालदीव के रिश्तों में और कड़वाहट आ गई थी. भारत ने इस फैसले की आलोचना करते हुए उनकी सरकार से लोकतंत्र और सियासी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को फिर से बहाल करने और राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग की थी. मालदीव में 45 दिन तक आपातकाल रहा था.
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है मालदीव
मालदीव में हाल में हुए राष्ट्रपति चुनावों के बाद हुए सत्ता परिवर्तन में चीन की उम्मीदों के उलट इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को जीत मिली है. चीन के समर्थन वाले अब्दुल्ला यामीन चुनाव हार गए थे. इन परिणामों से चीन इस कदर सकते में आया था कि पहले दो दिन तो वह सोलिह को बधाई भी नहीं दे पाया था. उसके बाद उसने सोलिह को बधाई दी. सोलिह को दुनिया में सबसे पहले बधाई पीएम मोदी ने दी थी. सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस देश के नए मुखिया को पीएम मोदी ने तभी भारत आने का निमंत्रण दे दिया था. इसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया था.
सत्ता परिवर्तन के साथ बदले चीन के सुर
इतना ही नहीं चीन के विशेषज्ञों ने कहा था कि दोनों देशों को मिलकर मालदीव में काम करना चाहिए. चीन के राजदूत झांग लिजोंग ने मोहम्मद सोलिह से औपचारिक मुलाकात कर उन्हें चीन आने का निमंत्रण दिया था. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, चीन के राजदूत और मालदीव के होने वाले राष्ट्रपति की मुलाकात में मुख्य मुद्दा ये था कि चीन आगे भी किस तरह से मालदीव में प्रोजेक्ट में हिस्सेदारी जारी रख सकता है. हालांकि, सोलिह ने साफ कर दिया था कि इस समय मालदीव की पहली प्राथमिकता लोकतंत्र को फिर से बहाल करना, मानवाधिकार की रक्षा और पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना है. बता दें कि अब्दुल्ला यामीन की हार से चीन को बड़ा झटका लगा था. वह चीन के पिट्ठू की तरह काम कर रहे थे. यहां तक कि मालदीव के चुनावों में चीन की दखलअंदाजी हुई थी. चुनावी कैंपेन के समय विपक्षी दलों की ओर से ये कहा गया था कि उनकी सरकार बनने पर वह चीन के तमाम प्रोजेक्ट का दोबारा से परीक्षण करेगी.
चीन मालदीव में आपसी सहयोग के साथ काम करेगा- चीन का सरकारी अखबार
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि चीन मालदीव में आपसी सहयोग के साथ काम करेगा. वहीं, चीन वेस्ट नॉर्मल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर का कहना था कि भारत और चीन को प्रतिस्पर्धा की बजाए आपसी सहयोग से काम करना चाहिए. शिंगचुआन के मुताबिक मालदीव में दोनों देश साथ में काम करें तो बेहतर होगा. सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सोलिह चाहकर भी चीन के सभी प्रोजेक्ट को खत्म नहीं कर सकते. भले उनका फायदा भारत के साथ ज्यादा जुड़ा हो. मालदीव में बदले हालात को भांपते हुए अब चीन की ओर से कहा जा रहा है कि चीन और भारत मिलकर मालदीव के विकास में पूरा योगदान दे सकते हैं. इससे पहले यामीन के शासनकाल में भारतीय कंपनियों को हाशिये पर ढकेल दिया गया था.