अमेठी और रायबरेली में सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में नहीं उतारेगी अपने उम्मीदवार, मायावती ने खोला बड़ा राज

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ साझा कॉन्फ्रेंस कर उत्तर प्रदेश में गठबंधन का ऐलान कर दिया. इसके साथ ही मायावती ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों का फॉर्मूला सामने रखा. इसके तहत सपा-बसपा 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी और दो सीटें को क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ दिया है. बाकी बची दो सीटें यानी अमेठी और रायबरेली ऐसी हैं जहां सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में उम्मीदवार न उतारने की रणनीति अपनाई है.

मायावती ने कहा कि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं होगी. उन्होंने कहा, ‘हम किसी भी ऐसी पार्टी को गठबंधन में शामिल नहीं करेंगे जिससे पार्टी या गठबंधन को नुकसान पहुंचे.’ हालांकि, इसके बाद उन्होंने कांग्रेस की परेशानी पर मरहम लगाने के लिए अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन के उम्मीदवार को न लड़ने का ऐलान भी किया.

मायावती ने कहा, ‘अमेठी और रायबरेली, यह दोनों लोकसभा की सीटें हमने कांग्रेस पार्टी के साथ बिना कोई गठबंधन किए ही उनके लिए छोड़ दी हैं, ताकि बीजेपी के लोग इन दोनों सीटों पर कांग्रेस पार्टी की संरक्षक व उनके अध्यक्ष को उलझाकर न रख सकें.’ हालांकि, समाजवादी पार्टी पहले भी चुनावों में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारती थी. लेकिन बसपा उम्मीदवार मैदान में होता था. वहीं, कांग्रेस ने कन्नौज और मैनपुरी जैसी सीटों पर सपा के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे.

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दरअसल, मायावती ने अपने इस कथन से यह दिखाने की कोशिश की कि सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ नहीं है बल्कि एनडीए के खिलाफ है. यही कारण है कि उन्होंने अमेठी और रायबरेली की सीट पर नहीं लड़ने का फैसला लिया, ताकि कांग्रेस को वहां बीजेपी के खिलाफ चुनावी मैदान में किसी तरह की कोई दिक्कत न खड़ी हो सके. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर सपा-बसपा गठबंधन इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारते तो कांग्रेस के लिए परेशानी ज्यादा बढ़ सकती थी. ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी में ही उलझकर रह जाते और देश के बाकी राज्यों में बीजेपी को घेरने में समय न दे पाते.

बता दें कि इस दोनों सीटों को छोड़ने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि लोकसभा चुनाव नजीतों के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन की राह को खोले रखने की रणनीति है. हाल ही हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा दोनों ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजों के आने के बाद उन्होंने कांग्रेस को सरकार बनाने में समर्थन दिया.

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