नारदपुराण और धर्म शास्त्रों की कई पुस्तकों में कुछ ऐसे कामों में का वर्णन मिलता है जो मनुष्य के द्वारा किए गए सारे पुण्य कर्मों का फल एक क्षण में समाप्त कर देता है।
इस प्राकृतिक संरचना में गाय को न सिर्फ मनुष्य ने अपितु देवताओं ने भी विशेष दर्जा दिया है। पुराणों में गाय को नंदा, सुनंदा, सुरभि, सुशीला और सुमन भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण कथा में अंकित सभी पात्र किसी न किसी कारणवश शापग्रस्त होकर जन्में थे।
गाय को कामधेनु तथा गौ माता भी माना है। गाय मनुष्य को दूध, दही, घी, गोबर-गोमूत्र के रूप में पंचगव्य प्रदान करती है। सृष्टि की संरचना पंचभूत से हुई है। यह पिंड, यह ब्रहमाण्ड,पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश रूप पंचभूतों के पांच तत्वो से बना है। इन पंचतत्वो का पोषण और इनका शोधन गोवंश से प्राप्त पंच तत्वों से होता है। इसीलिए गाय को पंचभूत की मां कहां गया है।
देवीय पुराण और हिंदू धर्म के सभी शास्त्रों में गाय का अपमान करने वाले की घोर निंदा के पात्र माने गए है। गौमाता का अपमान करना ईशवर की दृष्टि में एक ऐसा पाप है, जिसका मनुष्य जीवन के कोई प्रायश्चित्त नहीं है। जो पुण्य तीर्थ दर्शन करके या यज्ञ करके बटोरा जाता है, वहीं सारा पुण्य केवल गौमाता की सेवा करने से ही प्राप्त हो जाता है।
विष्णुपुराण और हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों में यह बात वर्णित है कि तुलसी का अपमान स्वयं ईश्वर भी नही सह सकते। तुलसी का सबसे बड़ा अपमान है कि घर में तुलसी होने के बावजूद उसकी पूजा न होना। ऐसा का कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वह स्थान देवीय दृष्टि से पूजनीय स्थान होता है और उस घर में किसी भी तरह की बीमारी का आगमन नही हो सकता है। धार्मिक कार्यों में पूजी जाने वाली तुलसी, विज्ञान की दृष्टि से एक बहुत ही फायदेमंद औषधि भी है।
1. तुलसी का पौधा घरों में और मंदिरों के बाहर लगाया जाता है, साथ ही इसकी पत्तियां भगवान विष्णु को अर्पित की जाती हैं। जबकि गणेश जी और भगवान शिव के पूजन में तुलसी का प्रयोग वर्जित है।
2.वैदिक पुराणों में ऐसा कहा गया है कि तुलसी जी को पूजने वाला व्यक्ति स्वर्ग में जाता है।
3.तुलसी में प्रतिदिन जल चढ़ाने से व्यक्ति की आयु लंबी होती है।
4.शास्त्रों में कहा गया है कि तुलसी के पत्तों को कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए ये खास दिन कुछ इस प्रकार से है एकादशी, रविवार और सूर्य या चंद्रग्रहण काल में।
5 .बिना उपयोग तुलसी के पत्तों को कभी नही तोड़ना चाहिए, ऐसा करने पर व्यक्ति को दोष लगता है।
हम सभी जानते है कि गंगा का अवतरण स्वर्ग से सीधे पृथ्वी पर हुआ था, ऐसा कहा जाता है कि हिंदू धर्म में गंगा नदी को मां का दर्जा प्राप्त है। विष्णुपुराण और शिवपुराण में ऐसा कहा गया जो व्यक्ति गंगा का अपमान करता है उसके द्वारा किए गए सभी पुण्य कर्म पल क्षणभर में समाप्त हो जाते है। इसलिए पवित्र गंगाजल का सम्मान एक मां की भांति करना चाहिए। अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसका प्रयोग होता है। अगर आपने भी अपने घर में गंगाजल रखा है तो इन बातों को अवश्य जान लीजिए।
1.गंगाजल रखें गए कमरे में भूलकर भी मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से गृहदोष लगता है।
2. गंगाजल को कभी भी प्लास्टिक की बोतल या डिब्बे में नहीं रखना चाहिए। प्लास्टिक के बर्तन में रखा गंगाजल पूजा की दृष्टि से अशुद्ध माना जाता है। गंगाजल को सदैव तांबे, चांदी या अन्य किसी धातु के पात्र में रखा जा सकता है।
3. घर को बुरी शक्तियों, नजर दोष आदि नकारात्मक ऊर्जा से बचाए रखने के लिए हर दिन घर के चारों ओर गंगाजल का छिड़काव अवश्य करें। स्वच्छ हाथों से छुए गंगाजल को छूने से पहले हाथों को धोकर स्वच्छ करें। इसके बाद प्रणाम करके ही इसका उपयोग करना चाहिए।