फिर SC पहुंचा एलजी बनाम दिल्ली सरकार का मामला, अगले हफ्ते होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और एलजी के बीच अधिकारों की खींचतान खत्म न होने पर मंगलवार को दिल्ली सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ट्रांसफर पोस्टिंग जैसे सर्विस मैटर सहित लंबित कुल नौ अपीलों पर जल्द सुनवाई कर निपटारा करने की मांग की। कोर्ट ने कोई निश्चित तिथि तो नहीं दी लेकिन अगले सप्ताह सुनवाई के संकेत दिए हैैं।फिर SC पहुंचा एलजी बनाम दिल्ली सरकार का मामला, अगले हफ्ते होगी सुनवाई

दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का जिक्र करते हुए दिल्ली सरकार की लंबित कुल नौ अपीलों की संविधान पीठ के फैसले के आलोक में जल्दी निपटारे की मांग की। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वे अगले सप्ताह इस पर विचार करेंगे।

संविधानपीठ के फैसले के बाद वैसे तो दिल्ली की आप सरकार को कई मामलों में निर्णय लेने की छूट मिल गई है लेकिन ट्रांसफर पोस्टिंग आदि से जुड़े सर्विस मैटर फिलहाल लटके हैैं, क्योंकि पब्लिक आर्डर, पुलिस और भूमि के अलावा सर्विस मामलों का क्षेत्राधिकार भी उपराज्यपाल को देने वाली केन्द्र सरकार की 21 मई 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने की आप सरकार की अपील अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इसी तरह भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती करने वाली केन्द्र की 23 जुलाई 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील भी लंबित है।

हाईकोर्ट ने दोनों ही मामलों में दिल्ली सरकार की याचिकाएं खारिज कर दीं थीं जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे अपील हैैं। इसके अलावा दिल्ली सरकार की सात और अपीलें अभी लंबित हैैं जिनमें तीन मामले कमीशन आफ इन्क्वायरी के हैैं और एक सीएनजी से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गत 4 जुलाई को दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उप राज्यपाल के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों पर फैसला देते हुए कहा था कि लंबित अपीलों की मेरिट पर उचित पीठ सुनवाई करेगी।

संविधान पीठ ने फैसले में चुनी हुई सरकार को प्राथमिकता दी थी। कोर्ट ने कहा था कि उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह से काम करेंगे। मतान्तर होने पर वे मामले को फैसले के लिए राष्ट्रपति को भेज सकते हैैं लेकिन उप राज्यपाल स्वयं स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकते। उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया जरूर हैैं लेकिन उनके अधिकार सीमित हैैं। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल को समन्यवय के साथ मिलजुल कर काम करने की नसीहत दी थी। कहा था कि आपसी विवाद होने पर उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद के साथ बातचीत के जरिए मामला सुलझाएंगे। उनका रुख अडिय़ल नहीं बल्कि सकारात्मक होना चाहिए। कोर्ट ने ये भी कहा था कि लोकतंत्र में निरंकुशता और अराजकता के लिए कोई जगह नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का गलत उल्लेख कर रहे सीएमःएलजी

इससे पहले सोमवार को उपराज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के क्रियान्वयन पर गलत बयान दे रहे हैं। अभी कोर्ट की नियमित पीठ इस संदर्भ में सुनवाई करेगी, जिसके बाद ही निर्णय पर पूरी स्पष्टता आ पाएगी। 

सीएम ने एलजी से कहा- कोई उलझन है तो सुप्रीम कोर्ट जाइए

वहीं, सोमवार सुबह केजरीवाल ने उपराज्यपाल को पत्र लिखा था। उन्होंने लिखा था, ‘आप सुप्रीम कोर्ट के एक हिस्से को मान रहे हैं, जबकि दूसरे को नहीं। आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर सेलेक्टिव कैसे हो सकते हैं? या तो आप कहें कि पूरा आदेश मानेंगे और उसे लागू करेंगे या फिर कहें कि पूरा आदेश 9 मुद्दों पर सुनवाई के बाद ही मानेंगे। कृपया सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरा मानें और लागू कराएं। गृह मंत्रालय के पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या का अधिकार नहीं। कोई उलझन है तो सुप्रीम कोर्ट जाइए, लेकिन कोर्ट के आदेश का उल्लंघन मत करें।’

एलजी ने दी सीएम को सलाह- अपील अभी नियमित पीठ में लंबित

इसके जवाब में सोमवार शाम को ही उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि सीएम कोर्ट के निर्णय के क्रियान्वयन का गलत उल्लेख कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने संदर्भ का जवाब देते हुए निर्देश दिया है कि मामलों को उपयुक्त नियमित पीठ के समक्ष रखा जाए। इस मामले में पूर्ण स्पष्टता नियमित पीठ के समक्ष लंबित मामलों के अंतिम निपटारे के बाद ही आ पाएगी।’ उपराज्यपाल ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि चूंकि अपील अभी नियमित पीठ में लंबित है, इसलिए इस संबंध में पहले ही कोई अंतिम निर्णय नहीं निकाला जा सकता। उन्होंने इस पर भी सख्त आपत्ति जताई है कि कोई भी पत्र उनके कार्यालय में पहुंचने से पहले ही सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आ जाता है।

एलजी को लिखे गए मुख्यमंत्री के पत्र पर भाजपा का एतराज

अधिकारों को लेकर टकराव के बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एलजी को पत्र लिखा है। पत्र की भाषा पर भाजपा ने एतराज जताया है। उसका कहना है कि सीएम के पत्र से स्पष्ट है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अपनी तरह से आधी अधूरी व्याख्या कर रहे हैं। मामले को सुलझाने और दिल्ली के विकास में उनकी कोई रुचि नहीं है। दिल्ली विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि मुख्यमंत्री गंभीर विषय पर भी नाटक कर रहे हैं। वह एलजी की भारत के संविधान की जानकारी को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

मुख्यमंत्री के लिए यह नैतिक तथा वैधानिक रूप से अनुचित है कि वह उपराज्यपाल को कहें कि वे न्यायालय के आदेशों का अक्षरश: और भावना के साथ सम्मान करें। केजरीवाल एलजी को यह कहने वाले कौन होते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या के लिए वह अदालत में अवमानना याचिका दायर करें। पहले तो वह खुद अवमानना की याचिका दायर करने के नाम पर सभी को डराने की कोशिश कर रहे थे।

अब केंद्र व एलजी को याचिका दायर करने को कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने 14 अगस्त, 2016 के निर्णय में केंद्र सरकार की 21 मई, 2015 की अधिसूचना को मान्यता दी थी। अदालत ने कहा था कि सेवाओं के मामले में उपराज्यपाल केंद्र के दायित्व का निर्वहन करेंगे। हाई कोर्ट का यह आदेश अभी भी मान्य है। इसको लेकर किसी भी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए। संविधान की धारा 239 एए के अंतर्गत उपराज्यपाल को दी गई शक्तियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

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