गजब! भारत में यहां लिखी गई इतिहास की सबसे बड़ी एफआईआर, लग गए इतने दिन
उत्तराखंड के काशीपुर कोतवाली में इतिहास की सबसे बड़ी एफआईआर लिखी गई। खबरों के मुताबिक, यह एफआईआर 19 सितंबर के आस-पास लिखी गई थी। रिपोर्ट लिखते-लिखते पहले चार दिन गुजर चुके थे लेकिन फिर भी ये पूरी नहीं हो पाई थी। उस समय बताया गया कि इसे पूरा करने में दो से तीन दिन और लग जाएंगे।
यह मामला अटल आयुष्मान योजना से जुड़ा था। इस घोटाले में लिप्त दो बड़े अस्पतालों के खिलाफ पुलिस एक एफआईआर दर्ज कर रही थी। यह एफआईआर पुलिस के लिए भी सरदर्द बन गई। हिंदी और अंग्रेजी में भेजी गई यह एफआईआर लिखने में पुलिस के पसीने छूट गए।
दरअसल, पुलिस के एफआईआर टाइप करने वाले सॉफ्टवेयर की क्षमता 10 हजार शब्दों से अधिक नहीं होती, यही कारण था कि इस एफआईआर को पुलिस हाथ से लिखकर तैयार कर रही थी।
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने अटल आयुष्मान योजना के तहत रामनगर रोड स्थित एमपी अस्पताल और तहसील रोड स्थित देवकी नंदन अस्पताल में भारी अनियमितताएं पकड़ी थीं। जांच में दोनों अस्पतालों के संचालकों की ओर से नियम के खिलाफ रोगियों के फर्जी उपचार बिलों का क्लेम वसूलने का मामला पकड़ में आया था।
एमपी अस्पताल में रोगियों के डिस्चार्ज होने के बाद भी मरीज कई-कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती दिखाए गए। आईसीयू में भी क्षमता से अधिक रोगियों का उपचार दर्शाया गया। डायलिसिस केस एमबीबीएस डॉक्टर की ओर से किया जाना बताया गया और वो भी अस्पताल की क्षमता से कई गुना बढ़ाकर। आपको बता दें कि कई मामलों में बिना इलाज किए भी क्लेम प्राप्त कर लिया गया, जिसकी मरीज को भनक तक नहीं है।
उत्तराखंड अटल आयुष्मान के अधिशासी सहायक धनेश चंद्र की ओर से दोनों अस्पताल संचालकों के खिलाफ पुलिस को तहरीर सौंपी गईं थी। इसमें से एक तहरीर 64 पन्ने की है, तो दूसरी तहरीर करीब 24 पन्नों की। तहरीरों में अधिक विवरण होने के कारण इन अस्पताल संचालकों के खिलाफ ऑनलाइन एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती।
कोतवाली में एफआईआर दर्ज करने वाले सॉफ्टवेयर की क्षमता 10 हजार शब्दों से अधिक नहीं है जिसकी वजह से पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। एफआईआर दर्ज करने में देरी को लेकर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने 2 दिन में एफआईआर लिख कर पूर्ण करने की चेतावनी दी है।
मुसीबत इस एफआईआर में लिखने तक ही सीमित नहीं है। इतनी बड़ी एफआईआर की जब पुलिस विवेचना करेगी तो कम से कम एक पर्चा कटने में ही 15 दिन लग सकते हैं, जबकि विवेचना की डेडलाइन 3 महीने रखी गई है जो किसी भी तरह से पूरी नहीं हो सकती है। पुलिस के लिए पहली चुनौती इसको दर्ज करने की और उसके बाद इसकी विवेचना की, दोनों ही आसान नहीं है।