इस ब्रह्मांड में व्याप्त नकारात्मक शक्तियों को निष्क्रिय बनाने की ताकत श्वान में समाहित है। शकुन शास्त्र में श्वान को शकुन रत्न माना गया है, क्योंकि श्वान इंसान से भी अधिक वफादार, भविष्य वक्ता और अपनी हरकतों से शुभ-अशुभ का ज्ञान करवाता है। माना जाता है कि घर में काला श्वान पालने से शनि प्रसन्न होते हैं। जो लोग कुत्तों से प्रेम करते हैं, उन्हें खाना खिलाते हैं, शनि उनसे अति प्रसन्न होते हैं। जिस पर शनि देव की कृपा हो जाती है, उसके जीवन पर मंडरा रहे समस्त संकटों का नाश हो जाता है। साढ़े साती, ढैय्या या कुंडली का अन्य कोई दोष इस उपाय से निश्चित ही ठीक हो जाता है।
श्वान को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहू-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्तियों को यह लाभ पहुंचाता है। लाल किताब में केतु को श्वान माना गया है। घर में किसी भी रंग के श्वान को पालने से केतु के खराब प्रभाव को कम किया जा सकता है। श्वान को भगवान भैरव का परमप्रिय माना गया है। भैरव ने इसे अपना वाहन तो नहीं बनाया, लेकिन वे हमेशा इसे अपने साथ रखते हैं। इसलिए काल भैरव जयंती, रविवार और मंगलवार को श्वान की भी पूजा की जाती है।
त्रेता युग में श्वान से संबंधित एक प्रसंग आया है, जिसके अनुसार भगवान राम द्वारा आयोजित यज्ञ के दौरान एक श्वान का न्याय की गुहार के लिए प्रवेश होता है। महाभारत काल की एक और रोचक घटना श्वान से जुड़ी है। स्वर्गारोहण पर्व में युधिष्ठिर आदि पाण्डवों की हिमालय यात्रा के दौरान एक श्वान भी उनके साथ होता है, जो आखिर तक उनका साथ नहीं छोड़ता। हालांकि, कुछ धर्मों में इसे शैतानी माना गया है, तो हिन्दू धर्म में इसे कुशाग्र बुद्धि और रहस्यों को जानने वाला प्राणी माना गया है।
पुराणों में श्वान को यम का दूत कहा गया है। दरअसल, श्वान एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं और सूक्ष्म जगत की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। श्वान कई किलोमीटर दूर तक की गंध सूंघ सकता है। प्राचीन काल में लोग श्वान अपने साथ इसलिए रखते थे, ताकि वे जंगली जानवरों, लुटेरों और भूतादि से बच सके। बंजारा जाति और आदिवासी लोग श्वान को पालते थे, ताकि वे हर तरह के खतरे से पहले ही सतर्क हो जाएं। जंगल में रहने वाले साधु-संत भी श्वान इसलिए पालते थे, ताकि श्वान उनको खतरे के प्रति सतर्क कर दे।