ओबरा अग्निकाण्ड के जिम्मेदारों पर एमडी पांडियन का हंटर 

#CGM, AK Singh को मुख्यालय पर तो GM, DK Mishra को अनपरा भेजा गया.

#ओबरा अग्निकांड में बड़ों पर की गयी पहली कार्यवाई लेकिन असली गुनाहगार पहुँच से दूर.

#एमडी पांडियन को ढूढना होगा जवाब, कि बूढी परियोजना को चालू करने का दबाव किसने और क्यूँ बनाया.

#किसने परियोजना के इंजीनियरों की सलाह को दरकिनार, किसने बूढ़ी ईकाईयों को जबरन चालू करवा उन्हें फूंक दिया.

#तमाम आदेशों के बाद भी कौन है फायर सिक्युरिटी सिस्टम न लगाने का दोषी, कब होगी इनपर कार्यवाही.        

#एक अदने से कल्याण अधिकारी मानसिंह के तबादले के लिए सक्रिय रहने वाले मंत्री श्रीकांत शर्मा इसपर चुप क्यूँ हैं?

लखनऊ : ओबरा के भीषण अग्निकांड के बाद राख हुए पावर प्लांट को वापस पुनः स्थापित कर चालू करने में 6 महीने से कम का समय नहीं लगने की बात कही जा रही थी लेकिन उसको तय समय में चालू कराने के बाद एमडी पांडियन ने अब इसके गुनाहगारों पर कार्यवाही शुरू कर दी है. पांडियन ने ओबरा के मुख्य परियोजना प्रबंधक एके सिंह को उनके पद से हटाकर मुख्यालय से सम्बद्ध कर दिया है और दूसरे मुख्य अभियंता डीके मिश्रा को भी उनके पद से हटाते हुए उनकी तैनाती अनपरा में कर दिया है.

लेकिन ओबरा की आग को लेकर तमाम सवालों का जवाब अभी भी बाकी है. ओबरा की बीमार यूनिट को निदेशक तकनीकी द्वारा जबरन चालू कराने पर लगी थी आग. ओबरा प्लांट को तो चलाने में प्रबंध निदेशक रहे कामयाब लेकिन असली गुनाहगारों को अंजाम तक पहुंचाने में कब कामयाब होंगे यह देखने वाली बात होगी? उत्पादन निगम के कर्णधारों के भ्रष्टाचार और उनकी अकर्मण्यता के बावजूद ओबरा की राख हो चुकी 2 यूनिट को चालू करने में जो काबिलियत एमडी सैंथिल पांडियन ने दिखाई है वह काबिले तारीफ है. वह निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को लेकर संजीदा हैं यह अब दिखने लगा है. लेकिन असली गुनाहगारों तक वह कैसे पहुँचते हैं फिलहाल यह उनके लिए एक बड़ी चुनौती से कम नहीं है. निगम के बिगड़ चुके सिस्टम के बावजूद एमडी जिस तरह परिणाम दे रहे हैं उससे तो उम्मीद लोगों को जरूर लगी है कि वर्षों से चली आ रही निगम में अनियमितताओं पर अब रोक लगेगी.

बताते चलें कि बीते अक्टूबर माह में उत्पादन निगम के तकनीकी निदेशक बीएस तिवारी ने ओबरा में एमडी के दौरे से ठीक पहले अपने नंबर बढ़वाने के लिए परियोजना के इंजीनियरों की सलाह को दरकिनार कर बूढ़ी ईकाईयों को जबरन चालू करवा उन्हें फूंक दिया था. हालांकि अग्निकांड की जांच करने वाली सुमन गुच्च की कमेटी की रिपोर्ट में असली गुनहगार बच निकले और एक इंजीनियर को दंडित होना पड़ा. लेकिन सवाल अभी भी यह है कि इस ओबरा प्लांट को तो चलाने में प्रबंध निदेशक कामयाब रहे लेकिन क्या निगम में चल रहे भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब होंगे अथवा नहीं अब यह एक चर्चा का विषय बना हुआ है.

सवाल यह भी है कि वर्ष 2003 में ओबरा यूनिट की स्थापना के समय परियोजना में फायर सिक्योरिटी सिस्टम लगाने के लिए बीएचईएल ने मना कर दिया था. जिसके बाद इसकी जिम्मेदारी उत्पादन निगम की थी. फिर 27 जुलाई 2017 में योगी सरकार के मुख्य सचिव राजीव कुमार ने फायर सिक्योरिटी को लेकर एक शासनादेश जारी कर इसके पुख्ता इंतजाम किये जाने की बात कही थी. इसके बावजूद इन यूनिटों ओबरा, अनपरा डी आदि में अग्नि सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम निदेशक तकनीकी बीएस तिवारी द्वारा नहीं किया गया. यह एक बड़ा सवाल बना हुया है और इस पर प्रबंधन की चुप्पी भी सवाल खड़े करती है. सवाल तो यह भी है कि अभी तक पिछली सरकार के बिगड़े सिस्टम का हवाला देने वाले विभाग के बडबोले मंत्री श्रीकांत शर्मा अभी तक ऐसे अफसरों को किस लालच में ढो रहे हैं? क्या इनके पास कोई विकल्प नहीं है या फिर कुछ और? फिलहाल निदेशक तकनीकी बीएस तिवारी ओबरा अग्निकांड के बाद सुमन गुच्छ की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी से निजात भले ही पा लिया हो, लेकिन उनके गुनाहों की फेहरिस्त काफी लंबी है जो कि उनका पीछा नहीं छोड़ेगी.

गौरतलब है कि बीते माह 14 अक्टूबर को  तडक़े  ओबरा विद्युत बी परियोजना के बिटीपीएस माइनस के केबिल गैलरी में शार्ट सर्किट से आग लग गई थी. परियोजना में लगी आग से ओबरा बी परियोजना की 200 मेगावाट की तीन इकाई 9,10 और 11 ट्रिप हो गयी थीं.  रिपोर्ट के मुताबिक ओबरा विद्युत परियोजना के ओबरा बी के केबिल यार्ड में संदिग्ध परिस्थितियों में आग लगने से तीन इकाईयां ट्रिप हो गयी जिससे 1000 मेगावाट बिजली का उत्पन्द बन्द हो गया, बाद में एक ईकाई को चालू किया गया.

दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने जांच कमेटी बना दी थी जिसका नेतृत्व पारेषण निदेशक सुनील गुच्छ को सौंपा गया था.  जांच अधिकारी गुच्छ के जालसाजी गुच्छे के जाल में तेज तर्रार एमडी पांडियन भी फंस गए और इंजीनियर सुरेश को खामियों की ओर इशारा करने और सही कदम उठाने की राय देने की सजा दे दी गई. उत्पादन निगम के शातिर खिलाड़ी निदेशक बीएस तिवारी और जांच अधिकारी बने गुच्छ की सांठगांठ ने ओबरा बिजली घर अग्निकांड का राज बाहर नहीं आने दिया. खराब और न चलने वाली हालत को पहुंच चुकी ओबरा की यूनिट को जबरन चलवा फुंकवा देने के असली गुनाहगार न केवल साफ बच निकले बल्कि एमडी को गुमराह कर निर्दोषों का कत्ल करने में जुट गए.

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और उसके ऊर्जा मंत्री कितने भी दावे करें कि उनके शासनकाल में अफसरों की कार्यशैली में बदलाव आया है, और भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, या फिर उसमें कमी आई है. यह महज एक जुमलेबाजी ही साबित हो रही है खासकर बिली विभाग में. ओबरा विद्युत् ताप गृह में 14 अक्टूबर को हुए अग्निकांड की जांच रिपोर्ट देखने के बाद बात साबित होती दिख रही है.

साभार

अफसरनामा डाट काम

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