एक ऐसा हॉस्टल जहां लोग मरने के लिए ठहरते हैं…

muktiई दिल्ली (19 सितंबर): हर भारतीय इंसान मरने के बाद क्या चाहता है? अगर आप सोच रहे हैं कि इस सवाल का जवाब ‘स्वर्ग’ है तो वो ग़लत है। दरअसल, हर भारतीय मरने के बाद मोक्ष चाहता है ताकि उसे बार बार जन्म के चक्कर से मुक्ति मिल सके। मोक्ष पाना सारी परेशानियों और दुखों से आज़ाद हो जाने को कहा जाता है। मोक्ष की तलाश में लोग धार्मिक स्थानों पर जाते हैं, पवित्र गंगा में डुबकी लगाते हैं तो कोई धर्म गुरुओं की शरण लेता। लेकिन आपको बता दें, भारत में एक घर या हॉस्टल ऐसा भी है जहां लोग इसलिए जाते हैं कि वहां मरने के बाद उन्हें मोक्ष मिल जाए।

जी हां, यह सुनने में थोड़ा अजीब है, लेकिन वाराणसी में ‘काशी लाभ मुक्ति भवन’ के नाम से ऐसी ही एक जगह है। यहां हर साल अनेक लोग आते हैं। जाड़े के समय में यहां आने वालों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि इस समय ज्यादा लोग मरते हैं। गर्मियों में यहां आने वालों की संख्या घट जाती है। यहां रहने वाले पुजारी तरह तरह के रिवाजों और कर्मकांडों से मरने वालों को शांति से इस धरती को छोड़ने में मदद करते हैं।

जरा ठहरिए! अगर आप सोंच रहे हैं कि लोग यहां आत्महत्या करने जाते हैं तो आप गलत समझ रहे हैं। यह ना तो आत्महत्या करने की और ना ही इच्छामृत्यु की जगह है। यहां केवल मौत के करीब के वे लोग जाते हैं जो या तो लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त हैं या जो लोग महसूस करते हैं कि वे मरने वाले हैं। स्वस्थ लोगों को यहां रहने की इजाज़त नहीं है। मौत के करीब के लोग मुक्ति भवन आ सकते हैं और यहां केवल दो सप्ताह तक ही रह सकते हैं। अगर दो सप्ताह के भीतर उस व्यक्ति की मौत नहीं होती है तो उसे मुक्ति भवन छोड़ना होता है और दूसरे को जगह देनी होती है।

मुक्ति भवन में 12 कमरे, एक छोटा सा मंदिर और पुजारी हैं। इसके साथ ही यहां आने वाले मेहमानों की सुविधा के लिए सारी सुविधाएं हैं। इस हॉस्टल के मैनेजर भैरव नाथ शुक्ला पिछले 44 सालों से यहां के इंचार्ज हैं और यहां आकर मरने वालों की आत्मा के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। भैरव नाथ यहां अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं और वह हॉस्टल में लोगों को सुविधाओं के साथ मरने देते हैं।

हालांकि, यहां केवल वे लोग ही आते हैं जिनके ना ही कोई परिवार है ना ही दोस्त। मुक्ति भवन ने ना जाने कितनी मौतें देखी हैं। यह भवन प्राचीन भारतीय परंपरा वानप्रस्थ का पालन करता रहा है। प्राचीन काल में गृहस्थाश्रम में परिवार और दांपत्य जीवन के बाद लोग वानप्रस्थ आश्रम के लिए चले जाते थे। प्राचीन समय में जब भी लोग कहते थे कि वे काशी जा रहे हैं तो ऐसा माना जाता था कि वे कभी वापस नहीं आएंगे।

 
 
 
Back to top button