इस हिंदू परिवार के पास है कुरान की 250 पांडुलिपियां हैं, इनमें 130 वेल्लम पर लिखी हैं

कुरान की दुर्लभ पांडुलिपियां, कलाकृतियां और कैलीग्राफी ये कुछ ऐसी वस्तुएं हैं, जिनको देखने के लिए कला प्रेमियों का हुजूम यहां टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर में आयोजित शीरीं कलाम प्रदर्शनी में उमड़ रहा है। लेकिन सबके आकर्षण का केंद्र जम्मू से आए एक हिंदू सुरेश अबरोल द्वारा अपने निजी संग्रहालय से लाई गई पाक कुरान की दुलर्भ और एतिहासिक पांडुलिपियां हैं।इस हिंदू परिवार के पास है कुरान की 250 पांडुलिपियां हैं, इनमें 130 वेल्लम पर लिखी हैं

11 जून तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में कुरान की 100 दुर्लभ पांडुलिपियां रखी गई हैं। इनमें से एक पांडुलिपि ‘ नुस्खा फतेहुल्ला कश्मीरी’ भी है। इसे 1238 ईस्वी में फतेहुल्ला कश्मीरी ने कलमबंद किया था।

माना जाता है कि ‘नुस्खा फतेहुल्ला कश्मीरी’ कश्मीरी कैलीग्राफी या खुशनवीसी में अभी तक उपलब्ध प्राचीनतम कुरान की पांडुलिपि है।

सुरेश अबरोल ने बताया कि यहां जो भी हम लाए हैं, यह मेरे दादा लाल रेखी राम अबरोल द्वारा हमें सौंपी गई विरासत का एक हिस्सा है। वह राज्य के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के दरबार में जौहरी थे। मेरे पिता को उनसे ये धरोहरें मिली थीं। हम इन्हें अपने परिवार की असली और सबसे कीमती विरासत मानते हैं। हमारे परिवार के पास कुरान की 250 पांडुलिपियां हैं, जिनमें से 130 तो वेल्लम पर लिखी हैं। यह बकरे अथवा ऊंठ की खाल से बना एक विशेष प्रकार का कागज है।

इन दुर्लभ वस्तुओं की देखभाल के लिए उन्होंने एक प्रयोगशाला बनाई हुई है। उन्होंने कहा, हमारे पास पांच हजार के करीब अरबी, फारसी, शारदा और संस्कृत में लिखी पांच हजार पांडुलिपियां हैं। आयुर्वेद पर भी कई दुलर्भ ग्रंथ हमारे पास हैं।वह बताते हैं, हम तीन भाई हैं और हमने मिलकर अपने ही घर को संग्रहालय में तब्दील किया है। इसमें रखी पांडुलिपियां और अन्य अमूल्य एतिहासिक धरोहरें संरक्षण के लिए उन्हें राज्य संस्कृति मंत्रालय से मार्गदर्शन मिलता है। हम इन धरोहरों के संरक्षण पर अपनी जेब से पैसा खर्च करते हैं।

यह हमारा शौक और जुनून है। यह पूछे जाने पर क्या वह पहले भी इस तरह किसी प्रदर्शनी में शामिल हुए हैं तो उन्होंने इन्कार करते कहा कि यह पहली दफा है जब हमने अपने संग्रहालय में जमा पांडुलिपियों और अन्य एतिहासिक धरोहरों को बाहर किसी प्रदर्शनी में लाया है। राज्य के संस्कृति विभाग की तरफ से हमें न्योता मिला।पांच दिन चलने वाली इस बैठक में फारसी भाषा में हकीम लुकमान का सद पांद लुकमान भी है।

प्रदर्शनी में 1300 हिजरी में हाथ से लिखी पाक कुरान की पांडुलिपि के अलावा बादशाह जहांगीर के दौर में लिखी गई पाक कुरान की पांडुलिपि, सोने की स्याही से लिखी गई कुरान की पांडुलिपि, हजरत मोहम्मद साहब का पत्राचार, फताउल्लाह कश्मीरी द्वारा 1237 में पवित्र कुरान पर स्थानीय कताबत में लिखी गई टिप्पणियां रखी गई हैं।

यह कश्मीरी भाषा में लिखी गई पाक कुरान की सबसे पुरानी पांडुलिपि मानी जाती है। तुलुथ कला अखरोट की लकड़ी की पैन¨लग वाली पवित्र कुरान की पांडुलिपि, 1270 में खाते नसतलीक में संकलित शरही अवराडी फातिहा, इस्लाम के पैगंबर का शजरा मकदसा भी प्रदर्शनी में रखा गया है।विदित हो कि इस प्रदर्शनी का आयोजन जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी द्वारा पर्यटन, पुस्तकालय, लेखागार, पुरातत्व तथा संग्रहालय निदेशालयों की कश्मीर शाखा, शाश्वतआर्ट गैलरी जम्मू, पीरजादा कोलेक्षन तथा हकीम कोलेक्षन के तत्वाधान से किया जा रहा है।

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