आखिर क्यों नहीं बढ़ रही आपकी सैलरी, वजह जानकर सोच में पड़ जाएंगे आप
जी-20 देशों, जिनमें भारत भी है, के आंकड़े बताते हैं कि आज मुनाफे में कर्मचारी का हिस्सा घट रहा है। साफ है कि कंपनियां अपना मुनाफा मुलाजिमों के साथ साझा नहीं कर रही हैं। सिडनी स्थित ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के जॉन बुकानन कहते हैं कि, ‘खुली अर्थव्यवस्था का नियम है कि कारोबारी हर हाल में अपना मुनाफा अपने पास रखने की कोशिश करते हैं। एक दौर था जब न्यूनतम मजदूरी से लेकर दूसरी बुनियादी सुविधाएं किसी भी रोजगार में अनिवार्य कर दी गई थीं। आज लेबर मार्केट के नियमों में बहुत रियायत दे दी गई है। नतीजा सामने है।’
वैसे, कुछ लोगों को इसमें कर्मचारियों का फायदा भी दिखता है, जैसे कि आज उनके काम के घंटों में लचीलापन आ गया है। यानी बहुत से कर्मचारियों को मन-मुताबिक समय पर काम करने की छूट मिलती है। आज कर्मचारियों को वर्क-लाइफ बैलेंस बनाने के लिए कंपनियां काफी रियायतें देती हैं। इसके अलावा पेंशन, स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएं कर्मचारियों को भविष्य की आर्थिक प्लानिंग करने में मदद करती हैं।
वैसे कुछ दिखावटी सुविधाएं भी हैं, जिनका कर्मचारी की बेहतरी से कोई वास्ता नहीं। जैसे कि कुछ कंपनियां मुफ्त शराब, कंपनी की कैंटीन में डिस्काउंट और कुछ दुकानों से खरीदारी में डिस्काउंट जैसी सुविधाएं भी देती हैं। पर इन सुविधाओं का कोई खास फायदा नहीं। आज घर खरीदना या किराए पर लेना इतना महंगा हो गया है। ऐसे में सैलरी बढ़ाने के बजाय मुफ्त शराब देकर कंपनियां कोई भला तो कर नहीं रही हैं। इससे किसी के सिर पर छत तो आएगी नहीं।
कुछ कंपनियां इस दिशा में कदम बढ़ा रही हैं। जैसे कि अमरीका की सिएटल स्थित कंपनी ग्रैविटी पेमेंट्स ने 2015 में तय किया कि वो अपने कर्मचारियों को सालाना न्यूनतम 70 हजार डॉलर सैलरी देगी। कंपनी ने कहा कि उसका मकसद ये है कि कर्मचारियो की जिंदगी बेहतर हो। वो अच्छी जिंदगी जिएं। वो आर्थिक चुनौतियों से परेशान न हों, बल्कि खुश होकर काम पर ध्यान लगाएं।
जब इस कंपनी की स्थापना हुई थी, तब तनख्वाह 48 हजार डॉलर हुआ करती थी। कंपनी के सीईओ डैन प्राइस ने इस दौरान अपनी तनख्वाह कम कर दी। प्राइस कहते हैं कि सैलरी बढ़ाने से आज उनके कर्मचारी शहर में अच्छी जगह पर रहते हैं। वो अब बच्चे पैदा करने में घबरा नहीं रहे। वो अब अपनी पेंशन में भी ज्यादा योगदान दे रहे हैं। सैलरी में धुआंधार इजाफा करने से ग्रैविटी पेमेंट्स छोड़कर कर्मचारियों के जाने की तादाद कम हो रही है। लोग ज्यादा अर्जियां दे रहे हैं। खुद कंपनी का कारोबार भी बढ़ गया है।