अपने मन के अंदर चलने वाले विचारों को नियंत्रित करने के लिए करें विपश्यना
विपश्यना यानी मन की गहराइयों तक जाकर आत्मशुद्धि की साधना। इस विधि के अनुसार, श्वास-प्रश्वास के प्रति सजग रहकर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए अपनी असल हालत का अवलोकन और आभास कर सकते हैं। इसका अभ्यास चित्त को निर्मल बना सकता है। मन में कोई विकार जागता है, तो सांस एवं संवेदनाएं प्रभावित होती हैं। इस प्रकार सांस के जरिए संवेदनाओं को देखकर हम विकारों को देखते हैं।
विकारों को सिर्फ देखने से उनकी ताकत कम होने लगती है और धीरे-धीरे इन विकारों का शमन होने लगता है। आत्मनिरीक्षण की यह कला हमें भीतर और बाहर की सच्चाई का साक्षात्कार कराती है। मन में व्यर्थ के विचार आना बंद हो जाते हैं। शांति का अनुभव होता है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि निरंतर ध्यानपूर्वक इसे करने से आत्म-साक्षात्कार होने लगता है। श्वास को ठीक से देखते रहें, तो निश्चित रूप से शरीर से अलग जागरण होने लगेगा और आप चित्त को शांत और साफ कर पाएंगे। यह शरीर में भीतर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा देगा।