लगभग सभी राज्यों में एशियन इबोला वायरस सक्रिय- एनआईवी

immunity-and-disease-4-55ae06df0fbfd_l (1)क्रीमियन कोंगो हेमोरेजिक फीवर वायरस यानी सीसीएचएफ  का वायरस जिसे एशियन इबोला वायरसÓ के नाम से भी जाना जाता है, के बारे में माना जा रहा है कि इसने पूरे देश में दस्तक दे दी है। पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के अध्ययन में यह जानकारी मिली है।

इसका खतरा ऐसा है कि जो कोई इसकी चपेट में आ गया, वो मौत के करीब पहुंच जाता है। इस वायरस की चपेट में आने वाले 100 में से 80 मरीजों की मौत हो जाती है। इसके लक्षण डेगुं से मिलते जुलते होने के कारण कर्इ बार इसकी पहचान भी नही हो पाती।

 वर्ष 2011 में इस वायरस का पहली बार पता अहमदाबाद में चला था। सर्वे के अनुसार जानवरों से मानव में आने वाला यह वायरस हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, गुजरात समेत लगभग सभी राज्यों में अब सक्रिय है। एनआईवी  निदेशक डॉ. देवेन्द्र मौर्य के साथ वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव और अन्य के शोध के यह खुलासे अटलांटा के एक जर्नल में  अक्टूबर के अंक में प्रकाशित हुए हैं।

ड. मौर्य ने दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत करते हुए कहा कि इबोला वायरस के सामने आने के बाद भारतीयों में जागरुकता बढ़ी है। सीसीएचएफ  के वास्तविक खतरे के बारे में अभी कम ही समझा गया है। प्रज्ञा यादव कहती हैं कि यह वायरस न पहचाना हुआ भी रह सकता है और मृत्यु का कारण डेंगू से मिलते जुलते लक्षणों के चलते डेंगू से होना समझ लिया जाता है।

खतरनाक वायरस

यह वायरस जानवरों के सम्पर्क में आने या संक्रमित मरीज की लार या पसीने से बहुत तेजी से फैलता है। डॉ. मौर्य कहते हैं कि भारत के निवासियों के एक बड़े वर्ग का अर्थव्यवस्था का आधार खेती और पशुपालन है। खेती के लिए पशु काम में लाए जाते हैं। इसके अलावा देश में बड़े पशु मेले जैसे राजस्थान में पुष्कर और बिहार के सोनपुर में बड़े पशु मेले लगते हैं। इनके चलते भी सीसीएचएफ वायरस का फैलाव हो सकता है।

ऐसे पड़ा नाम

यह वायरस सबसे पहले 1944 में कांगो के क्रीमिया में पाया गया था। इसलिए इसे क्राइमीन हैमोरेजिक फीवर नाम दिया गया। 1956 में कांगो में फैली बीमारी की वजह यही वायरस था। इसीलिए इस बीमारी को फैलाने वाले वायरस का नाम क्रीमियन कांगो वायरस दिया गया।

 

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