यहां के लोगों ने सुना था, स्वराज आंदोलन के दौरान बापू को…

नई दिल्ली : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती पर देश आज 2 अक्टूबर को उन्हें शिद्दत से याद कर रहा है। इस मौके पर हम आपको को इतिहास में ले जाना चाहते हैं, जहां शहर के अंदर राष्ट्रपिता की यादें सजोई हुई हैं। नवम्बर 1929 को महात्मा गांधी के सौभाग्यशाली कदम शहर में पड़े। स्वराज आंदोलन के तहत गांधी जी कस्तूरबा गांधी के साथ यहां पहुंचे थे, सीताकुंड पर स्थित बाबू गनपत सहाय की कोठी में उन्होंंने रात्रि विश्राम किया और अगले दिन सुबह रेलवे स्टेशन के पास स्थित सेठ जगराम दास धर्मशाला में एक सभा को उन्होंंने सम्बोधित किया था। उन्हें सुनने और देखने के लिए हजारों की भीड़ जमा हुई थी।इस बात की जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं अधिवक्ता राज खन्ना ने बताया कि डॉ. शैलेंद्र श्रीवास्तव कापत्रिका ‘जन भारती’ के मार्च 1995 के रजत जयंती अंक में ‘राष्ट्रीय आंदोलन में सुल्तानपुर का योगदान’ शीर्षक से आलेख प्राकाशित हुआ था।
जिसमें उन्होंंने इन बातों पर प्रकाश डाला है। राज खन्ना ने बताया कि पत्रिका के पृष्ठ संख्या -23 पर लिखा है कि दिवंगत वयोवृद्ध वकील बाबू रामकुमार लाल के अनुसार महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी जब यहां आये तो बाबू गनपत सहाय की सीताकुंड स्थित कोठी ‘केशकुटीर’ में ठहरे थे। दूसरे दिन रेलवे स्टेशन के समीप जगराम दास धर्मशाला में सभा की और जिले में आंदोलन जारी रखने का निर्देश दिया था। उस वक्त फिरंगी हुकूमत के खिलाफ जिले के सेठ-साहूकारों ने अपनी पोटली का मुंह खोलकर खुले दिल से चंदा दिया।राज खन्ना बताते हैं कि गांधी जी की इस सभा में जिले में आजादी की जंग की अलख जगाने वालों में राम नरायन, बाबू संगमलाल, राम हरख सिंह, अनन्त बहादुर सिंह, भगौती प्रसाद, चन्द्रबलि पाठक, उमादत्त शर्मा, हरिहर सिंह भी शामिल थे।
जिले के जानें-मानें इतिहासकार बाबू राजेश्वर सिंह ने भी अपनी किताब ‘सुल्तानपुर का इतिहास’ में इसका वरण किया है। बताते हैं कि साइमन कमीशन के विरोध में जनता को जागृत करने देश व्यापी दौरे पर निकले बापू सुल्तानपुर आये थे। यहां पर बापू की गर्मजोशी से अगवानी की गई थी। हालांकि कांग्रेस के गरम दल के नेता रहे बाबू गनपत सहाय गांधी जी के बेहद नजदीकी थे। गांधी जी फैजाबाद से बाबू गनपत सहाय की मोटर कार से ही आये थे। उन्होंने लिखा है कि जिस केशकुटीर में बापू ठहरे थे वो अब गनपत सहाय पीजी कॉलेज के राधारानी महिला विभाग में तब्दील हो चुका है। वहीं धर्मशाला का वह आंगन आज भी सुनहरी याद दिला रहा है।

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