खामोश ! साम्प्रदायिकता की सियासत जारी है ..

sampradayik-rajnitiलखनऊ. दादरी में हुई घटना को हादसा कहे या षड़यंत्र इस पर सियासत जारी है. भीड़ का उन्माद महत्वपूर्ण है या बेगुनाह की मौत ? इस पर भी सियासत जारी है . यूपी के हालात कुछ इस कदर हो गए हैं कि महज एक चिंगारी दंगो की दिवाली मना सकती है और हर ऐसे पटाखे की आवाज सियासतदानो के चेहरे पे
शैतानी मुसकान लाने के लिए काफी हो जाती है.

दंगो की खेती इस बार जबरदस्त तरीके से हो रही है . इसी हर घटना के बाद पहला बयान आता है “इस दुर्भाग्पूर्ण घटना पर सियासत नहीं की जानी चाहिए “ , मगर उसके बाद सियासत के पैंतरे शुरू हो जाते हैं. दोनों तरफ से खिलाडी अपना अपना काम शुरू कर देते हैं . सांप्रदायिक हिंसा के हर घटना के बाद सपा नेता लगातार भाजपा पर आक्रामक हो जाते हैं और भाजपा इसे क़ानून व्यवस्था के बदहाल होने का सबूत बताती है. दोनों एक दुसरे को सांप्रदायिक राजनीति न करने का उपदेश देते हैं मगर ध्रुवीकरण को बढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

यूपी की राजनीति में एक साथ उभरी समाजवादी पार्टी और भाजपा एक बार फिर आमने सामने आ गयी है. 1990 के दशक से ही सियासत के मैदान में ये एक दुसरे की पूरक बनी हुई हैं. बाबरी विध्वंस होने से पहले के घटनाक्रम में कार सेवको पर गोली चलने की घटना के बाद जहाँ मुलायम सिंह यादव ने खुद को मुसलमानों के रहनुमा के तौर पर खड़ा किया था वहीँ रामजन्म भूमि आन्दोलन के जरिये भाजपा ने सूबे में अपने पैर जमा लिए थे. उसके बाद के कालावधि में ये दोनों ही पार्टिया ध्रुवीकरण की सियासत के जरिये खुद को मजबूत करती रही हैं.

दादरी भी इसी सियासत की खेती का खाद बन रही है. 2013 में मुजफ्फरनगर में भी इसकी खेती हुई थी . नतीजतन चुनावी फसल अच्छी कटी. और तब से ले कर अब तक 100 से ज्यादा छोटी बड़ी घटनाये हो चुकी हैं. बयानों का दौर मुसलसल जारी है . सपा नेता आजम खान यूएन तक जाने को तैयार हैं तो मुजफ्फरनगर के हीरो भाजपा नेता संगीत सोम दादरी में लाखों की भीड़ जुटाने का दावा कर रहे हैं. वे इस काण्ड में गिरफ्तार किये गए मुलजिमो की जमानत लेने को तैयार हैं. सपा सरकार पीड़ित परिवार को बड़ा मुआवजा दे रही है तो भाजपा सांसद साक्षी महाराज उसे भी हिन्दू मुस्लिम में भेद बताने में कोई कसर नहीं रख रहे.

इस बीच मन की बात में शौचालय और सफाई की बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी दिमागी जहर पर मौन की बात कर रहे है. “मौनंम स्वीकृति लक्षणंम” का श्लोक खुद अपनी प्रासंगिकता सिद्ध कर रहा है. दोनों पार्टीयों के प्रवक्ता इस काण्ड का ठीकरा एक दुसरे पर मढ रहे हैं और अपनी पार्टी के नेताओं के भड़काऊ बयानों को उनका व्यक्तिगत बयान बता कर पल्ला झाड ले रहे हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा का सुपडा साफ़ होने के बाद से ही भाजपा बहुसंख्यको को अपने पक्ष में करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही तो वहीँ सपा खुद को अल्पसंख्यकों का पैरोकार बताने में जुटी हुई है. इस बीच उत्तरप्रदेश में 2005 से जून 2014 की अवधि में साम्प्रदायिक हिंसा की 1271 घटनाएं हो चुकी हैं. सांप्रदायिक हिंसा के कई आरोपी अब संसद की चहारदीवारी के भीतर चले गए हैं. और आश्चर्यजनक रूप से वाई श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त कर चुके हैं.

साम्प्रदायिकता के इस उभार में दोनों दल अपनी रोटियां सकने में पीछे नहीं हट रहे. एक तरफ भाजपा के फायर ब्रांड नेता कभी लव जिहाद तो कभी बच्चे पैदा करने जैसे बयान देते हैं तो वहीँ समाजवादी पार्टी के नेता खुद को मुस्लिमो का रक्षक बताने में आगे निकल जाते हैं.

लोकसभा चुनावो में भले ही नरेन्द्र मोदी विकास के नारे के साथ आये थे मगर इसके कुछ वक्त पूर्व पश्चिमी यूपी में हुए सांप्रदायिक दंगो ने भी भाजपा की प्रचंड जीत में अपना भरपूर योगदान दिया था. लव जिहाद के नारे और धर्मान्तरण के मुद्दे को इसलिए यूपी में पुनर्जीवित किया गया ताकि वह सांप्रदायिक उन्माद के जरिए अपनी शक्ति और ज्यादा मज़बूत कर सके. साक्षी महाराज और योगी आदित्यनाथ जैसे घोर साम्प्रदायिक नेताओं को समय समय पर भाजपा में उभरना भी इसी रणनीति का एक हिस्सा है. वही दूसरी तरफ विवादस्पद मसलों पर सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान बात को आगे बढ़ने में नहीं चूकते. मुजफ्फर नगर दंगो के बीच आजम खान और भाजपा नेताओं के बीच बहुत तीर चले थे.

सांप्रदायिक हिंसा की कुछ घटनाये इस मिली भगत की तरफ इशारा भी करती हैं. 24 नवंबर 2012 को फैजाबाद में हुई सांप्रदायिक हिंसा में भी देखने को मिली थी. तत्कालीन डीजीपी एसी शर्मा ने मौके पर मौजूद एसपी सिटी राम सिंह यादव को आंसू गैस छोड़ने व रबर बुलेट चलाने को कहा लेकिन आदेश को लागू करने के बजाय यादव ने अपना मोबाइल ऑफ़ कर दिया. पुलिस तीन घंटे तक मूकदर्शक बनी रही और वह फैजाबाद, जो 1992 में भी सांप्रदायिक तांडव से अछूता था, धू धू कर जलने लगा. 24 अक्टूबर की शाम 5 बजे से शुरू हुई इस सांप्रदायिक हिंसा के घंटों बीत जाने के बाद 25 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 20 मिनट पर कर्फ्यू लगाया गया. फैजाबाद चौक पर शाम से शुरू हुई आगजनी और लूटपाट के वीडियो और तस्वीरों में पुलिस और पूर्व विधायक व नवनिर्वाचित भाजपा सांसद लल्लू सिंह की मौजूदगी में देर रात तक दुकानों को लुटते और आगजनी के हवाले होते देखा जा सकता है. प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा गठित एकल सदस्यीय शीतला सिंह कमेटी की रिपोर्ट ने रुदौली के भाजपा विधायक रामचन्द्र यादव और पूर्व विधायक व अब भाजपा सांसद लल्लू सिंह, तत्कालीन डीएम, एसएसपी, पुलिस अधिक्षक, एडीएम समेत पूरे पुलिसिया अमले को सांप्रदायिक हिंसा में संलिप्तता के तौर पर चिन्हित किया है.

पिछले लोकसभा चुनाव ने लगभग सिद्ध कर दिया है कि यूपी की राजनीति आने वाले चुनावो तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के भरोसे ही चलेगी इस बीच सूबे के मुखिया अखिलेश यादव विकास और सौहार्द की बाते करते हैं मगर उनकी पुलिस और प्रशासनिक अमला ऐसी घटनाओं को रोकने में लगातार नाकामयाब हो रहा है.

बहरहाल सियासत में साम्प्रदायिकता की फसल बोई जा चुकी है छोटी बड़ी घटनाओ को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. बीच बीच में विकास का पोटास भी छिड़क कर खुद को पाक साफ़ रखने की कोशिश हो रही है. गुजरात में ऐसे प्रयोग सफल रहे हैं. अब यूपी की बारी है और इस बार भी वही सियासत जारी है.

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